
अब कॉलेजों में हंसीमजाक में आपने आपत्तिजनक वीडियो बनाए तो जेल की हवा खानी पड़ेगी। पहले ये साक्ष्य की श्रेणी में नहीं आते थे। अब नए कानून में ऐसे वीडियो साक्ष्य की तरह पेश होंगे और सजा मिल सकती है। यूजीसी ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को निर्देश दिए हैं कि वे विद्यार्थियों को इसकी जानकारी दें। प्रदेशभर के 14.85 लाख विद्यार्थियों को जानकारी देने के लिए यूनिवर्सिटी ने तैयारी शुरू कर दी है।
बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी (बीयू) में प्रचार सामग्री के जरिए प्रदर्शनी लगेगी। सेमिनार होंगे। इनमें जस्टिस, वकील, रिटायर्ड जज और संस्थान के फैकल्टी मेंबर जानकारी देंगे। ऐसा क्यों? केंद्र सरकार भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा, साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई से लागू कर रही है। 164 साल बाद कानून बदले गए हैं। साक्ष्य अधिनियम में कोर्ट में साक्ष्य की स्वीकार्यता का प्रावधान है।
कानूनों में एफआईआर, केस डायरी, आरोप पत्र को डिजिटल बनाने का प्रावधान है। अब 167 के बजाय 170 धाराएं होंगी। 24 धाराओं में बदलाव किए हैं। सबूतों के मामले में ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक्स तरीके से जुटाए सबूतों को प्रमुखता दी गई है।
कानून के अनुसार, कोई भी व्यक्ति अगर शब्दों या संकेतों या ऑडियो-वीडियो के माध्यम से जान-बूझकर अलगाववाद या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियां भड़काता है। ऐसी दशा में सात साल या उम्रकैद की सजा हो सकती है।
नए कानून को अमल में लाने के लिए अध्ययन की जरूरत है। 164 साल बाद कानून बदले हैं। इसे व्यवहार में लाने में समय लगेगा। विद्यार्थियों को नए कानून की जानकारी देने का फैसला अच्छा है।
-रंजन राय, असिस्टेंट प्रोफेसर, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी
छात्रों को नए कानून की जानकारी देने के लिए कार्यक्रम चलाएंगे।
-आइके मंसूरी, रजिस्ट्रार, बीयू
Published on:
26 Feb 2024 07:57 am
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