
फाइल फोटो पत्रिका
Rajasthan High Court Order : राजस्थान हाईकोर्ट ने पंचायतों के बाद अब शहरी निकायों में चुनाव नहीं कराने पर राज्य सरकार की खिंचाई की। कोर्ट ने शहरी निकायों में तय समय सीमा के बाद भी प्रशासक लगाए रखने को संविधान के विपरीत करार देते हुए कहा कि लोकतंत्र में शहरी निकाय ही स्थानीय सरकार हैं। चुनाव आयोग को मूकदर्शक बने रहने और आंख बंद रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसे में राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है कि संविधान के अनुसार तुरंत चुनाव की तारीख घोषित कर लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल की जाए।
न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने उर्मिला अग्रवाल व अन्य की 10 याचिकाओं को शनिवार को खारिज कर दिया, वहीं शहरी निकायों में प्रशासक बनाए रखने पर सवाल उठाते हुए तत्काल चुनाव कराने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि असीमित समय तक चुनाव टालना संविधान के खिलाफ है और इससे स्थानीय विकास कार्य प्रभावित होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 243-यू के तहत शहरी निकायों का कार्यकाल पांच वर्ष से अधिक नहीं हो सकता और इसे छह माह से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता। इसके बावजूद जनवरी 2025 में कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी शहरी निकायों के नए चुनाव नहीं कराए गए।
कोर्ट ने कहा कि कार्यकाल समाप्त होने के बाद अधिकारियों को प्रशासक बनाए रखने और याचिकाकर्ताओं को प्रशासक बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। चुनाव में देरी से स्थानीय शासन में रिक्तता पैदा हो रही है, जिससे विकास गतिविधियां व सुविधाएं प्रभावित हो रही हैं।
याचिकाकर्ता 2020 में ग्राम पंचायत प्रतिनिधि चुने गए। जून 2021 में इन ग्राम पंचायतों को शहरी निकायों में मिला दिया गया। याचिकाकर्ता शहरी निकायों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य बनाए गए। जनवरी 2025 में पांच साल का कार्यकाल पूरा होने पर इन्हें हटा दिया, जबकि अन्य सरपंच प्रशासक लगे हुए हैं। याचिकाओं में इसे भेदभावपूर्ण बताते हुए याचिकाकर्ताओं को शहरी निकायों में सभापति बनाए रखने की मांग की गई है। महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि दोनों निकायों के नियम और कानूनी प्रावधान भिन्न हैं, याचिकाकर्ताओं को पंचायत प्रतिनिधियों के समान अधिकार नहीं दिए जा सकते।
Updated on:
21 Sept 2025 10:16 am
Published on:
21 Sept 2025 07:29 am
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