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20 साल बाद अपनी नदियां नहीं उगलेगी बजरी

बजरी के अवैध दोहन पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को भी बेपरवाह बताया

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जिले की नदियों में बजरी दोहन लगातार बढ़ रहा है। जिले की मांग के अलावा बजरी बाहर जा रही है।

भीलवाड़ा।

बजरी के अवैध दोहन पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को भी बेपरवाह बताया। हालात भी चिंताजनक है क्योंकि राजस्थान से बजरी बाहर जा रही है लेकिन यहां उत्पादन घट गया है। हाल में शीर्ष कोर्ट ने बजरी खनन पर रोक लगाई तो राजस्थान पत्रिका ने जिले में बजरी के हालात पर पड़ताल की। नदियों की स्थिति देखकर विशेषज्ञों ने गंभीर स्थिति बताई। खनन विशेषज्ञों का कहना है कि भीलवाड़ा जिले से मुंबई, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा सहित राजस्थान से कई जिलों में बजरी भेजी जा रही है।

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जिले में बनास, खारी, कोठारी, मानसी, मेनाली नदी में प्रमुखतया बजरी का दोहन किया जाता है। हालांकि इनमें एक भी नदी बारहमासी नहीं है। इन नदियों में दो से तीन साल में एक बार पानी आता है। एेसे में बजरी बनना कम हो गया है। जबकि जिले की मांग के अलावा अन्य राज्यों में भेजने से नदियां खत्म होने के कगार पर है। विशेषज्ञों के अनुसार, यही हाल रहा तो 20 से 25 साल बाद बजरी के भंडार खाली हो जाएंगे।

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अभी नहीं सोचा तो फिर समस्या
जिले की नदियों में बजरी दोहन लगातार बढ़ रहा है। जिले की मांग के अलावा बजरी बाहर जा रही है। बजरी दोहन से नदियों के आसपास के कुएं, तालाब आदि रिचार्ज नहीं हो रहे हैं। यही वजह है कि खेतों के कुओं का जलस्तर भी घट रहा है। इसका असर सिंचाई पर होगा। एेसे में किसानों के लिए भी समस्या खड़ी हो सकती है।


पूर्व में यह माना था विकल्प
जिले के खनिज अधिकारियों के अनुसार, वर्ष 2013 में बजरी का संकट आया था। तब चर्चा हुई थी कि हिंदुस्तान जिंक आगूंचा से जो वेस्ट मिट्टी (ओवर बर्डन) निकल रही है, वो पहाड़ बन चुकी है। इसकी जांच यदि संभव हो तो इसे भी काम में लिया जा सकता है। कुछ लोगों ने फ्लाई एेश भी काम में ली थी। हालांकि इसका उपयोग अभी कम होता है।


सालाना 60 करोड़ रुपए आमदनी
जिले में बजरी का दोहन इतना हो रहा है कि सरकार को केवल 60 करोड़ रुपए सालाना आय हो रही है। जिले में अभी छह हजार हैक्टेयर में बजरी के लिए अस्थाई परमिट व दो माइनिंग लीज दे रखी है। इसके अलावा करीब तीन हजार हेक्टेयर में अवैध बजरी का दोहन हो रहा है। इसे रोकने खनिज विभाग के पास साधन तक नहीं है।


जिले में बजरी का दोहन खूब होता है। यहां की नदियों में दो से तीन साल में एक बार पानी आता है। इस कारण बजरी कम बनती है जबकि मांग ज्यादा है। यही हाल रहा तो 20 से 25 सालों में बजरी का संकट आ सकता है। हमने पूर्व में भी कुछ विकल्प देखे थे। हालांकि अभी एेसी स्थिति नहीं है।
अविनाश कुलदीप, मुख्य खनि अभियंता