
cyber crime
वर्तमान दौर में देश को कैशलेस करने की बातें की जा रही हैं। ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करने पर जोर दिया जा रहा है जबकि बीकानेर में साइबर क्राइम रोकने वाले विशेषज्ञ नहीं होने के कारण एटीएम कार्ड से ठगी करने वाले ही नहीं पकड़े जा रहे।
पुलिस साइबर क्राइम करने वालों को पकडऩे में नाकाम साबित हो रही है। बीते तीन साल में दर्ज मामलों में किसी एक में भी पुलिस को सफलता नहीं मिली है। नतीजन साइबर क्राइम बढ़ता ही जा रहा है।
पुलिस अधिकारियों व जानकारों का कहना है कि कैशलेस के बाद ऑनलाइन ठगी व साइबर क्राइम बढऩा तय है। इसके लिए पुलिस के पास अभी संसाधनों की कमी है। बैंक खाते व एटीएम से ऑनलाइन ठगी कर रुपए निकलने की घटना इन दिनों बढ़ रही है।
तीन वर्षों में जिले में ऑनलाइन ठगी के 53 प्रकरण दर्ज किए गए लेकिन पुलिस किसी भी मामलों का खुलासा नहीं कर पाई है। ठगी के कई प्रकरणों में पुलिस ने या तो एफआर लगा दी या जांच के नाम पर खानापूर्ति कर रही है।
सबसे अधिक घटनाएं नयाशहर, कोटगेट और सदर थाने क्षेत्र में हुई हैं। वर्ष 2014 से सितंबर 2016 तक ऑनलाइन ठगी के दर्ज मामलों के मुताबिक कई लोगों को झांसा देकर ठगों ने उनके बैंक खाते से एक लाख से अधिक रुपए निकाल लिए।
ऑनलाइन ठगी के ज्यादातर मामलों में कम्प्यूटर संबंधी जानकारी रखने वाले शातिर अपराधी फर्जी बैंक अधिकारी बनकर फोन करते हैं और झांसा देकर एटीएम के पासवर्ड व बैंक खाता संबंधी निजी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।
इसके बाद में उनके खातों से ऑनलाइन खरीदारी कर लेते हैं या नकदी रुपए निकाल लेते हैं। वर्ष 2014 से दिसंबर 2016 तक बीकानेर में ऑनलाइन ठगी के 53 मामले दर्ज हुए जो सभी मामले अज्ञात ठगों के खिलाफ दर्ज हुए।
साइबर क्राइम
वर्ष मामले
2014 15
2015 17
2016 21
नहीं बताएं पासवर्ड
प्रकरणों की जांच चल रही है। ऐसे फर्जी फोन कॉल से स्वयं को सतकर्ता बरतनी होगी। किसी को अपने पासवर्ड नहीं बताएं। तभी ऑनलाइन ठगी की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है। पुलिस भी ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए पूरे प्रयास कर रही है।
डॉ.अमनदीप कपूर, एसपी बीकानेर
पुलिसकर्मी भी शिकार
ऑनलाइन ठगी की घटना के शिकार बीकानेर के दो पुलिसकर्मी भी हुए हैं। जिनके एटीएम पिन चोरी कर एवं फोन कर खाता संबंधी जानकारी लेकर रुपए निकाल लिए गए। इस संबंध एक मामला जेएनवीसी थाने में दर्ज भी हुआ था। इसके अलावा बैंककर्मी, शिक्षक सहित पढ़े-लिखे तबके के लोग ज्यादा शिकार बने हैं।
एक दिन, सात मामले
दिसंबर-2016 में सात लोग साइबर क्राइम के शिकार बने। हनुमान सहाय के खाते से 43 हजार 500 रुपए, राधाकिसन के 28 हजार 200, रामादेवी के खाते से 9000 रुपए, हड़मान के 13 हजार रुपए खाते से निकल गए। इनमें से केवल हनुमान सहाय ने ही सदर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई।
विफलता के कारण
पुलिस के पास साइबर अपराध रोकने के लिए विशेषज्ञ अधिकारी नहीं हैं। इस कारण अपराधों का खुलासा नहीं हो रहा है। इसके अलावा ऐसे मामलों में पुलिस तह तक जाने का प्रयास ही नहीं कर रही। दबाव आने पर जरूर नाममात्र की कागजी कार्रवाई ली जाती है,
इसके बाद फाइल बंद हो जाती है। या फिर अधरझूल में अटकी रहती है। ऑनलाइन ठगी करने वाले नक्सलवाद झारखंड क्षेत्र के होते हैं जो फर्जी सिम व नाम-पत्ते से वारदात को अंजाम देते हैं, जिन्हें पकड़ा मुश्किल होता है।
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