ग्राहकों को कर रहे हैं मना
गांधी नगर में धोबी का काम करने वाले चुन्नीलाल पंवार ग्राहकों को अब कपड़े धोने से मना ही करने लगे हैं। वहीं हनुमान हत्था चौक में कपड़ों पर प्रेस (इस्तरी) करने वाले अमित ने बताया कि नहर बंदी से पूर्व प्रतिदिन डेढ़ सौ कपड़े धोने के लिए आते थे, लेकिन अब अगर कोई नियमित ग्राहक है तब ही कपड़े धोते हैं और वह भी बेहद कम। नए ग्राहकों को तो मना ही कर रहे हैं। वहीं माजिसा का बास के ओमप्रकाश धोबी ने तो कपड़े ही धोने बंद कर दिए हैं। पहले तो वे टैंकर डलवा रहे थे, लेकिन अब दाम बढ़ाने के कारण यह भी बंद कर दिया है।
घरों में पानी नहीं, इसलिए दे रहे कपड़े
इस समय पीने के पानी तक के संकट ( Bikaner Water Crisis ) को देखते हुए लोग भी कपड़े धोबी को देने लगे हैं, लेकिन धोबी धोने से ही मना कर रहे हैं। उनका कहना है कि पानी के टैंकर के दाम बढ़ने के कारण कपड़े धोने के दाम बढ़ाने पड़ते हैं, लेकिन ग्राहक ज्यादा पैसा देने के लिए तैयार नहीं होते। ऐसे में जब तक पेयजल किल्लत दूर नहीं हो जाती, तब तक हम कपड़े धोने का काम नहीं करेंगे।
नियमित ग्राहकों के अलावा किसी को कैंपर नहीं
कैंपरों के माध्यम से पानी की आपूर्ति करने वाले व्यापारियों का कहना है कि नहरबंदी का असर ( Water Crisis In Bikaner ) उनके कारोबार पर भी पड़ा है। कैंपर सप्लाई करने वाले शोफिन ने बताया कि पहले नहरबंदी ऊपर से टैंकर वालों के दाम बढ़ाने से उनका व्यवसाय भी प्रभावित हुआ है। हालात यह है कि नियमित ग्राहकों को भी पर्याप्त कैंपर नहीं दे पा रहे हैं, नए ग्राहक तो दूर की बात है। शहर में पानी कैंपर के करीब दो सौ व्यापारी हैं, सभी की हालत यहीं है। गौरतलब है कि इस दौरान टैंकर एक हजार से पन्द्रह सौ रुपए के बीच मिल रहा है। गनीमत है कि इस समय शादियों का सीजन नहीं है, नहीं तो हालात और विकट हो जाते।