परिषद में हो रहे खर्च का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि करीब 1150 कर्मचारियों को हर माह करीब तीन करोड़ रुपए का वेतन बांटा जा रहा है। अब सातवें वेतन आयोग के बाद यह खर्च और बढ़ गया है। पूरे साल में करीब 36 करोड़ रुपए वेतन पर खर्च कर दिए जबकि नया विकास मात्र आठ करोड़ का ही किया गया, जबकि परिषद के पास खजाने में करीब 50 करोड़ पड़े हैं।
परिषद में आयुक्त पद्मसिंह नरूका व सभापति ललिता समदानी में विवाद है। दोनों एक-दूसरे से बोलना भी जरूरी नहीं समझते हैं। आयुक्त ने सभापति से शहर के विकास पर एक भी बार बात नहीं की। आयुक्त के पास फाइल जाने पर उस पर चर्चा लिख दिया जाता है। इस चर्चा में कई जरूरी फाइलें अटकी है। पार्षदों ने प्रस्ताव दे रखे हैं पर दोनों की लड़ाई में काम नहीं हो रहा है।
परिषद कमाई में अव्वल है। नगरीय विकास कर, भूमि कर, भूखंड नीलामी आदि से खूब कमाई होती है। परिषद के खजाने में 40 से 50 करोड़ रुपए हैं।वर्ष 2015-16 में 10368.85 लाख की आय हुई। 2016-17 में 10773.33 लाख तथा वर्ष 2017-18 में 11009.40 लाख कमाए। खर्च में कंजूसी बरती।
2015-16 2799.31 लाख 2223.90 लाख
2016-17 4017.69 लाख 1095.61 लाख
2017-18 3350.03 लाख 805.95 लाख फाइल आयुक्त ने आगे नहीं बढ़ाई
शहर में विकास जरूरी है। अभी 86 काम के प्रस्ताव तैयार किए। फाइल आयुक्त के पास गई है लेकिन आगे बढ़ाना जरूरी नहीं समझा। इस तरह सीट पर बैठकर काम नहीं करना, शहर से धोखा है। हमारे पास पैसा होते हुए भी नए काम नहीं करा पा रहे हैं। सभी पार्षदों ने काम दे रखे हैं।
ललिता समदानी, सभापति नगर परिषद
शहर में विकास हो, हम भी यही चाहते हैं। कुछ वार्डों के ही प्रस्ताव आए थे इसलिए उन पर चर्चा लिखा गया। सभी जगह के प्रस्ताव आएंगे तो जरूर स्वीकृति दी जाएगी। बाकी जो रुटीन के काम है वे पूरे हो रहे हैं। जो पार्षद प्रस्ताव दे रहे हैं उनकी फाइल तैयार करवा रहे हैं।
पद्म सिंह नरुका, आयुक्त नगर परिषद