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वनवासियों की मदद से खुद श्रीराम ने बनाया था अपना यह निवास, क्या आपने देखा है भगवान का यह रूप!

अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पर आज भी देशभर में जश्न मनाया जा रहा है। ऐसे में हम आपको भगवान श्रीराम के वनवास स्थल चित्रकूट की दास्तां बता रहे हैं। इस ऐतिहासिक मौके पर पत्रिका डॉट कॉम की मेरे राम सीरीज में जानिए चित्रकूट की उन कुटियों के बारे में जहां सीता और लक्ष्मण के साथ श्रीराम ठहरे थे।

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श्रीराम के वनवास स्थल चित्रकूट की दास्तां

अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पर आज भी देशभर में जश्न मनाया जा रहा है। ऐसे में हम आपको भगवान श्रीराम के वनवास स्थल चित्रकूट की दास्तां बता रहे हैं। इस ऐतिहासिक मौके पर पत्रिका डॉट कॉम की मेरे राम सीरीज में जानिए चित्रकूट की उन कुटियों के बारे में जहां सीता और लक्ष्मण के साथ श्रीराम ठहरे थे।

श्रीराम अयोध्या से वनवास के लिए चले तो प्रतापगढ़, प्रयागराज से होते हुए चित्रकूट पहुंचे। वनवास के दौरान श्रीराम ने सबसे ज्यादा समय यहीं बिताया था। राम करीब साढ़े 11 साल तक कामदगिरि पर्वत पर रहे थे। कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने यहां करीब 24 अलग अलग जगहों पर कुटी बनाई।

इनमें से कुछ कुटियोें के अवशेष आज भी हैं। इनमें सबसे अहम पर्ण कुटी है जोकि श्रीराम ने खुद अपने हाथों से बनाई थी। घास फूस और पत्तों से बनी इस कुटिया में ही वे रहे। यह स्थान यानि पर्ण कुटी चित्रकूट के रामघाट से 500 मीटर दूर हैे। राम सीता की कुटी से कुछ ही दूर लक्ष्मण जी की भी कुटिया थी।

चित्रकूट में श्रीराम के साढ़े 11 साल कामदगिरि पर्वत पर ही गुजरे थे। मंदाकिनी नदी के घाट के ठीक ऊपर उनकी पर्णकुटी थी। अब यहां पक्का मंदिर बना दिया गया है, पुजारी बच्चू महाराज बताते हैं कि यह मंदिर करीब 8 सौ साल पुराना है। यहां एक यज्ञ वेदी बनी है जिसके बारे में कहा जाता है कि श्रीराम के यहां पहुंचने से पहले ब्रह्माजी ने भी यहीं यज्ञ किया था।

श्रीराम ने वनवास काल के दौरान माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ चित्रकूट में घासफूस की इसी कुटिया में निवास किया था। यह कुटिया घासफूस और पत्तों से बनी थी इसलिए इसे पर्ण कुटी कहते हैं। इस पर्णकुटी को श्रीराम और लक्ष्मण ने स्थानीय कोल और भील साथियों के साथ मिलकर बनाया था।

इसी पर्णकुटी के स्थान पर अब भव्य मंदिर बना दिया गया है। भक्तों में इस मंदिर को लेकर बड़ी आस्था है। श्रीराम और माता सीता की उपस्थिति का अनुभव करने यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। पर्णकुटी को ही मंदिर का स्वरूप दिया गया है। इस मंदिर में भगवान राम और माता सीता की मूर्ति स्थापित है।

यहां एक और पर्णकुटी है जिसमें लक्ष्मण और शेषनाग की प्रतिमाएं हैं। यहां के पुजारी बच्चू महाराज ने बताया कि भगवान राम ने यहां 11 साल और 6 माह बिताए थे। श्रीरामचरितमानस के अयोध्या कांड में भी इसका जिक्र किया गया है। एक कुटी में राम और माता सीता जबकि दूसरी कुटी में लक्ष्मण रहते थे।

मंदिर में राम को वनवासी के रूप में दिखाया गया - चित्रकूट में यह पर्णकुटी मंदाकिनी नदी के बिल्कुल तट पर स्थित है। इस मंदिर के लिए चारों दिशाओं से चार रास्ते हैं। मंदिर में राम को वनवासी के रूप में दिखाया गया है। मंदिर को वनवासी राम मंदिर भी कहते हैं।

पर्णकुटी से बाहर राम घाट दिखाई देता है। खास बात यह है कि चित्रकूट में भगवान श्रीराम की कुल 24 कुटियां थीं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण पर्णकुटी को ही माना जाता है।

ऐसे पहुंचें चित्रकूट की पर्णकुटी
चित्रकूट पहुंचने के लिए कई बसें, टैक्सी उपलब्ध रहती हैं। एमपी का सतना जिला मुख्यालय यहां से सबसे निकटतम शहर है। सतना से टैक्सी से भी चित्रकूट पहुंचा जा सकता है। ट्रेन से चित्रकूटधाम कर्वी रेलवे स्टेशन सबसे पास है जहां से राम घाट केवल 10 किलोमीटर है। रामघाट से पर्णकुटी महज 500 मीटर दूर है।

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