
भोपाल। हरियाणा ने 1947 के उत्पादन का रेकार्ड दिखाया और बासमती चावल पर जीआइ-टैग ले गया। मध्यप्रदेश 1908 से उत्पादन के रेकार्ड देने के बावजूद बाहर हो गया। वजह यह रही कि प्रदेश सरकार उत्पादन के रेकार्ड को सही तरीके से पेश नहीं कर पाई। अब इन रेकार्ड को पुख्ता किया जाएगा। इसमें कोशिश है कि अब 1908 के पहले के भी दस्तावेज मिल सकें। जीआइ-टैग के मामले में एपीडा ने मध्यप्रदेश के दावे को यह कहकर खारिज किया था कि मध्यप्रदेश में बासमती के उत्पादन के पुराने रेकार्ड पुख्ता नहीं मिल पाए हैं। इस चावल को बासमती टैग ने से बासमती की कीमत घटेगी।
सरकार ने 70 साहित्यिक पुस्तक-पत्रिका और दस्तावेज पेश किए थे। इसमें 1908, 1913 से 1930, 1938-39, 1940, 1949, 1951-52, 1972, 1977, 1978, 1994 व 2000 तक और उसके बाद से अब तक बासमती उत्पादन को लेकर रेकार्ड पेश किए थे। इसमें एपीडा ने बीच में जिन सालों के दस्तावेज नहीं मिल सके, उन्हें साक्ष्य में कमजोर माना था। बाद में इसी आधार पर दस्तावेज को कमजोर करार दिया गया। अब सरकार कोशिश कर रही है कि 1908 से उत्पादन के रेकार्ड पेश किए जाएं।
केंद्र का भी हवाला देंगे
राज्य सरकार अब केंद्र के जरिए बासमती बिक्री का हवाला भी देगी। 15 अप्रैल 1999 से पांच मई 2016 तक केंद्र निरंतर बासमती के ब्रीडर सीड का आवंटन कर रहा है। केंद्र ने डीजीसीआइएस वेबसाइट पर मंडीदीप में कंटेनर डिपो से बासमती के लगातार निर्यात की जानकारी दी है।
शपथ-पत्र दोगुना होंगे
अभी तक सरकार ने 250 किसानों के शपथ-पत्र पेश किए हैं। इन्हें दोगुना भी किया जा सकता है। इनमें बताया जाएगा कि किसान कब से बासमती का उत्पादन कर रहे हैं। इसके अलावा कृषि वैज्ञानिकों के शपथ-पत्र भी साक्ष्य के रूप में पेश किए जाएंगे।
ये है मामला
बासमती को लेकर मध्यप्रदेश ने मद्रास हाईकोर्ट से स्टे लिया है। एपीडा ने मध्यप्रदेश को बासमती जीआइ टैग देने से इनकार कर दिया था। इससे मध्यप्रदेश के 80 हजार किसान बासमती नाम से अपना चावल नहीं बेच पाते, इसलिए सरकार इस फैसले पर स्टे ले आई। अब वापस हाईकोर्ट में सरकार अपना दावा पेश करेगी।
Published on:
27 Apr 2018 04:45 pm
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