
Madhya Pradesh Former CM Arjun Singh फिल्मों में एक्टिंग करना चाहते थे मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री (फोटो सोर्स : @INCMinority)
MP News: किसे मालूम था कि, जवानी के दिनों में बॉलीवुड एक्टर बनने की चाह रखने वाला शख्स एक दिन मध्यप्रदेश की 'राजनीति का चाणक्य' कहलाएगा। ये कहानी है 5 नवंबर साल 1930 में प्रदेश के रीवा जिले के चुरहट में जन्में अर्जुन सिंह की, जो एक-दो नहीं बल्की 3 बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहें, पंजाब के राज्यपाल बने, अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष और पांच बार केंद्रीय मंत्री की कुर्सी संभाली। आज मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज नेता अर्जुन सिंह के जन्मदिन के अवसर पर हम आपको उनके जीवन का एक रोचक किस्सा बताने जा रहे हैं।
अर्जुन सिंह(Former Madhya Pradesh CM Arjun Singh) का ताल्लुक मध्यप्रदेश के रीवा राजघराने से था। उनके पिता रीवा राजघराने के अंतर्गत चुरहट के जागीरदार थे। इसलिए बचपन से ही अर्जुन सिंह का पालन-पोषण पूरे ऐशो-आराम से हुआ। बचपन में उनके पिता राव बहादूर सिंह ने अपने दोनों बेटों की कुंडली ज्योतिषी से दिखवाई थी। ज्योतिषी ने दोनों भाइयों की कुंडली देखकर कहा था कि आपका एक बेटा तो संन्यासी बनेगा। वहीं दूसरा बेटा राजनीति में बहुत ऊपर तक जाएगा। ज्योतिषी द्वारा अर्जुन सिंह के लिए की गई भविष्यवाणी अक्षरश: हकीकत में बदली।
ज्योतिषी ने अर्जुन सिंह की कुंडली देखकर ही भविष्य में उनके सियासत की दुनिया में बड़ा नाम कमाने की बात कह दी थी। लेकिन फिर भी अर्जुन सिंह सियासत की दुनिया से दूर मायानगरी में अपना भविष्य तलाश रहे थें। वे मुंबई जाकर फिल्मों में एक्टिंग करना चाहते थे। अर्जुन सिंह का फिल्मों के प्रति इतना झुकावा होने के पिछे की बड़ी वजह थें उनके दोस्त अभिनेता प्रेमनाथ। इसका जिक्र डॉ. जोशी की किताब मिलता है। प्रेमनाथ के अर्जुन सिंह की गाढ़ी मित्रता थी। प्रेमनाथ और अर्जुन सिंह उस समय के सभी नामचीन अभिनेता या अभिनेत्री की फिल्में देखा करते थे। ऊपर से प्रेमनाथ की बहन की शादी प्रख्यात फिल्मकार और शोमैन राजकपूर के साथ हुई थी, इसलिए कॉलेज के दिनों में फिल्मों पर खूब चर्चाएं हुआ करती थीं।
अर्जुन सिंह की दिली तमन्ना थी की वे फिल्मों में एक्टिंग करे। अर्जुन सिंह ने अपनी ये इच्छा अपने पिता को बताया। बेटे की बात सुनकर उन्होंने ऐसा जवाब दिया कि, अर्जुन सिंह का एक्टर बनने का सपना टूट गया। दरअसल राव शिवबहादुर सिंह ने बड़ी चतुराई के साथ अर्जुन सिंह से कहा- 'तुम अपनी वाइफ से पूछ लो'। पिता के जवाब के बाद उन्होंने फिल्मों में एक्टिंग करने का सपना ही छोड़ दिया।
परिवार पर लगे एक कलंक ने अर्जुन सिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। यह कलंक लगा था उनके पिता राव शिवबहादुर सिंह पर, जिसे अर्जुन सिंह ने मिटाने की कसम खाई थी कि वह अपने परिवार पर लगे कलंक को धो डालेंगे। दरअसल, मामला है साल 1952 का जब आजाद भारत का पहला आम चुनाव होना था। इस दौरान प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु एक चुनावी सभा को संबोधित करने रीवा गए थे। इस सभा में विंध्य के नेता शंभूनाथ शुक्ल और तत्कालीन मुख्यमंत्री कप्तान अवधेश प्रताप सिंह मौजूद थे। नेहरु के स्वागत के लिए अर्जुन सिंह भी उपस्थित थे।
