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Gen-Z पढ़ेंगे ‘बुआ-फूफा-मौसी-मौसा’ की अहमियत, बदलेगा ‘समाजसास्त्र’ का सिलेबस

MP News: नए सिलेबस में हर यूनिट को प्रैक्टिकल एक्टिविटी से जोड़ा गया है, ताकि विद्यार्थी केवल किताबों से नहीं, बल्कि अनुभव और संवाद से भी समाज की बारीकियों को समझ सके।

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फोटो सोर्स: पत्रिका

फोटो सोर्स: पत्रिका

MP News: अब समाजशास्त्र का सिलेबस केवल समूह संस्कृति और सामाजिक ढांचे तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसमें भारतीय ज्ञान परंपरा की गहराई भी जोड़ी जाएगी। छात्रों को यह सिखाया जाएगा कि रिश्ते केवल खून के नहीं, बल्कि भावनाओं और जिम्मेदारी से भी जुड़े होते हैं। इस नए सिलेबस को तैयार करने की जिम्मेदारी बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी को सौंपी गई है, जिसे भारतीय परंपरा और आचार-विचार के अनुरूप तैयार किया जाएगा। कुलगुरु प्रो. एसके जैन ने बताया कि सिलेबस में यह बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी) के तहत किया जा रहा है।

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलाव से न केवल विद्यार्थियों को समाजशास्त्र की गहरी समझ मिलेगी, बल्कि वे अपनी जड़ों से भी जुड़ पाएंगे। जेन जी की सोच और भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित यह नया पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को आधुनिक समय में भी भारतीय संस्कृति और रिश्तों की अहमियत का बोध कराएगा।

हर यूनिट में होगी प्रैक्टिकल एक्टिविटी

बीयू समाजशास्त्र विभाग की एचओडी डॉ. रुचि घोष ने बताया कि नए सिलेबस में हर यूनिट को प्रैक्टिकल एक्टिविटी से जोड़ा गया है, ताकि विद्यार्थी केवल किताबों से नहीं, बल्कि अनुभव और संवाद से भी समाज की बारीकियों को समझ सके। उदाहरण के लिए छात्रों को परिवार की संरचना और रिश्तों की अहमियत पर आधारित गतिविधियों में शामिल किया जाएगा। इसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि भारतीय समाज में परिवार का दायरा माता-पिता तक सीमित नहीं है, बल्कि बुआ, फूफा, मौसी, मौसा, मामा और मामी जैसे रिश्तेदार भी उतने ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

भारतीय वैज्ञानिकों और दार्शनिक दृष्टिकोण पर फोकस

समाज शास्त्र के प्रो. शशांक शेखर ठाकुर ने बताया कि नए सिलेबस में छात्रों को भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धियों से अवगत कराया जाएगा, ताकि उन्हें समझ में आए कि विज्ञान और तकनीक की दिशा में भारत ने कितनी अहम भूमिका निभाई है। साथ ही भारतीय दार्शनिक दृष्टिकोण और जीवन मूल्यों पर आधारित विषय भी सिलेबस में जोड़े जाएंगे।