
मां की मौत का गम दूर भी नहीं हुआ कि छह माह बाद एक हादसे में खुद के दोनों पैर गंवा दिए और हंसने खेलने की उम्र में उसकी जिन्दगी थम सी गई।
भीलवाड़ा।
स्कूल बस की चपेट में आने से तेरह साल पहले सिर से पिता का साया उठ गया। साढे़ चार साल पहले सांस की बीमारी से मां का साथ छूट गया। मां की मौत का गम दूर भी नहीं हुआ कि छह माह बाद एक हादसे में खुद के दोनों पैर गंवा दिए और हंसने खेलने की उम्र में उसकी जिन्दगी थम सी गई। यह दास्तां उपनगर सांगानेर निवासी सुनील (22) के परिवार की है। सुनील के दो भाई है, उसमें सबसे बड़ा नेत्रहीन है। फिलहाल एक भाई की नौकरी से ही घर का खर्चा मुश्किल से चल पाता है।
सुनील के पिता मदनलाल खटीक कोठारी नदी के समीप साइकिल से जाते समय स्कूल बस की चपेट मे आने से अकाल मौत का शिकार हो गए। उसके बाद मां कैलाशी देवी की सांस फूलते फूलते एक दिन सांस ही निकल गई। मां की मौत का दु:ख दूर नही हुआ था कि कुछ समय बाद चार वर्ष पहले पालड़ी रोड़ पर मिनी ट्रक से गिरे रोलर ने सुनील को अपाहिज बना दिया।
बड़ा भाई भैरू इलाज के लिए भीलवाड़ा के साथ ही अहमदाबाद के अस्पताल भी ले गया, लेकिन हादसे में बेजान हुए दोनों पैरों को आखिरकार कटवाना ही पड़ा। उसके बाद से ही सुनील घर पर ही बैठकर अपनी जिन्दगी व्यतीत कर रहा है। सुनील आठवीं तक पढ़ा है। उसकी इच्छा है कि उसे कोई नौकरी मिल जाए ताकि वह आगे बढ़ सके।
सबसे बड़ा भाई भी नेत्रहीन
सुनील का सबसे बड़ा भाई कमलेश 30 वर्ष का है। जन्म से ही वह नेत्रहीन है। हालांकि शिक्षा के मामले में तीनों भाइयों से आगे है। कमलेश जयनारायण व्यास विश्व विद्यालय जोधपुर से हिन्दी साहित्य, इतिहास व राजनीति विज्ञान में स्नातक है। लेकिन बेरोजगार है। नौकरी की तलाश के लिए एक सप्ताह पहले ही कमलेश दिल्ली गया है। सुनील के परिवार में कमाने वाला केवल एक ही भाई भैरू है। तीनों भाइयों में भैंरू ही विवाहित है। उसके बच्चे भी है। भैरू एक निजी कम्पनी में ऑटो चालक है। उसे यहां से आठ हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। यह आठ हजार ही उसके परिवार का सहारा है। इतनी सी आमदनी में घर खर्च चलाना संभव नहीं हो पा रहा है।
Published on:
11 Jan 2018 12:38 pm
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