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भोपाल

मध्यप्रदेश अग्निपथ से प्रगतिपथ तक – भूपेंद्र सिंह

– लेखक : भूपेंद्र सिंह, मंत्री, शहरी विकास एवं आवास विभाग, मप्र
 

भोपालMar 22, 2023 / 11:45 pm

जीतेन्द्र चौरसिया

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भोपाल। कोविड—19 का संकटकाल, थम चुका अर्थ चक्र और गरीब की ठहरी जिंदगी… ऐसी तमाम चुनौतियों के बीच मध्यप्रदेश को पुन: प्रगतिपथ पर गति देना, उस भगीरथ प्रयास से कमतर नहीं, जिसने विश्व को मां गंगा जैसी जीवनधारा दी। ऐसे प्रयासों के फलीभूत होने के लिए तीन वर्ष की अवधि अतिसूक्ष्म होती है, लेकिन इस असंभव को संभव बनाया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने, जिन्होंने माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो मंत्र को बिना एक क्षण गंवाए मध्यप्रदेश में धरातल पर उतार दिया, पहला— आपदा में अवसर और दूसरा— आत्मनिर्भर भारत के लिए आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश का सृजन। आज जब पूरा प्रदेश शिवराज सिंह चौहान के चौथे कार्यकाल के तीन साल पूरा होने पर आनंदित है, तो एक बार हम पीछे मुडक़र देखें तो दूर कहीं असंभव जैसे शब्द का रूदन करता एक ऐसा अक्षम नेतृत्व दिखता है, जिसने आगे न बढऩे की प्रवृत्ति को दोषारोपण में तब्दील करने को ही मध्यप्रदेश का भाग्य बनाने की ठान ली थी। खींचतान, तकरार और अहं ब्रह्मास्मि के स्वभाव में जनकल्याण, गरीब उत्थान और प्रगति के संकल्प यूं रौंदे जाते रहे, जैसे अपनों के बीच से जमीन पर गिरे निर्दोष कोमल पुष्प। हां, प्रदेश की जनता इस पुष्प जैसी ही पीड़ा सहने को मजबूर थी, अपनी भाजपा सरकार से दूर होकर। कोई याद भी नहीं करना चाहेगा कि प्रदेश को बीमारू से विकसित बनाने के संकल्प को साकार करने वाले शासन संचालन के भवन कैसे दलाली के अड्डे बना दिए गए थे, कैसे चंद लोग सुबह से देर रात तक अपनी झोलियां भरने में नैतिकता के पतन की गिरावट की नई इबारत लिख रहे थे, कैसे आपसी मनमुटाव ने प्रदेश ही नहीं, शहर गांव ही नहीं, एक—एक नागरिक के बीच भेदभाव और वैमनस्यता की लकीरें गहरी कर दी थीं।
सत्ता तक पहुंचने में झूठे वादों और झल—कपट की लंबी सीढय़िों के अलावा कुछ साथियों ने भी मदद की होगी, लेकिन उनके सहयोग को खारिज कर दिया गया। 15 महीने का गैर भाजपा शासनकाल गवाह है कि अपने ही मंत्रियों, नेताओं और कार्यकर्ताओं की मांगों को खाली खजाने की दुहाई देकर न केवल अपमानित किया गया, बल्कि उन्हें औकात बताने के साथ उसी दायरे में सीमित रहने की हिदायतें दी गईं। विकास, कल्याण और बदलाव के विचारों का अंकुरण हमेशा सकारात्मकता, समर्पण और श्रम की भूमि पर ही होता है। विद्वेष, अराजकता और विलासिता इन मनोभावों को नष्ट कर देते हैं, पनपना तो दूर की बात है। विकास की गुहार को उपहास के साथ ठुकराने वाले तब भी सौंदर्य और ग्लैमर के साथ खिलखिलाते दिखे, जब सुस्ती और बेपरवाही के आमंत्रण पर कोरोना ने मध्यप्रदेश में दस्तक दे दी थी। प्रदेश का एक भी नागरिक इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकता कि तत्कालीन परिस्थितियों में उसे तब की सरकार से कोई उम्मीद नहीं थी, बल्कि संकट की आहट के साथ सभी व्यक्तिगत प्रयासों में जुट रहे थे, या ईश्वर की इच्छा को ही नियति मान ली थी। निराशा का ये भाव एक—दो दिन नहीं, बल्कि करीब 15 महीनों में तत्कालीन सरकार की कार्यप्रणाली को देखते हुए सभी के मन में घर कर गया था। गरीबों को सहारा देकर जीवन में बदलाव लाने वाली सभी योजनाएं बंद कर दी गईं थीं, किसानों को कर्ज मुक्त करने के झूठे वादे के बाद लाखों किसानों को ऐसा डिफॉल्टर बनाया कि उनकी जिंदगी ही बर्बादी की कगार पर पहुंच गई थी। विद्यार्थियों की पढ़ाई पर संकट, तो युवा बेरोजगार, अपराधियों का ऐसा बोलबाला कि बेटियां शाम होते ही घरों से निकलने में संकोच करतीं, उद्यमियों की बेरूखी का नतीजा भी सामने आने लगा था। सबसे ज्यादा पीड़ा तब होती, जब तीर्थदर्शन की आस वाली आंखें हताशा से भर आतीं।

हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि इन हालातों के बीच कोरोना की मध्यप्रदेश में दस्तक के तुरंत बाद सत्ता परिवर्तन का दैव योग न बनता, तो क्या होता? सृजन का संकल्प न हो और दोषारोपण की संस्कृति का अभिमान न छूटे तो नेक सलाह भी उलझन के सिवाय कुछ नहीं दे सकती। जिन राज्यों में विगत नौ वर्षों से गैर भाजपा सरकारें हैं, उनमें ऐसे लक्षण एकरुपता दिखाते हैं। मध्यप्रदेश भी इससे अछूता कैसे रहता? मोदी के नेतृत्व में कोरोना के खिलाफ जंग मध्यप्रदेश में दम तोड़ देती और कल्पना से परे तस्वीर हमारे दुर्भाग्य का प्रतीक बन जाते। जिस तत्परता से शिवराज जी ने मध्यप्रदेश को कोरोना से बचाने की जंग में खुद को झोंक दिया, कोरोना की चपेट में आकर भी एक क्षण के लिए जंग से दूर न हुए, उच्च स्तरीय बैठकों से लेकर ऑक्सीजन टैंकर के चालक तक से संपर्क में रहे, एक भी दवा, सुविधा और संसाधन का अभाव नहीं होने दिया, ऐसे कठोर तप समान प्रयासों की कल्पना पिछली सरकार के मुखिया से की जा सकती थी? संकट अपने साथ पुनर्निर्माण और भरोसे की पुनर्स्थापना की चुनौती भी लेकर आता है। शिवराज जी ने संकट का न केवल सामना कर प्रदेश के नागरिकों की रक्षा की, बल्कि पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को गति देते हुए जनसहभागिता के माध्यम से मध्यप्रदेश में भरोसे का वातावरण बनाया।

कोरोना से प्रदेश की आर्थिक स्थिति, रोजगार, उद्योग धंधे, बाजार काफी हद तक प्रभावित हुए, जिसे उन्होंने संभालते हुए अब तक का सबसे ब?ा 3.14 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश किया, जिसमें महिलाओं के लिए 1.02 लाख करोड़ रुपए का बजट है। शिवराज सिंह चौहान अपने पहले कार्यकाल से ही बालिकाओं, महिलाओं, किसान और युवाओं पर फोकस रखते रहे हैं। चौथे कार्यकाल में लाड़ली लक्ष्मी योजना को नए स्वरूप में शुरू किया, तो लाड़ली बहना योजना की शुरुआत भी की जा रही है, जिसमें महिलाओं को प्रतिमाह एक—एक हजार रुपए दिए जाएंगे। महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए आजीविका मिशन के तहत महिलाओं के स्व सहायता समूह गठित किए जा रहे हैं।

कोरोना से उपजे रोजगार के संकट को दूर करने जनवरी, 2022 से प्रतिमाह रोजगार मेले के आयोजन की शुरुआत की गई, जिसमें अब तक करीब 15 लाख युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ा गया। इंदौर में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में 15 लाख 42 हजार 550 करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव आए। इनसे लाखों युवाओं को अवसर मिलेंगे। प्रदेश में 3.54 करोड़ नागरिकों के आयुष्मान कार्ड बन चुके हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी के तहत मध्यप्रदेश में इस वर्ष के अंत तक 7.25 लाख आवास तैयार हो जाएंगे। कायाकल्प अभियान के तहत प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में 750 करोड़ रुपए की लागत से सडक़ों के निर्माण एवं संधारण के कार्य होंगे। इंदौर और भोपाल में मेट्रो रेल की शुरुआत जल्द होगी। अमृत 2.0 के तहत प्रदेश के सभी 413 नगरीय निकायों एवं 5 छावनी परिषद में 12 हजार 858 करोड़ रुपए से कार्य कराए जाएंगे।

ईश्वर के वरदान और करोड़ों नागरिकों की प्रार्थना का साकार स्वरूप हैं शिवराज सिंह चौहान और उनके नेतृत्व में जनकल्याणकारी भाजपा सरकार। ये तीसरा वर्ष है, जो विकास यात्रा का महज एक पड़ाव है। गरीब के जीवन में बदलाव और प्रदेश की प्रगति की यह यात्रा अंत्योदय के लक्ष्य की प्राप्ति तक अनवरत जारी रहेगी, यही हम सभी का संकल्प और आप सभी प्रदेशवासियों की कामना है, जो फलीभूत होती रहेगी।
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