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कर्मचारियों के वेतन और अनुकंपा नियुक्तियों पर बड़ा अपडेट

कर्मचारियों की कमी के बीच यदि सरकारी विभागों में अस्थाई रूप से काम कर मोर्चा संभालने वाले कोई थे तो वे हैं दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी, जिन्हें 2018 में स्थाई कर्मी का दर्जा मिला। विभागों में इनसे काम लेने की शुरुआत संविदा कर्मचारियों से पहले हुई थी।

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दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी

कर्मचारियों की कमी के बीच यदि सरकारी विभागों में अस्थाई रूप से काम कर मोर्चा संभालने वाले कोई थे तो वे हैं दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी, जिन्हें 2018 में स्थाई कर्मी का दर्जा मिला। विभागों में इनसे काम लेने की शुरुआत संविदा कर्मचारियों से पहले हुई थी। इनका वेतन बहुत कम है। यही नहीं, अनुकंपा नियुक्ति जैसा प्राकृतिक न्याय पाने के लिए ये आज भी दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। इनके बाद सेवा में आए संविदाकर्मियों के लिए अनुकंपा नियुक्ति दिए जाने का प्रावधान कर दिया गया है। इस मामले में मप्र कर्मचारी कल्याण समिति ने कहा है कि जल्द ही कर्मचारियों को ये लाभ दिए जाएंगे।

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कर्मचारी संगठनों के मुताबिक बीते 40 वर्षों में 1500 से ज्यादा दैनिक वेतनभोगी और स्थाई कर्मियों की अलग-अलग कारणों से मौत हो चुकी है जिनके परिवार के लोगों को अनुकंपा नियुक्ति नहीं जा रही है। इनमें से 50 प्रतिशत मृतक कर्मचारियों के परिजन संबंधित विभाग और न्यायालयों की शरण में है।

मामला तत्कालीन सरकारों के संज्ञान में नहीं है, बल्कि 2018 में शिवराज सरकार में इनके लिए एक नीति बनाई गई थी। कर्मचारी नेता वीरेंद्र खोंगल का कहना है कि जब नीति बनाई जा रही थी, तब लगा था कि इन वंचित कर्मचारियों का सरकार समग्र हित करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इन्हें दैनिक वेतनभोगी से स्थाईकर्मी का नाम दे दिया और कुशल, अकुशल, अर्धकुशल श्रेणी में बांटकर मानदेय रिवाइज किया।

वरिष्ठ कर्मचारी नेता रहे अनिल वाजपेयी बताते हैं कि कई दैवेभो को दिग्विजय के कार्यकाल में हटा दिया गया था, तब ये परेशान हो गए थे। रोजी—रोटी का संकट पैदा हो गया था। उमा के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी तो कर्मियों को काम पर लिया गया, पर शासकीय कर्मचारी का दर्जा आज तक नहीं मिला।

वेतन महज 12 से 18 हजार रुपए
शासकीय कार्यालयों, निगम-मंडलों में मेहनत कर रहे स्थाईकर्मियों को एक ही शिकायत है, सरकार ने हमारी सबसे ज्यादा अनदेखी की। अभी भी कर रही है, जबकि हम सबसे अधिक काम कर रहे हैं। सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। महीने में 12 से 18 हजार रुपए मानदेय दिया जा रहा है। काम के घंटों का हिसाब नहीं है, जब जो बुलाते हैं, जाना पड़ता है, यही गए तो नौकरी जाने का खतरा रहता है।

कर्मचारी नेता विजय रघुवंशी का कहना है कि इनमें से कुछ को 15 तो कुछ को 20 वर्ष का समय हो चुका है। कुछ ऐसे भी हैं कि उम्र पूरी कर चुके हैं। जिन कर्मचारियों की मौत हो चुकी है उनके परिजन की बुरी स्थिति है। कर्मचारी नेता अशोक पांडे, शारदा सिंह परिहार का कहना है कि वे कई बार अधिकारी, मंत्रियों के सामने पीड़ा रख चुके हैं।

मप्र कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष रमेशचंद्र शर्मा बताते हैं कि वास्तविक मांगों का निराकरण होना चाहिए। इसके प्रयास भी किए गए। आगे नए सिरे से प्रयास करेंगे। कोशिश होगी कि मृतक कर्मियों के परिवार में किसी एक सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति मिले। अन्य लाभों पर भी विचार किया जाए।