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पाकिस्तान के सबसे बड़े न्यूक्लियर साइंटिस्ट डॉ अब्दुल कदीर खान का निधन

इस्लामिक देशों में न्यूक्लियर बम के जनक परमाणु वैज्ञानिक डॉ अब्दुल कदीर खान का निधन, भोपाल में हुआ था जन्म, बंटवारे के समय पाकिस्तान चले गए थे। कई देशों को बैंची थी न्यूक्लियर बम की तकनीक।

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पाकिस्तान के सबसे बड़े न्यूक्लियर साइंटिस्ट डॉ अब्दुल कदीर खान का निधन

भोपाल. पाकिस्तान के सबसे बड़े न्यूक्लियर साइंटिस्ट डॉ. अब्दुल कदीर खान का रविवार की सुबह 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने मुस्लिम देशों के लिये पहला एटॉमिक बम बनाया था, इसलिए उन्हें इस्लामिक न्यूक्लियर बम का जनक भी कहा जाता है। हालांकि, उनपर कई देशों को परमाणु तकनीक बेचने के भी आरोप लगे थे। बताया जा रहा है कि, शनिवार रात को उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई थी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां रविवार की सुबह इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। आपको बता दें कि, अब्दुल कदीर खान का जन्म 1 अप्रैल 1936 को भोपाल में हुआ था।


न्यूक्लियर टेस्ट करने के बाद बने पाकिस्तानी हीरो

भारत ने मई 1998 में राजस्थान के पोखरण में पांच न्यूक्लियर बम का परीक्षण किया था। इसके जवाब में पाकिस्तान की ओर से भी ऐसा ही एक परीक्षण किया, जिसकी अगुआई डॉ कदीर द्वारा की गई थी। इसके बाद वे सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि कई इस्लामिक देशों को उन्होंने दुनिया में हीरो बन गए थे। इस परीक्षण के बाद पाकिस्तान परमाणु हथियार रखने वाला मुस्लिम देशों में अकेला और दुनिया का सातवां देश बन गया।

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भोपाल में जन्मे थे अब्दुल कदीर

अब्दुल कदीर खान का जन्म 1 अप्रैल 1936 को मध्य प्रदेश के भोपाल में हुआ था। बंटवारे के समय उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। डॉ कदीर खान पाकिस्तान के पहले नागरिक थे, जिन्हें तीन प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड दिए गए। उन्हें दो बार निशान-ए-इम्तियाज और एक बार हिलाल-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया था।

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कई देशों को बेची परमाणु तकनीक

1998 में यूएस चर्चित मैगजीन ने रिपोर्ट जारी की, जिसमें डॉ खान पर आरोप लगाया था कि, उन्होंने इराक को न्यूक्लियर सीक्रेट बेचे। कुछ साल बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने खुफिया जांच कराई, जिसमें सामने आया कि डॉ खान ने ईरान, नॉर्थ कोरिया, लीबिया और इराक को भी न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी बेची है। इसके बाद पूछताछ में डॉ खान ने अपने ऊपर लगे आरोपों को कबूल भी किया, जिसके बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने साल 2002 में उन्हें न्यूक्लियर प्रोग्राम से हटा दिया। इस कबूलनामे ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हडकंप मचा दिया। यूएस की उस मैगजीन द्वारा उन्हें 'मर्चेंट ऑफ मेनेस' यानी 'तबाही का सौदागर' नाम दिया था।

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