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Human Angle Story : भूख-बेबसी के बीच ‘काली’ को नहीं पता, क्या होते हैं सरकारी दस्तावेज? 8 बच्चों की मां खा रही ठोकरें

Human Angle Story : समाज की यह तस्वीर हर किसी के दिल को झकझोर कर रख देगी। भूृख -प्यास से बिलखते आठ बच्चों का दर-दर भीख मांगकर पेट भर रही है। भूख और बेबसी के बीच 'काली' को नहीं पता, क्या होते हैं सरकारी दस्तावेज। अब तक नहीं मिला किसी सरकारी योजना का लाभ।

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भीलवाड़ा के बिजौलियां की काली नाथ। फोटो पत्रिका

Human Angle Story : समाज की यह तस्वीर जो हर किसी के दिल को अंदर से झकझोर कर रख दे। भूृख और प्यास से बिलखते आठ बच्चों का दर-दर भीख मांगकर पेट भर रही है विमुक्त समुदाय की रामपुरिया निवासी 42 वर्षीय काली नाथ। भूख और बेबसी के आगे उसे यह तक नहीं पता की आखिर सरकारी दस्तावेज होते क्या है। भीलवाड़ा के बिजौलियां में काली के पति मांगीलाल नाथ (46 वर्ष) को 4 फरवरी 2025 को सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी के कारण मौत हो गई। मांगीलाल लंबे समय तक सैंड स्टोन माइंस में मजदूरी कर परिवार का पेट पालते थे। उनके जाने के बाद तो जैसे काली की दुनिया ही उजड़ गई। आठ बच्चों की मां पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट गया। सबसे छोटी बेटी चांदनी केवल 8 माह की है। पिता के साये से वंचित इन बच्चों का जीवन अब भूख और मजबूरी की मार झेल रहा है।

कई बार सिर्फ पानी पीकर सोना पड़ता है

मां काली नाथ कभी-कभी मजदूरी करती हैं। लेकिन जब मजदूरी नहीं मिलती, तो उन्हें मजबूर होकर मोहल्ले और सड़क पर और आसपास के गांव में पैदल जाकर भीख मांगनी पड़ती है। कई बार ऐसे हालात हो जाते हैं जब पूरा परिवार भूखे पेट सिर्फ पानी पीकर ही सो जाता है।

नहीं है कोई सरकारी दस्तावेज

गत सात माह से यह परिवार सरकारी दतरों के चक्कर काट रहा है। कभी मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए तो कभी राशन कार्ड और आधार कार्ड के लिए। ताकि वे सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकें। लेकिन अफसोस, उनके पास मांगीलाल के आधार कार्ड के कोई और सरकारी दस्तावेज नहीं है। योजनाओं में पात्र होने के बावजूद उन्हें आज तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। इन सभी योजनाओं का लाभ यह परिवार केवल दस्तावेज़ों की कमी के कारण नहीं ले पा रहा।

दिनभर मेहनत के बावजूद पेट भरने की मजबूरी

काली नाथ एक बेटे को पांचवीं कक्षा तक पढ़ने के बाद उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। आज वह कभी खेतों में मजदूरी करता है, तो कभी गांव में जो भी बुला ले, उसके पास जाकर दिन भर मेहनत कर केवल 10 रुपए कमाता है। यह हालात सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह स्थानीय सिस्टम की खामियों और हमारी संवेदनहीनता का आइना भी है।