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नेपाल हिंसा का कारण सोशल मीडिया पर बैन! एक्सपर्ट बोले- वजह कुछ और…

Nepal Violence: नेपाल में फैली हिंसा पर विशेषज्ञ बोले, लोकतंत्र में जनता की बुनियादी आवश्यकता पूरी न होने पर असंतोष पनपना स्वाभाविक है, लेकिन... जानें और क्या बोले एमपी के एक्सपर्ट्स...

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Nepal violence

Nepal violence: पत्रिका (फोटो: सोशल मीडिया)

Nepal Violence: नेपाल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बैन करने के बाद हिंसा फैल गई है। समाज शास्त्रियों का कहना है कि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध अब आसान नहीं। क्योंकि यह खुशियों और भावनाओं को व्यक्त करने का साधन बन चुका है। एक तरह से यह सामाजिक आदान-प्रदान का जरिया है। एकाएक इस पर पाबंदी से युवाओं में गुस्सा फूट पड़ा और ङ्क्षहसक रूप ले लिया। इसलिए निर्णय सोचकर लेना होगा।

वजह बहुत गहरी है

चिंगारी एक दिन में नहीं सुलगती। सिर्फ सोशल मीडिया बैन करना ही इसका कारण नहीं हो सकता। यदि इसका गहराई से विश्लेषण किया जाए तो वजह बहुत गहरी हैं। वहां की लोकतंत्र व्यवस्था को यह देखना चाहिए कि युवाओं को रोजगार मिल रहा है या नहीं, आमजन को सुविधाएं मिल रही हैं या नहीं, खासतौर से शिक्षा, स्वास्थ्य, रहने की व्यवस्था और खाद्य सामग्री की पूर्ति हो रही है या नहीं।

-डॉ. जीके पाठक, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी

युवाओं की जरूरतों और भावना का ध्यान रखना जरूरी

सोशल मीडिया आज युवाओं की जरूरत बन चुका है। लगभग सभी लोग इसके आदी हो चुके हैं। मेरा मानना है कि किसी भी देश की रीढ़ उसकी युवा पीढ़ी होती है। आज के समय में युवाओं को सोशल मीडिया से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी जरूरतों और भावनाओं को ध्यान में रखना लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। यदि युवाओं को विश्वास में लेकर यह कदम उठाया जाता तो, हालात ऐसे (Nepal Violence) नहीं बनते। सरकार को यह निर्णय लेने से पहले युवाओं से चर्चा करनी चाहिए थी और उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए था।

-डॉ. शशांक शेखर ठाकुर, समाजशास्त्री, बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय,भोपाल

किसी भी निर्णय से पहले युवाओं को विश्वास में लेना जरूरी

युवाओं की सोशल मीडिया पर निर्भरता बढ़ गई है। सोशल मीडिया पर वे अपनी खुशियां और भावनाएं साझा करते हैं। कहीं न कहीं इससे उन्हें थोड़ी देर की खुशी भी मिलती है। लेकिन यदि उन्हें किसी तरह की चिंता या डिप्रेशन है तो, वे और असुरक्षित महसूस (Nepal Violence) करते हैं। उन्हें लगता है कि सोशल मीडिया से दूर होने पर उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। किसी भी निर्णय से पहले युवाओं को विश्वास में लेना चाहिए।

-संतोष रलवानिया, मनोवैज्ञानिक, नूतन कॉलेज