scriptपसरा खतरनाक रोग, मरीजों का काटना पड़ रहा जबड़ा | Dangerous disease spread, patients have to bite their jaws | Patrika News

पसरा खतरनाक रोग, मरीजों का काटना पड़ रहा जबड़ा

locationभोपालPublished: Nov 22, 2021 04:07:31 pm

Submitted by:

deepak deewan

तेजी से आई दोहरी परेशानी, एक ही अस्पताल से अब तक 46 मरीजों के जबड़े निकाले
 

disease.png

भोपाल. कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान सबसे ज्यादा डराने वाले म्यूकोमाइकोसिस (ब्लैक फंगस ) के प्रकोप से उबर चुके मरीजों को अब नई परेशानी घेर रही है। फंगस का असर कम करने के लिए कई मरीजों की चिक बोन (गाल की हड्डी) काटनी पड़ रही है। हड्डी ना होने से अब इन मरीजों को कृत्रिम जबड़ा नहीं लग पा रहा है।

यही नहीं मुंह और नाक का छेद एक हो गया है जिससे मुंह से कुछ भी खाते हैं तो वह नाक के छेद से बाहर आ रहा है। अकेले हमीदिया अस्पताल के दंत रोग विभाग में 46 मरीजों के जबड़े और तालू निकाले गए हैं।

इस संबंध में गांधी मेडिकल कॉलेज के दंतरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अनुज भार्गव बताते हैं कि प्रदेश में सिर्फ एक सरकारी प्रोस्थेटिक इंप्लांट लैब इंदौर डेंटल कॉलेज में ही है। हम लंबे समय से इसकी मांग कर रहे हैं। लैब के लिए टेक्नीशियन की जरूरत है। लैब बनेगी तो मरीजों को फायदा होगा।

corona3.jpg

केस 1— होशंगाबाद के रहने वाले मो. इमरान (56 साल) कोरोना संक्रमित होने के बाद ब्लैक फंगस की जद में आ गए। हमीदिया के दंत रोग विभाग में उन्हें भर्ती कराया गया। यहां हुई जांच के बाद पता चला कि आंख के साथ ऊपरी जबड़ा भी खराब हो गया है। डॉक्टरों को उनके ऊपर का पूरा जबड़ा निकालना पड़ा।
केस 2. राजधानी के एक मरीज को ब्लैक फंगस के चलते अस्पताल में एडमिट कराया गया। गाल की हड्डी पूरी तरह सडऩे से ऊपरी जबड़ा निकालना पड़ा। अब उन्हें कृत्रिम जबड़ा भी नहीं लग सकता। बड़े सेंटर में जाकर इलाज पर लाखों रुपए खर्च करने की स्थिति नहीं है।

डराता आंकड़ा
18 लोगों का एक साइड का तालु और ऊपर का जबड़ा दांतों सहित निकाला गया
06 का एक तरफ की गाल की हड्डी या उसका कुछ हिस्सा निकाला गया
10 का दोनों तरफ का तालु और ऊपर का जबड़ा दांतों सहित निकाला गया
10 का जबड़ों का कुछ ही हिस्सा निकाला गया

corona2.jpg

प्रदेश में केवल इंदौर में इसके लिए लैब
चिकित्सकों की मानें तो जिन मरीजों की चिन बोन निकाली गई है, उन्हें जाइगोमेटिक इप्लांट लगवाना पड़ेगा। हालांकि चिक बोन ना होने पर पहले यहां ऑप्च्यूरेटर लगाए जाते हैं जिससे नाक और मुंह की खुली जगह भरते हैं। इस पर दो टाइटेनियक के दो स्क्रू कसे जाते हैं। इन स्क्रूपर प्रोस्थेटिक जबड़ेे कसे जाते हैं।

Must Read- नदी की लहरों पर जमकर कर सकेंगे अठखेलियां, इस घाट पर मिलेगी सुविधा

निजी अस्पतालों में पूरी प्रक्रिया में चार से पांच लाख रुपए खर्च होते हैं। हालांकि कृत्रिम जबड़े बनाने वाली प्रोस्थेसिस लैब इंदौर के गवर्नमेंट डेंटल कॉलेज में है लेकिन यहां वेटिंग को छोडकर किसी भी सरकारी अस्पताल में नहीं हैं, लेकिन यहां भी लंबी वेटिंग रहती है।

https://www.dailymotion.com/embed/video/x85qz32
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो