
भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण देने और मीडिया की आजादी पर अंकुश लगाने वाले काले कानून को रद्द कराने के लिए राजस्थान पत्रिका की मुहिम 'जब तक काला, तब तक ताला' सोमवार को सिरे चढ़ गई। जनता की आवाज और लोकतंत्र के प्रहरी पत्रिका का दबाव रंग लाया।
मुख्यमंत्री ने सदन में काला कानून को वापस लेने की घोषणा की। इससे प्रदेश में पत्रिका के पाठकों और आमजन में खुशी की लहर है। सभी ने इसे लोकतंत्र की जीत बताते हुए जश्न मनाया। लोगों ने पत्रिका की मुहिम को साधुवाद दिया, वहीं सरकार के इस कदम पर यह प्रतिक्रियाएं दीं-
हार माननी पड़ी
यह अच्छी बात है कि सरकार ने काला कानून वापस ले लिया है। इस कानून का सर्वत्र विरोध हो रहा था। विधानसभा में और विधानसभा के बाहर सरकार के खिलाफ इस कानून को लेकर हंगामे, विरोध प्रदर्शन हुए।
वैसे तो जन विरोध को देखते हुए सरकार को यह कानून प्रवर समिति के पास ही नहीं भेजना चाहिए था। सरकार को आखिरकार हार माननी पड़ी। एक जिद्दी भरे घटनाक्रम का पटाक्षेप हो गया। राजस्थान पत्रिका ने जो पत्रकारिता धर्म निभाया, उससे लोकतंत्र को मजबूती मिली और सरकार की तानाशाही पर
अंकु श लगा।
अक्षय चन्द्र गोदारा, एडवोकेट
मुहिम सफल रही
राजस्थान पत्रिका की मुहिम सफल रही। सरकार पहले ही मान लेती। पत्रिका के इस मुद्दे पर कदम ने लोकतंत्र में मीडिया की चौथे स्तम्भ के रूप में भूमिका की स्थापना को साबित किया है। पत्रिका का यह कदम सराहनीय है। सरकार की हठधर्मिता का हश्र भी जनता के सामने आया है। जनता और मीडिया के दबाव में सरकार की मनमानी पर अंकुश साबित हुआ है।
आनन्द पणिया, कर्मचारी नेता
दायित्व निभाया
काले कानून के विरुद्ध राजस्थान पत्रिका की मुहिम को जन समर्थन मिला है। पत्रिका ने लोकतंत्र में मीडिया का पूरा दायित्व निभाया है। जनता का अंकुश लोकतंत्र में साबित हुआ है। दमन के तौर तरीकों का जब विरोध होता है तो दमन को झुकना पड़ता है। सरकार के सामने जनता की जीत हुई है, जिसका प्रतिनिधित्व पत्रिका ने किया है। यह जनता के साथ पत्रिका की भी जीत है।
मालचन्द तिवारी, साहित्यकार
अभियान की सफलता
बधाई हो पत्रिका। लोकतंत्र में किसी भी अन्याय के खिलाफ तुरंत कार्रवाई हो। यह काला कानून भी जन विरोध के चलते सरकार को वापस लेना पड़ा। सरकार ने ऐसा करने की बजाय इस कानून को संरक्षण देने का प्रयास किया। अंतत: सरकार को झुकना पड़ा। मीडिया के दबाव में काला कानून वापस लेना पड़ा। यह पत्रिका के अभियान की सफलता है।
डॉ. मदन सैनी, कॉलेज व्याख्याता
हुआ जन विरोध
काला कानून का जन विरोध हुआ। राजस्थान पत्रिका ने जनहित में सरकार के दबाव के बावजूद मुद्दे को जीवित रखा। आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा। यानी लोकतंत्र में सरकार के ऊपर जनता है, यह साबित हो गया है। पत्रिका को जनता का पूरा समर्थन मिला।
बाबू लाल सेवग, नागरिक
जनहित की रक्षा
काला कानून सरकार ने वापस लिया, यह बहुत अच्छा हुआ। अब लोकतंत्र में नौकरशाही हावी नहीं हो सकेगी। अगर यह कानून लागू हो जाता तो नौकरशाही हावी रहती। पत्रिका के मुहिम की यह बड़ी सफलता है। कानून वापस लेने से जनहित की रक्षा हुई है।
डॉ. हरमीत सिंह, बीकानेर
स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूती
स्वतंत्रता का अधिकार कर्तव्य के साथ जुड़ा हुआ है। कर्तव्य का निर्वाह वो ही ठीक से कर सकता है, जो स्वतंत्र हो। सरकार उदण्डता पर उतर आई। स्वतंत्रता के अधिकार का भी हनन करने का कानून बना दिया। स्वतंत्रता का हनन नहीं होना चाहिए। सच को छीनने के लिए कानून बने तो गलत है। कानून वापस लेने से लोकतंत्र की ताकत प्रमाणित होती है।
चन्द्रशेखर श्रीमाली,शिक्षाविद्
जनता को राहत
काला कानून वापस लेने का मतलब जनता के सामने आने वाले को दिक्कतों से छुटकारा है। अगर यह कानून लागू हो जाता तो जनता पिसती जाती। पत्रिका ने जनहित में लम्बा संघर्ष किया। यह सराहनीय कार्य है। इस कानून से जनता को होने वाली दिक्कतों से छुटकारा मिल गया।
मोहन लाल भंसाली, व्यापारी
दबाव से लिया वापस
काले कानून के चलते सत्तारूढ़ पार्टी उप चुनाव हार गई। विधानसभा में इस कानून का जमकर विरोध हुआ। इससे पहले सरकार ने कानून वापस लेने की बजाय प्रवर समिति को भेज दिया। अब सरकार को जन विरोध के चलते अहसास हुआ है। दबाव में ही सरकार ने कानून वापस लिया है।
दिनेश व्यास, नागरिक
अधिकारों की पुनस्र्थापना
काला कानून वापस लेने से नागरिक अधिकारों की पुनस्र्थापना हुई है। सरकार को जन भावना के सामने झुकना पड़ा। पत्रिका के साथ जनता ने कदम से कदम मिलाया। मीडिया को जनसेवकों की शिकायतें जनता के सामने लाने का अधिकार है। यह अधिकार सुरक्षित रह गया है।
डॉ. एके गहलोत, पूर्व कुलपति
देर आयद दुरुस्त ...
काला कानून वापस लेना सरकार का देर आयद दुरुस्त आयद जैसी बात है। सरकार को जन भावना के अनुरूप गलत कदम वापस लेना पड़ा। यह जनता व जनता के प्रहरी पत्रिका की जीत है।
पुखराज चौपड़ा, व्यापारी
तो पनपता भ्रष्टाचार
काला कानून वापस लेना लोकतंत्र की मजबूती है। यह कानून वापस नहीं लिया जाता तो भ्रष्टाचार और पनपता। नौकरशाही की मनमानी बढ़ती। जनता को परेशानी हुई। काला कानून वापस लेने के लिए पत्रिका का सरकार पर दबाब कारगर साबित हुआ।
भंवरलाल बडग़ुजर, बीकानेर
सिद्धांतों पर खरी पत्रिका
राजस्थान पत्रिका ने सही मायनों में काले कानून के खिलाफ जो जंग लड़ी थी, उसी की बदौलत सरकार को काले कानून को वापस लेना पड़ा। पत्रकारिता के सिद्धांतों पर पत्रिका शतप्रतिशत खरी उतरी है। काले कानून के चलते भ्रष्टाचार और भ्रष्ट लोगों को बढ़ावा मिलता।
घनश्याम लखाणी, अध्यक्ष, मोहता चौक व्यापार मण्डल
Published on:
20 Feb 2018 08:30 am
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