चुनावी सभा को नेहरू संबोधित करते उसके कुछ मिनट पहले ही एक नेता ने धीरे से उन्हें पन्ना हीरा खदानों के नवीनीकरण के दौरान 25 हजार रुपए रिश्वत की बात बताई। नेता की बात सुरनकर पंडित नेहरु का चेहरा गुस्से से लाल है गया था और उन्होंने भाषण मंच से ही कह दिया, चुरहट से खड़ा उम्मीदवार कांग्रेस का प्रत्याशी नहीं है। बता दें कि, जिस कांग्रेस प्रत्याशी को नेहरू ने नकारा था वे अर्जुन सिंह के पिता राव शिवबहादुर सिंह थें। शिवबहादुर सिंह पर 25 हजार रुपए की रिश्वत का आरोप लगा था। मंच पर सबके सामने पिता के अपमान ने अर्जुन सिंह को झकझोर कर रख दिया था। इसी दौरान अर्जुन सिंह के पिता कांग्रेस से अलग निर्दलीय चुनाव लडऩे मैदान में उतरे और चुनाव हार गए। तभी अर्जुन सिंह ने कसम खाई थी कि वह अपने परिवार पर लगे कलंक को धो डालेंगे।
अपने पिता राव शिवबहादुर सिंह की हार के बाद अर्जुन सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत निर्दलीय चुनाव लड़कर की। अर्जुन सिंह की लोकप्रियता ने उन्हें बंपर जीत दिलाई। चुनाव से पहले कांग्रेस ने उन्हें पार्टी में शामिल होने का ऑफर दिया था लेकिन उन्होंने यह कहते हुए ऑफर ठुकरा दिया कि चुनाव जीतने के बाद वे कांग्रेस में शामिल होंगे। निर्दलीय चुनाव में जीतने के बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए।
विवादों से रहा नाता: मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए अर्जुन सिंह कई विवादों में उलझे। उनका नाम राजधानी भोपाल के चर्चित गैस त्रासदी से जुड़ता है। दरअसल भोपाल में जिस समय ये हादसा हुआ, उस समय अर्जुन सिंह हीं प्रदेश के मुख्यमंत्री थें।
बड़े डकैतों ने किया था सरेंडर: पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को इसलिए भी याद किया जाता है क्योंकि उनके दौर में चंबल के खूंखार डकैतों ने सरेंडर कर दिया था। मलखान सिंह, फूलन देवी और घनश्याम सिंह जैसे डकैतों के समर्पण के लिए अर्जुन सिंह ने एक नीति बनाई थी। अर्जुन सिंह की राजनीतिक और प्रशासनिक कुशलता की वजह से उस दौर में चंबल के तमाम बड़े डकैतों ने उनके सामने सरेंडर किया था।
कम बोलना और ज्यादा सुनना था पसंद: अर्जुन सिंह को कम बोलने और ज्यादा सुनने की आदत थी। ऐसे में उनके पास जानकारियां ज्यादा हुआ करती थीं लेकिन उनका जिक्र वह जरूरी जगहों पर ही किया करते थे।
खुद छपवाते थे अपने खिलाफ खबर: पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह कई बार वह अपने मित्र पत्रकारों से अपने ही खिलाफ खबरें छापने को कहते थे। कई सूचनाएं तो वह खुद ही पत्रकारों तक पहुंचाते थे। अपने ही खिलाफ खबरें छपवाने के पीछे अर्जुन सिंह का उद्देश्य उन जानकारियों का पता लगाना होता था, जो अधिकारी किसी संकोच के कारण उन तक नहीं पहुंचाते थे।
Published on:
05 Nov 2025 03:08 pm
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