
गैस त्रासदी का अनजान हीरो था 'ग़ुलाम दस्तगीर', अपने परिवार को खोकर बचाई थी हजारों जानें
भोपाल/ विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी यानी भोपाल गैस कांड को इस बार 35 साल पूरे होने जा रहे हैं। लेकिन, मानों इस त्रासदी का शिकार हुए लोगों के जख्म जैसे अभी ताजा ही हैं और शायद ये कभी भरेंगे भी नहीं। क्योंकि अपनो को खोने का दर्द, वो भी किसी भयानक हादसे में, कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। क्योंकि उस रात हज़ारों मासूम लोगों ने एक साथ अपनी जान गंवाई थी। वो एक ऐसी रात थी, जिसे याद करके भोपालवासी सिहर उठते हैं और पूरा देश उसे याद करके दुख मनाता है। कई लोगों ने उस रात अपनों को खोया था। हर कोई अपनी जान बचाने की जद्दोजहद में था, लेकिन इन सब के बीच एक शख्स ऐसा भी था, जिसने न तो खुद की परवाह की और न ही अपने परिवार की। उसने अपने एक फैसले से सैकड़ों की जान बचाई। बस न बचा पाया तो अपने 3 मासूम बच्चों और पत्नी की जान।
समय से पहले अपने रिस्क पर स्टेशन से निकलवा दी थी हजारों लोगों से भरी ट्रेन
उस शख़्स का नाम था ग़ुलाम दस्तगीर। गुलाम भोपाल स्टेशन पर डेप्यूटी स्टेशन सुप्रीटेंडेंट हुआ करते थे। रोजाना की तरह 2 और 3 दिसंबर की खोफनाक रात को भी वो ड्यूटी के दौरान स्टेशन पर गश्त करने निकले थे। इस दौरान उन्हें आंखों में जलन और गले में खुजली महसूस हुई। एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद बताया था कि, उस वक़्त उनके सामने गोरखपुर-कानपुर एक्सप्रेस खड़ी थी, जिसे स्टेशन से छूटने में करीब 20 मिनट बाकि थे। उन्हें खुद की हालत और सामने खड़ी ट्रेन में लोगों की बिगड़ती तवियत को देखते हुए होने वाली किसी बड़ी अनहोनी का अंदेशा हो गया था। वो तुरंत दौड़कर अपने सीनियर्स के पास पहुंचे और ट्रेन को तय समय से पहले प्लेटफॉर्म से रवाना करने का अनुराध किया। हालांकि, ये फैसला भी सही नहीं था, जिसके चलते रेल प्रबंधन के आला अधिकारी इसपर सेहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि, इस ट्रेन को भले ही कहीं दूर ले जाकर खड़ा करवाया जाए, अगर इसमें कोई गलती है या होगी, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी। हालांकि, सीनियर्स को भी उस समय तक कुछ गलत होने का आभास होने लगा था, जिस बिना पर स्टेशन पर खड़ी ट्रेन को तय समय से पहले रवाना करने का निर्णय ले लिया गया।
बद से बदतर होते गए हालात
ट्रेन के स्टेश छोड़ने के बाद शहर के हालात बद-से-बदतर हो गए। देखते ही देखते स्टेशन पर शहर की भीड़ इकट्ठा होने लगी। हर किसी को शहर से कही दूर जाने की पड़ी थी। लेकिन, उस समय तक शहर में आने वाली या गुजरने वाली सारी ट्रेनों को रद्द कर दिया गया था। इस वजह से कोई भी ट्रेन भोपाल स्ट्शन पर आने वाली नहीं थी। स्टेशन के हालात नियंत्रित रखने और परेशान लोगों को सही ठिकाना देने की जद्दोजहद करने वाले ग़ुलाम ड्यूटी छो़कर नहीं भागे। उन्होंने अपनी ड्यूटी को उस समय की सबसे बड़ी जिम्मेदारी माना। हालांकि, उस समय उनका परिवार भी नज़दीक के ही रेलवे क्वाटर में रहता था, वो ये भी जानते थे कि, उनका परिवार भी इस जहर का शिकार हो रहा होगा।
त्रासदी में खो दिया अपना परिवार
उन्होंने बड़ी ही जिम्मेदारी के साथ अपने परिवार की परवाह किये बिना स्टेशन पर आए हजारों लोगों की जान बचाने और उन्हें सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने का प्रयास किया। अगली दोपहर जब हालात कुछ सामान्य हुए तो उन्हें अपने परिवार की याद आई, लेकिन जब तक ग़ुलाम अपने परिवार के पास पहुंचे, उनके 4 में से 3 बेटों पत्नी की मौत हो चुकी थी। जैसे तेसे एक बेटे की जान बच गई, लेकिन वो भी उस भयानक गैस का शिकार होकर गंभीर बीमार हो गया था। गुलाम खुद भी त्वचा संबंधित बीमारी की चपेट में आ गए थे। लंबी बीमारी के बाद साल 2003 में उनकी भी मौत हो गई। सैकड़ों-हजारों जानों को बचाने वाले ग़ुलाम दस्तगीर को शायद आज कोई नहीं जानता, लेकिन वो उस त्रासदी में खुद की परवाह छोड़ दूसरों की मदद करने वाले कुछ महानायकों में से एक थे।
Updated on:
02 Dec 2019 10:48 am
Published on:
01 Dec 2019 07:52 pm
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