
20 बाद दिखा बड़ा बदलाव, अब वकालत बना यूथ की पहली पसंद। (फोटो: सोशल मीडिया)
Career As Law: सुरभि भावसार@ पत्रिका: एक दौर था जब युवा लॉ को कॅरियर रूप में पहली पसंद नहीं बनाते थे। वर्ष 2005 तक वे डॉक्टर-इंजीनियर बनने का सपना देख रहे थे। लॉ अंतिम विकल्प था। 15 साल में तस्वीर बदली और लॉ में कॅरियर बनाने वालों की संख्या बढ़ रही है। सुखद यह कि महिलाओं की भागीदारी भी 38.3% है। हर साल लॉ पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए होने वाली क्लैट (कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट) में 70 हजार विद्यार्थी बैठते हैं। इस बार भी 5 वर्षीय एलएलबी की 4,092 व एलएलबी की 1,599 सीटों पर प्रवेश की प्रक्रिया हुई।
भारत में 1.4 अरब आबादी के लिए 21,285 न्यायाधीश हैं। यानी प्रति 10 लाख आबादी पर 15 न्यायाधीश हैं। जिला न्यायालयों में प्रति न्यायाधीश औसतन 2,200 मामले लंबित हैं। इलाहाबाद और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में प्रति न्यायाधीश 15,000 से अधिक मामले लंबित हैं।
सामाजिक प्रतिष्ठा और स्थिर कॅरियर : कानूनी पेशा समाज में सम्मान और स्थिरता देता है।
आर्थिक आत्मनिर्भरता : लॉ प्रोफेशन में कमाई के अच्छे अवसर हैं।
समान अवसर : कोर्ट और लॉ फर्म में जेंडर के आधार पर भेदभाव कम
नीतिगत बदलाव : विश्वविद्यालयों द्वारा लॉ को प्रोफेशनल कोर्स के रूप में विकसित करने के प्रयास। (लॉ विशेषज्ञ डॉ. ऋतुप्रिया गुर्टू के अनुसार)
साल 2008 तक लॉ कॉलेजों में छात्राओं की संख्या अपेक्षाकृत कम थी। धीरे-धीरे स्थिति बदली, आज राजधानीभोपालमें लॉ की पढ़ाई में महिलाओं की भागीदारी 30-35% तक है। नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी भोपाल में 57% छात्राएं और 43% छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जोधपुर की 700 सीटों में से 450 पर छात्राएं और 250 पर छात्र पढ़ रहे हैं।
इंदौरमें हर साल दो हजार से ज्यादा विद्यार्थी लॉ में प्रवेश लेते हैं। इनमें से 35 फीसदी यानी 700 छात्राएं होती हैं। प्लेसमेंट की बात की जाए तो 10 फीसदी हायर एजुकेशन के लिए जाते हैं, 30 फीसदी किसी फर्म में लीगल एडवाइजर, 50 फीसदी प्रैक्टिस करते हैं और 10 फीसदी ज्यूडिशियरी में करियर बनाते हैं। वे मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे जैसे शहरों की बड़ी कंपनियों में सिलेक्ट होते हैं। पैकेज 15 से 55 लाख के करीब होता है।
Published on:
26 Aug 2025 11:46 am
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