
कोरोना वायरस से पहले भी जानवरों से फैल चुकी हैं कई जानलेवा बीमारियां, इन लोगों पर है सबसे ज्यादा खतरा
भोपाल/ चीन से चले कोरोना वायरस ने दुनियाभर में दहशत का माहौल बना दिया है। वहीं, मध्य प्रदेश के इंदौर और उज्जैन में सामने आए कोरोना वायरस के संदिग्ध मरीजों की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद जहां प्रशासन ने राहत की सांस ली है, वहीं राजधानी भोपाल समेत ग्वालियर और खरगोन में सामने आए संदिग्ध मरीजों ने सरकार की चिंता बढ़ा रखी है। जानलेवा वायरस को लेकर हर जिले के छोटे बड़े सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में आइसोलेशन वार्ड बनाकर वायरस के संदिग्ध मरीजों की व्यवस्था करने के निर्देश दिये हैं। हालांकि, भारत समेत दुनियाभर के कई देशों में कोरोना वायरस ने अपने पेर फैलाना शुरु कर दिये हैं। ये बात तो अकसर लोग जानते ही हैं कि, ये कोई पहली संक्रामक बीमारी नहीं है जिसके प्रकोप से लोगों को परेशानी हुई है, लेकिन इस बार हालात अलग हैं, क्योंकि इस बार संक्रमण के कारण होने वाली मौतों का आंकड़ा बहुत तेजी से बढ़ रहा है।
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बीमार बना रहे जानवर
हालिया सामने आए इस नए वायरस ने वन्यजीवों के प्रति दुनियावी मानसिकता को भी उजागर किया है। साथ ही, पशुओं से फैलने वाले रोगों के बारे में हमारे जोखिम को दर्शाया है। अगर हम अब भी सजग नहीं हुए तो इसमें भी कोई संदेह नहीं कि, हमारा भविष्य ऐसी कई जानलेवा समस्याओं से घिरा होगा। क्योंकि जलवायु परिवर्तन और वैश्विकरण के चलते मनुष्यों और जानवरों के बीच संपर्क तेजी से बढ़ रहा है। बीते 50 सालों में जानवरों के माध्यम से मनुष्यों में फैलने वाले संक्रामण की रफ्तार बीते हजारों सालों के मुकाबले बहुत तेजी से बढ़ी है। वैसे छोटे मोटे संक्रमणों से तो दुनिया के कई इलाके ग्रस्त रहते हैं, जो जानलेवा ना होने के चलते इतना ध्यानाकर्शित नहीं कर पाते, लेकिन बीती आधी सदी से दुनियाभर में ऐसे वायरस सामने आ चुके हैं, जो लोगों के लिए जानलेवा साबित हो चुके हैं।
कोरोना से पहले ये वायरस मचा चुके हैं कहर
सबसे पहले लोगों के सामने साल 1980 में आया एचआइवी/एड्स का संकट जिसका इलाज अब तक मेडिकल साइंस के पास नहीं है। हालांकि, उस समय की रिसर्च में खुलासा हुआ था कि, एड्स का वायरस लोगों में बंदरों के जरिये फैला है। इसके बाद 1990 के दशक में प्लेग ने दुनियाभर के कई हिस्सों में हाहाकार मचाया था, जो अब भी कई जगहों पर सुन्ने में आता रहता है। ये वायरस चूहों के जरिये इंसानों में फैला था, जो एक समय में सैकड़ों लोगों की मौत का कण बना था। वहीं, 2004 से 07 के बीच एवियन फ्लू पक्षियों से और 2009 में स्वाइन फ्लू पिग से फैला है। हालिया मामलों में सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम(सार्स) चमगादड़ों के जरिए मनुष्यों में फैला था। तो वहीं, चमगादड़ों ने ही हमें इबोला दिया। मनुष्य हमेशा से ही जानवरों से रोग प्राप्त करते आ रहे हैं। हालांकि ये तथ्य है कि ज्यादातर नई जानलेवा संक्रामक बीमारियां वन्यजीवों से ही फैल रही हैं।
जानवरों से मनुष्यों में ऐसे फैलती हैं बीमारियां, इनपर खतरा ज्यादा
