
भोपाल। शिवराज मंत्रिमंडल में हरदा से विधायक कमल पटेल को भी शामिल किया गया है। जब उमा भारती मुख्यमंत्री थी तो उनके मंत्रिमंडल में कमल पटेल राजस्व मंत्री थे। लेकिन, पार्टी में अंतरविरोधों के चलते धीरे-धीरे पटेल साइड लाइन होने लगे थे। यहां तक कि उन्हें मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। वहीं पार्टी में भी पूछ-परख घट गई थी। वे अपनी ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से भिड़ गए थे और अपनी ही सरकार को घेरने में जुट गए थे।
राजनीतिक जीवन पर एक नजर
-पटेल ने 1980 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से राजनीति की शुरुआत की।
-1980 में वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े।
-1990 में वे युवा मोर्चा की प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य बने।
-युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी बन चुके हैं।
-1993 में पहली बार हरदा विधानसभा से विधायक चुने गए थे।
-चार बार विधायक चुने जाने के बाद कमल पटेल 2013 में हार गए थे।
-2018 के चुनाव में कमल पटेल पांचवीं बार हरदा से विधायक बने।
-उमा भारती, बाबूलाल गौर और पहले भी शिवराज सरकार में मंत्री रहे।
- चिकित्सा शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं प्रशिक्षण, राजस्व एवं धार्मिक न्या धर्मस्व विभाग के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे।
चार जिलों के एसपी और कलेक्टरों से जान का खतरा
कमल पटेल ने इस मामले में चार जिलों के एसपी और कलेक्टरों से अपनी जान का खतरा बताते हुए राजनीति गर्मा दी थी। वे चारों एसपी और कलेक्टरों को बदलवाना चाहते थे। इस संबंध में पटेल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र भी लिखा था। उन्होंने भी नर्मदा में अवैध रेत खनन और अवैध परिहन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। उनका आरोप था कि शासन के आदेशों की अवहेलना कर कर प्रशासन रेत माफिया को संरक्षण दे रहा है। इसे लेकर उन्होंने हरदा समेत आसपास के चार एसपी और चार कलेक्टरों को हटाने की मांग की थी।
जब बढ़ गई थी कमल पटेल की मुश्किलें
दो साल पहले की बात है ब लगातार बयानबाजी और रेत खनन का मामला उठाकर कमल पटेल ने अपनी ही पार्टी को घर लिया था। तब पटेल की भी मुश्किलें बढ़ गई थीं और उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने नोटिस का जवाब देने को कहा था। उस समय पार्टी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने वाली थी। पटेल कई दिनों से अवैध खनन का मुद्दा उठा रहे थे। वे आसपास के कलेक्टरों और एसपी को हटाने की मांग जोर-शोर से कर रहे थे।
बेटे को बचाने लगा दिया था पूरा जोर
कमल पटेल के बेटे को जिला बदर कर दिया गया था। उस पर 14 मामले दर्ज थे। अपने बेटे को बचाने की कवायद में उन्होंने प्रदेशाध्यक्ष से भी सिफारिश कराने का प्रयास किया था। सप्ताहभर पहले ही कमल पटेल ने प्रदेश अध्यक्ष के पुत्र हर्षवर्धन का बचाव किया था। वह अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ हरदा में शराब के नशे में हंगामा कर रहे थे और पुलिसकर्मियों से दुर्व्यवहार करते पकड़ा गए थे। उनके बेटे और रिश्तेदारों पर तो कोई प्रकरण दर्ज नहीं हुआ, उलटा तीन पुलिसकर्मियों को ही लाइन अटैच कर दिया गया था। इसके बाद पटेल भी चाहते थे कि संगठन उनके बेटे को जिला बदर होने से बचाए। लेकिन, ऐसा न हुआ। इससे कमल पटेल काफी खफा हो गए थे।
साक्ष्य छुपाने का लगा था आरोप
- 5 मार्च 2008 में हुए दुर्गेश जाट हत्याकांड में सीबीआई ने कमल पटेल को मामले में साक्ष्य छुपाने का आरोपी बनाया।
- जांच के बाद 2011 में यह प्रकरण इंदौर सीबीआई कोर्ट से हरदा जिला न्यायालय ट्रांसफर किया गया था।
- 20 जुलाई 2011 को मामले में सुनवाई करते हुए हरदा एडीजे कोर्ट से कमल पटेल को दोषमुक्त कर दिया था।
- दुर्गेश जाट के पिता रामविलास और सीबीआई ने अपील की, लेकिन उच्च न्यायालय जबलपुर ने हरदा एडीजे कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।
यह भी है खास
-हरदा कलेक्टर रहते श्रीकांत बनौठ ने पूर्व राजस्व मंत्री कमल पटेल के बेटे और खिरकिया जनपद पंचायत के उपाध्यक्ष सुदीप पटेल को एक साल के लिए जिला बदर किया था।
-सुदीप पर हरदा समेत आसपास की तहसीलों में 14 आपराधिक मामले दर्ज हैं। हरदा थाने में चार, हंडिया में दो और छीपाबड़ में आठ दर्ज थे। सुदीप की पत्नी भी हरदा में जिला पंचायत अध्यक्ष कोमल पटेल हैं।
-पूर्व मंत्री पटेल की कलेक्टर बनोट सहित कई प्रशासनिक अधिकारियों से तनातनी थी। उन्होंने हाल में NGT में अवैध रेत उत्खनन को लेकर याचिका लगाई है। जिसमें अन्य लोगों के साथ बनोट का नाम भी शामिल किया गया था।
-पूर्व मंत्री के मुताबिक उनके बेटे पर सभी मामले झूठे लगाए गए, दो साल से कलेक्टर ने प्रकरण लंबित रखे। अवैध खनन का खुलासा होने पर कलेक्टर ने यह कार्रवाई की।
Published on:
21 Apr 2020 04:00 pm
बड़ी खबरें
View Allभोपाल
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
