
Narmada Parikrama मां नर्मदा परिक्रमा (फोटो सोर्स : पत्रिका)
Maa Narmada Parikrama: मां की परिक्रमा के एक-एक पद में अर्थात् कदम में हमारे जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। यदि आप आस्थावान हैं, वेदों और पुराणों पर विश्वास करते हैं तो आप कितने सौभाग्यशाली हैं कि आप यदि मां नर्मदा की परिक्रमा करते हैं तो आप पूर्ण रूप से निष्पाप हो जाते हैं। ऐसा कौन-सा तप है, कौन-सा अनुष्ठान है, कौन-सा मंत्र है या विधि, जो मात्र 3 माह में आपको निष्पाप कर दे…, कोई नहीं, सिवा नर्मदा परिक्रमा के…।
नर्मदा परिक्रमा के नियमानुसार तो बिरले ही परिक्रमा कर पाते हैं। कलिकाल का मनुष्य है जिसमें धैर्य, साहस, श्रद्धा, सबकी कमी है। किन्तु मां तो वैसी ही दयालु हैं, जैसे आदिकाल में थीं। इसलिए मेरा पूर्ण विश्वास है कि आज भी मां नर्मदा की परिक्रमा वैसी ही फलदायी है जैसी तब थी, जब मार्कण्डेय ऋषि ने की थी सर्वप्रथम।
यदि मैं यह कहूं कि परिक्रमा सेवा का सर्वोच्च विश्वविद्यालय है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्या अद्भुत सेवा है परिक्रमा मार्ग पर। स्वयं के पास खाने को हो, न हो, आप की सेवा में वो तत्पर हैं। जिसके पास जो है वो उसी से सेवा में तत्पर है। कोई बिस्किट के पैकेट बांट रहा है, कोई अन्नक्षेत्र चला रहा है, कोई गन्ने का रस पिला रहा है, एक आश्रम में तो वाशिंग मशीन और ड्रायर रखा है, जहां परिक्रमावासियों को उनके कपड़े धोकर सुखा कर दे देते हैं, किसी के पास कुछ नहीं है तो वो कागज पर लिखकर मार्ग बताने वाले दिशा-निर्देशक लगा रहा है, हमारे साथ तो कई बार ऐसा हुआ कि हमें 4-4 किलोमीटर तक लोग मार्ग बताने आए हैं। सेवा का भाव है तो अवश्य जाइये नर्मदा परिक्रमा पर।
परिक्रमा जीवन जीने की कला सिखाती है। अभाव में भाव का उद्घाटन है परिक्रमा। अनिश्चिंतता में निश्चिंतता का नाम है परिक्रमा। स्वयं को जानने का मार्ग है परिक्रमा। थककर चूर हो गाढ़ी नींद में सो जाना और प्रातः पूर्ण उत्साह का जागरण है परिक्रमा। हर पढ़ाव पर नये चरित्र का साक्षात्कार है परिक्रमा।
परिक्रमा सुनने-पढ़ने का नहीं करने का विषय है, आपके पास समय नहीं है तो खण्ड परिक्रमा करिये, जितना समय मिले चलिए मां के संग, फिर समय मिले तो वहीं से प्रारंभ करिये जहां से छोड़ी थी। नहीं चल सकते तो जाकर नर्मदा तट पर रहिये कुछ दिन, मां का सान्निध्य भी परिक्रमा का ही आनंद देता है। कहने को तो बहुत कुछ है, किन्तु शब्दों की सीमा है।
परिक्रमा आध्यात्मिक चेतना के लिए है, किन्तु होती तो समाज के संग ही है। तट पर साबुन लगाकर नहाते लोग, कपड़े धोती माता-बहनें या तो उन्हें मां का महत्व नहीं पता या इनके पास विकल्प नहीं है। किन्तु रेत का खनन, पानी का शोषण ये अधिक कष्ट देता है। मैंने परिक्रमा में हर जगह स्थानीय लोगों से पूछा कि रेत का खनन करने वाले क्या सुखी रहते हैं। हर जगह एक ही उत्तर था… ये पूरे वेग से आकाश को छूते हैं किन्तु ऐसे गिरते हैं कि इनकी पीढ़ियां भी उठ नहीं पातीं।
नर्मदे हर जिंदगी भर…।
सुदेश शांडिल्य महाराज, पीठाधीश्वर, करुणाधाम आश्रम, भोपाल
Published on:
01 Nov 2025 03:40 pm
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