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Reels देखने से लोगों को हो रही 3 बड़ी परेशानियां, ‘माइग्रेन-डिप्रेशन’ भी शामिल

MP News: जर्नल ऑफ आई मूवमेंट में प्रकाशित स्टडी के अनुसार लगातार रील्स देखने से आंखों में जलन, नींद में गड़बड़ी और मानसिक तनाव जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं।

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फोटो सोर्स: पत्रिका

फोटो सोर्स: पत्रिका

MP News: सोशल मीडिया पर घंटों रील्स देखने का शौक अब नींद, आंखों और दिमाग पर भारी पड़ रहा है। जीएमसी की स्टडी के मुताबिक सिर्फ एक घंटे की स्क्रॉलिंग भी नुकसानदेह साबित हो सकती है। भोपाल के युवाओं और किशोरों में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है।

जर्नल ऑफ आई मूवमेंट में प्रकाशित स्टडी के अनुसार लगातार रील्स देखने से आंखों में जलन, नींद में गड़बड़ी और मानसिक तनाव जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं। रिसर्च में पाया गया कि 60 प्रतिशत लोगों को आंखों में जलन, गले और हाथों में दर्द की शिकायत रहती है। वहीं 83 प्रतिशत लोग चिंता, तनाव और नींद न आने जैसी समस्याओं से जूझ रहे है।

नींद का बिगड़ा पैटर्न

अरेरा कॉलोनी के 16 साल के छात्र राहुल रातभर रील्स देखने का आदी हो गया था। कुछ दिनों से उसकी नींद पूरी नहीं हो रही थी और आंखों में लगातार जलन रहने लगी। परिजन उसे जेपी अस्पताल लेकर पहुंचे। जांच में पता चला कि अत्यधिक स्क्रीन टाइम के कारण उसकी नींद का पैटर्न बिगड़ गया है और आंखों पर दबाव बढ़ गया है। डॉक्टरों ने मोबाइल उपयोग कम करने और ब्लू-लाइट फिल्टर लगाने की सलाह दी है।

आंखों पर असर डालती है ब्लू लाइट

जेपी अस्पताल की नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. निशा मिश्रा ने बताया कि रात में सोने से पहले मोबाइल का इस्तेमाल सबसे ज्यादा खतरनाक है। मोबाइल की ब्लू लाइट नींद की क्वालिटी को खराब करती है और आंखों पर सीधा असर डालती है। लंबे समय तक यही आदत बनी रही तो बच्चों और युवाओं में माइग्रेन, डिप्रेशन और आंखों की रोशनी कमजोर होने की समस्या बढ़ सकती है।

बचाव के उपाय

विशेषज्ञों के मुताबिक, सोने से पहले कम से कम 40 मिनट पहले मोबाइल फोन का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए। दिनभर में स्क्रीन टाइम को सीमित रखना जरूरी है। इसके अलावा नियमित व्यायाम और बाहर की गतिविधियों में समय बिताने से बचाव संभव है।