दुनिया में पाए जाने वाले ज्यादातर जानवरों में रोगाणु पाए जाते हैं, इनसे से कई रोगाणु जानलेवा बीमारियों का कारण भी होते हैं। रोगाणुओं का जीवन नए संक्रमित मेजबान पर निर्भर करता है और इसी तरह से वो दूसरी प्रजातियों में पहुंचता है। ये रोगाणु उस व्यक्ति या अन्य जीव पर हावी होते हैं, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता हावी होने वाले रोगाणु से प्रवाभी होती है। ऐसे में कम प्रतिरोधक क्षमता वाले शरीर इससे लड़ने में असफल होते हैं और अपने शरीर पर संबंधित रोगाणु को हावी कर लेते हैं। अब तक इन वायरसों को लेकर ये बात सामने आई है कि, इसने अपना प्रभाव छोटे बच्चों, प्रेग्नेंट महिलाओं और बुजुर्गों पर छोड़ा है।
सबसे ज्यादा खतरा इन्हें
हर बार सामने आने वाली नई बीमारी लोगों के लिए इसलिए भी खतरनाक होती है क्योंकि उसका कोई इलाज उपलब्ध नहीं होता है। ऐसे में कुछ लोग अन्य लोगों की तुलना में उस बीमारी की चपेट में ज्यादा तेजी से आ जाते हैं। जैसे- सफाई के काम करने वाले, पोषण की कमी वाले, स्वच्छता के अभाव में रहने वाले या प्रदूषित हवा में सांस लेने वाले लोग इन संक्रमणों की चपेट में अधिक आते हैं। इनमें भी उन लोगों की गिनती ज्यादा होती है, जिनके बारे में हमने ऊपर बताया है, यानी कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग। मौजूदा समय में फैलने वाले संक्रमण दुनियाभर के ग्रामीण इलाकों के मुकाबले बड़े शहरों में तेजी से फैल रहे हैं। इसका कारण है यहां सांस लेने वाली भारी भीड़। कई लोग भोजन में पशुओं के मास का सेवन करते हैं। फिलहाल फैलने वाले संक्रमणों का बड़ा कारण मासाहार भी माना जा रहा है। हालांकि, ये सत्य नहीं कि, हर मासाहार से ही संक्रमण फैलता है, क्या खाएं और क्या नहीं इसका ध्यान रखना भी अति आवश्यक है।
बचाव के लिए ये सोचना जरूरी
समाज और सरकारें नए संक्रामक रोग को स्वतंत्र संकट मानती हैं, बजाय इसके कि वे यह पहचानें कि दुनिया कैसे बदल रही है। जितना हम पर्यावरण को बदलते हैं, उतनी ही संभावना है कि हम पारिस्थिति को बाधित करते हैं और बीमारी उभारने में के अवसर प्रदान करते हैं। 10 फीसद रोगाणुओं का रिकॉर्ड रखा गया है, शेष की पहचान के लिए अधिक संसाधन चाहिए। जिससे पता लगाया जा सके कि कौनसे जानवर इसके वाहक हैं। स्वच्छता, अपशिष्ट निपटान और कीट नियंत्रण से बीमारियों को फैलने से रोक सकते हैं।
भविष्य में बीमारियों का प्रकोप
जिस तरह से नए रोग लगातार सामने आ रहे हैं और फैल रहे हैं उससे नई प्रकार की महामारियां हमें लड़ने के लिए मजबूत स्थिति में ला रही हैं। यह हमारे भविष्य का अनिवार्य हिस्सा होंगी। एक सदी पूर्व स्पेनिश फ्लू ने करोड़ों लोगों को संक्रमित किया था और बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। विज्ञान की प्रगति और वैश्विक स्वास्थ्य में भारी निवेश से इस तरह की बीमारी में बेहतर बचाव हो सकेगा। दूसरा पहलू ये भी है कि शहरीकरण और असमानता बढ़ती है या फिर जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ता है तो हमें उभरती बीमारियों बढ़ते जोखिम के रूप में पहचान करनी चाहिए।
Updated on:
05 Feb 2020 07:11 pm
Published on:
05 Feb 2020 03:27 pm
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