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Patrika Special: फिल्म नहीं हकीकत: यह है काली कमाई का कारवां

corruption case: अब सवाल यह उठता है कि क्या आयकर विभाग और लोकायुक्त जैसी एजेंसियां इस मामले की तह तक जा पाएंगी? या फिर वही होगा जो हमेशा होता है- कुछ 'मोहरों' को बलि का बकरा बनाकर 'गठजोड़' को बचा लिया जाएगा?

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patrika state editor vijay chaudhary

पत्रिका आईना- विजय चौधरी

corruption case: जंगल में लावारिस खड़ी कार, उसमें छिपा 52 किलो सोने का खजाना और 11 करोड़ रुपये की नकदी। सुनने में यह किसी सस्पेंस फिल्म की कहानी लगती है, लेकिन यह हमारे भ्रष्ट तंत्र की असलियत है। क्या यह कहानी हमें हैरान करती है? शायद नहीं। यह उस सड़ी-गली व्यवस्था का हिस्सा है, जो ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार के धागों में बुनी गई है। यह खेल सिर्फ चोरी और हेराफेरी तक सीमित नहीं है। यह कार 'काली कमाई की कार' है, जिसमें नेता और नौकरशाह कारोबारियों के साथ फर्राटे भरते हैं।

हूटर, आरटीओ और पुलिस की स्लाइड से सजी इस कार में वह काली कमाई छिपाई गई थी, जो सांठगांठ से हासिल की। यह कार उस भ्रष्ट व्यवस्था की चलती-फिरती एक ऐसी तस्वीर भी है, जिसने कायदे-कानून को अपने जूते की नोंक पर रख छोड़ा है।

वहीं, आरटीओ के एक पूर्व सिपाही घर से भी अकूत दौलत मिल रही है। ऐसा लगता है, जैसे किसी कुशल कलाकार ने भ्रष्ट तंत्र की एक मूर्ति गढ़ी हो- जहां हर चेहरा, हर हाथ इस गंदे खेल में गहराई तक लिप्त है। इस मूर्ति से कहीं चांदी की सिल्लियां तो कहीं सुनहरे बिस्किट झर रहे हैं। छापेमारी में बेनामी संपत्ति और काले धन का पूरा जाल सामने आ चुका है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस सोने और नकदी का कोई वारिस सामने नहीं आया। यह उस मानसिकता का प्रमाण है जिसमें भ्रष्टाचारी सोचते हैं, 'काला धन चला भी गया तो क्या, फिर से कमा लेंगे।' इस तरह की सोच हमारी व्यवस्था में व्याप्त गहरी सड़ांध की एक बानगी है।

नि:संदेह जो सोना और कैश बरामद हुआ है, वह प्रदेश के संसाधनों को लूटकर कमाया गया है। यह काली कमाई न केवल जनता के हक पर डाका है, बल्कि प्रदेश की आर्थिक सेहत को भी खोखला कर रही है।


अब सवाल यह उठता है कि क्या आयकर विभाग और लोकायुक्त जैसी एजेंसियां इस मामले की तह तक जा पाएंगी? या फिर वही होगा जो हमेशा होता है- कुछ 'मोहरों' को बलि का बकरा बनाकर 'गठजोड़' को बचा लिया जाएगा?

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