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बड़ा खुलासा: 1600 करोड़ बजट, फिर भी 16 हजार स्कूलों में भगवान भरोसे ‘मिड-डे मील’

MP News: बता दें सालभर में मध्यान भोजन के नाम पर करीब 1600 करोड़ रूपए से ज्यादा भारी भरकम बजट खर्च किया जाता है।

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प्रतिकात्मक फोटो (Photo Source - Patrika)

रूपेश मिश्रा, भोपाल।मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है। दुर्दशा का आलम ये है कि प्रदेश के 16945 सरकारी स्कूलों में मध्यान भोजन व्यवस्था का कैसे संचालन हो रहा है इसकी किसी जिम्मेदार अधिकारी ने पिछले नौ माह से कोई सुध ही नहीं ली है। जबकि उससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि इस व्यवस्था की मॉनिटरिंग के लिए सलाना 795 करोड़ रूपए खर्च किया जाता है।

ऐसे में सवाल उठता है जब निरीक्षण ही नहीं हो रहा है तो आखिर इस मद को कौन डकार रहा है। दरअसल इन आंकड़ों का खुलासा पीएम पोषण कार्यक्रम अंतर्गत तैयार की गई 4 अप्रैल से लेकर एक दिसंबर तक की ऑनलाइन निरीक्षण रिपोर्ट से हुआ है। बता दें सालभर में मध्यान भोजन के नाम पर करीब 1600 करोड़ रूपए से ज्यादा भारी भरकम बजट खर्च किया जाता है।

सिर्फ गाड़ी और डीजल पर खर्च 1.92 करोड़

भ्रष्टाचार का आलम ये है कि बच्चों की थाली तक को नहीं छोड़ा जा रहा है। मध्यान भोजन की व्यवस्था को सुगम तरीके से संचालित करने के लिए सिर्फ निरीक्षण पर 10 माह में प्रदेशभर में 1.92 करोड़ गाड़ी और डीजल के नाम पर खर्च किया जाता है। प्रत्येक जिले को 35 हजार प्रतिमाह दिया जाता है। ऐसे में 10 माह में 3.50 लाख रूपए एक जिले पर खर्च किया जाता है। बता दें साल में 365 दिन होते है लेकिन 240 दिनों का ही भुगतान किया जाता है।

प्रत्येक जिले में गठित है निरीक्षण के लिए तीन लोगों का दल

प्रत्येक जिले में मध्यान भोजन की व्यवस्था के लिए तीन लोगों की टीम बनाई गई है। जिसमें एक टॉस्क मैनेजर, एक क्वालिटी मैनेजर एक डाटा एंट्री ऑपरेटर होता है। जिन्हें करीब 45 हजार से लेकर क्रमश 20 से 25 हजार तक मासिक सैलरी दी जाती है। लेकिन इसके बावजूद मध्यान भोजन के निरीक्षण में घोर लापरवाही सामने आई है। ऐसे में बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर निरीक्षण के नाम पर खर्च की जा रही मोटी रकम कौन डकार रहा है।

ऐसे समझिए मध्यान भोजन में खर्च होने वाला पैसों गणित

  • मीडिल स्कूल के प्रति बच्चे पर 10.17 पैसा खर्च।
  • प्राइमरी स्कूल पर 6.78 पैसे प्रति बच्चा खर्च।
  • खाद्यान्न के लिए हर साल 3.41 करोड़ खर्च
  • 2 लाख रसोईयों को प्रतिमाह चार हजार का भुगतान।
  • कुकिंग कास्ट पर हर साल 799 करोड़ खर्च।
  • निरीक्षण पर सिर्फ गाड़ी और डिजल पर 1.92 करोड़ का खर्च।

स्कूल स्तर पर कई बार निरीक्षण का नहीं होना ये हमारी कमी है। इसकी समीक्षा की जाएगी। और जहां आवश्यकता होगी वहां कार्रवाई भी जाएगी। बाकी कई बार डेटा अपडेट नहीं होता है। और कई बार स्थानीय अवकाश होने पर डेटा में थोड़ा बहुत बदलाव होता है। जिन जिलों में निरीक्षण का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है उनकी सतत समीक्षा की जा रही है। - अवि प्रसाद, राज्य समन्वयक, पीएम पोषण कार्यक्रम