6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम ही नहीं होता ‘रोज़ा’, आपके शरीर का हर आज़ा है रोज़दार

सिर्फ भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है रोज़ा, आपके शरीर का हर अंग है रोज़दार, जानिए रोज़े का असल मकसद।

3 min read
Google source verification
news

सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम ही नहीं होता 'रोज़ा', आपके शरीर का हर आज़ा है रोज़दार

भोपाल/ रमज़ान का मुकद्दस महीना शुरु हो गया है। रमज़ान के पुरे महीने मुस्लिम धर्मावलंबी अल्लाह की इबादत करते हैं। इनमें खास होता है रोजा। अकीदतमंद सुबह से शाम तक बिना कुछ खाए-पिये रोज़ा रखते हैं। बता दें कि, रमजान के (30 या 29 दिवसीय) सभी रोज़े हर तंदुरुस्त बालिग मर्द-औरत पर फर्ज (जरूरी) हैं। अकीदतमंद रमज़ान के रोजे बड़ी फिक्रमंदी के साथ रखते हैं। लेकिन, क्या 'रोज़ा' वही होता है, जिसमें सिर्फ कुछ खाया-पिया न जाए? नहीं, रोजा सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं होता, बल्कि रोज़ा शरीर के हर अंग का होता है।

पढ़ें ये खास खबर- Ramzan Story : शुरु हो गया रहमत का अशरा, जानिए क्या है रमज़ान के इन दस दिनों की अहमियत


क्या होता है "रोज़ा"?

रोज़े के मायने सिर्फ यही नहीं है कि, इसमें सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रहना होता है। बल्कि रोज़ा वो अमल (कार्य) है, जो रोज़दार को पूरी तरह से पाकीज़गी (शुद्धीकरण) का रास्ता (मार्ग) दिखाता है। रोज़ा वो अमल है जो इंसान को बुराई करने से रोकता है और अच्छाई के रास्ते पर चलने का रास्ता गिखाता है। महीने भर के रोजों को जरिए अल्लाह (ईश्वर) चाहता है कि, इंसान अपनी रोज़ाना की जिंदगी को रमज़ान के दिनों के मुताबिक़ गुज़ारने वाला बन जाए, यानि संतुलित (नियमित)।

पढ़ें ये खास खबर- कोरोना से लड़ने के लिए इस विभाग में निकली भर्ती, इच्छुक उम्मीदवार ऐसे करें आवेदन


सिर्फ खाने पीने पर रोक का नाम नहीं रोजा

रोज़ा सिर्फ ना खाने या ना पीने का ही नहीं होता, बल्कि रोज़ा शरीर के हर आज़ा (अंग) का होता है। इसमें इंसान के दिमाग़ का भी रोज़ा होता है, ताकि, इंसान के ख्याल रहे कि, उसका रोज़ा है, तो उसे कुछ गलत बाते गुमान (सोचना) नहीं करनी। उसकी आंखों का भी रोज़ा है, ताकि, उसे ये याद रहे कि, उसका रोज़े में उसकी आखों से भी कोई गुनाह (पाप) ना हो। उसके मूंह का भी रोज़ा है ताकि, वो किसी से भी कोई बुरे अल्फ़ाज (अपशब्द) ना कहे और अगर कोई उससे किसी तरह के बुरे अल्फ़ाज कहे तो वो उसे भी इसलिए माफ कर दे कि, उसका रोज़ा है। उसके हाथों और पैरों का भी रोज़ा है ताकि, उनसे कोई ग़लत काम ना हों। यानी कुल मिलाकर रोज़ा इंसान को हर बुरा काम करने से रोकता है और अगर रोजा रखकर कोई इंसान बुरे कामों से बाज़ न आए, तो ऐसे इंसान का रोज़ा बेमानी है। उसने अल्लाह का हुक्म तोड़ा।

Health News : घर में रहते रहते बढ़ने लगी है टेंशन, आपका दिमाग शांत रखेंगे ये 5 स्ट्रेस बस्टर फूड

बुराइयों से रोकता है रोज़ा

आपको बता दें कि, इस तरह इंसान के पूरे शरीर का रोज़ा होता है, जिसका मक़सद ये भी है कि, इंसान बुराई से जुड़ा कोई भी काम ये सोचकर ना करे कि, वो रोज़े में है और यही अल्लाह अपने बंदे (भक्त) से चाहता है। वैसे तो हर इंसान में कोई ना कोई बुराई होती ही है, ऐसे में सोचिये कि, अगर इंसान रोज़ें की इस बेहतरीन (महान) खूबी से सीखकर अपनी जिंदगी को गुज़ारने वाला बन जाए, तो हालात (स्थितियां) कैसी हों ? इसलिए भी इस्लाम के नज़दीक रमज़ान के इन रोज़ों को हर मुसलमान के लिए फर्ज़ (ज़रूरी) बताया गया है।

पढ़ें ये खास खबर- लॉकडाउन 2: केन्द्र के आदेश के बाद इन राशन दुकानों को मिली सामान बेचने की परमीशन


रमज़ान का मक़सद? (उद्देश्य)

कुल मिलाकर रमज़ान का मक़सद (उद्देश्य) इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई के रास्ते पर लाना है। इसका मक़सद एक दूसरे से मोहब्बत (प्रेम) भाइचारा और खुशियां बाटना (आदान-प्रदान करना) है। रमज़ान का का मक़सद सिर्फ यही नहीं होता कि, एक मुसलमान सिर्फ किसी मुसलमान से ही अपने अच्छे अख़लाक़ (व्यव्हारिक्ता) रखे बल्कि, मुसलमान पर ये भी फर्ज (ज़रूरी) है कि, वो किसी और भी मज़हब के मानने वालों से भी मोहब्बत (प्रेम), इज़्ज़त (सम्मान), अच्छा अख़लाक़ रखे, ताकि दुनिया के हर इंसान का एक दूसरे से भाईचारा बना रहे। इसलिए भी मुसलमान पर रमज़ान के रोज़ों को फर्ज किया गया है।

जनतरी से जानिए रोज़े और सेहरीका सही वक्त