
Atal Bihari Vajpayee jayanti 2025(photo: FB)
Atal Bihari Vajpayee Jayanti 2025: आज 25 दिसंबर... अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन, अटल बिहारी वाजपेयी जयंती के रूप में एमपी समेत देशभर में मनाया जा रहा है। आयोजनों का दौर चल रहा है। सोशल मीडिया पर उन्हें श्रृद्धांजलि दी जा रही है। देश आज उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री, ओजस्वी वक्ता और संवेदनशील कवि के रूप में याद कर रहा है। लेकिन अटल जयंती पर एक सवाल मन में आया कि क्या अटल सिर्फ दिल्ली की राजनीति के नेता थे? तो आप इस प्रश्न का क्या जवाब देंगे? जवाब है नहीं.. दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी की जड़ें मध्य प्रदेश की मिट्टी में थीं, मध्यप्रदेश से ही था उनका भावनात्मक जुड़ाव और एक खास रिश्ता... इसलिए नहीं कि वो यहां जन्में बल्कि.... जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...
25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी के लिए यह शहर सिर्फ जन्मस्थान नहीं था, बल्कि राजनीतिक सोच की प्रयोगशाला भी था। ग्वालियर की सामाजिक विविधता, सांस्कृतिक चेतना और बौद्धिक माहौल ने अटल को भीड़ से अलग नेता बनाया।
बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी ने शुरुआती दौर में ग्वालियर और चंबल अंचल में जनसंघ को खड़ा करने के लिए बिना संसाधनों के लगातार यात्राएं कीं। कहा जाता है कि कभी-कभी तो साइकिल पर भी वे यहां से वहां सफर करते रहे। वहां तब न सत्ता थी, न संगठन, था तो सिर्फ विचार।
1957 में संसद पहुंचने से पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने मध्य प्रदेश को अपना राजनीतिक कर्मक्षेत्र बनाया। यह वही प्रदेश था जहां उन्होंने कार्यकर्ताओं को भाषण से नहीं, व्यवहार से जोड़ा और राजनीति को संघर्ष की भाषा में समझाया। राजनीति के इतिहासकार मानते हैं कि अगर मध्यप्रदेश में भाजपा आज भी कैडर-बेस्ड पार्टी है, तो उसकी नींव अटल युग में ही पड़ी।
भोपाल में दिए गए अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण आज भी राजनीतिक संवाद की मिसाल माने जाते हैं। अटल ने यहां बार-बार कहा था कि 'विरोध भी गरिमा के साथ होना चाहिए।' ये बात भी बहुत कम लोग जानते हैं कि नवाबी शहर भोपाल में उनके भाषणों की भाषा और लय को कई बार स्थानीय बुद्धिजीवियों के साथ बैठकर तराशा गया और वही शैली आगे चलकर उनकी पहचान बनी।
अटल बिहारी वाजपेयी ने मध्यप्रदेश को सिर्फ वोट बैंक नहीं माना। उन्होंने यहां एक पूरा नेतृत्व तैयार किया। कुशाभाऊ ठाकरे को संगठन की जिम्मेदारी देना उसी नेतृत्व का एक हिस्सा था। सुंदरलाल पटवा और कैलाश जोशी जैसे नेताओं को वैचारिक संरक्षण और युवा नेतृत्व को खुला मंच देने के उनके फैसले बताते हैं कि अटल सत्ता से पहले संगठन को महत्व देते थे।
प्रधानमंत्री रहते हुए भी अटल बिहारी वाजपेयी का मध्यप्रदेश से जुड़ाव बना रहा। नर्मदा परियोजना, आदिवासी पुनर्वास और बुंदेलखंड जैसे मुद्दों पर उन्होंने कई बार केंद्र की मशीनरी से अलग रुख लिया। कुछ अफसर बताते हैं कि 'अटल जी मध्यप्रदेश के मामलों में सिर्फ फाइल नहीं, जमीन की सच्चाई देखना चाहते थे।'
अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएं पढ़ते हैं, तो उनकी करुणा, उनका मौन और आत्मसंघर्ष महसूस किया जा सकता है। कहा जाता है कि इन कविताओं में उसका एक बड़ा हिस्सा मध्यप्रदेश के सामाजिक अनुभवों से ही उपजा था। ग्वालियर की संस्कृति, भोपाल का बौद्धिक वातावरण और विंध्य-बुंदेलखंड का संघर्ष इन सबका प्रतिमान उनकी यहीं कविताएं हैं।
आज अटल बिहारी वाजपेयी जयंती पर देश भर में कार्यक्रम हो रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के लिए यह दिन कार्यक्रमों के आयोजनों के साथ ही आत्ममंथन का अवसर भी है और सवाल ये कि क्या एमपी की राजनीति आज भी अटल जैसी संयमित है? क्या राजनेताओं के संवाद में आज भी उनके जैसी गरिमा बाकी है? कहना होगा कि अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थे, वे राजनीति की एक संस्कृति थे और उस संस्कृति की सबसे गहरी जड़ें मध्यप्रदेश में थीं।
Published on:
25 Dec 2025 12:46 pm
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