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#राजस्थान_का_रण : गर उम्र ने छुड़वाई सियासत तो पोते संभालेंगे विरासत

ऐसा नहीं है कि बीकानेर राजनीति के परिवारवाद में नया हो। यहां वर्षों से राजनीति बाप से बेटे या पोतों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है।

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जयभगवान उपाध्याय/बीकानेर. उम्रदराज होने के बावजूद सूबे की सियासत में ताल ठोक रहे नेताओं की लंबे समय तक राजनीतिक महत्वाकांक्षा और सक्रियता के चलते उनके बेटों को तो राजनीति में कुछ करने का मौका नहीं मिला, लेकिन अब दादा की बढ़ती उम्र देख पोते उनकी राजनीतिक विरासत संभालने को तैयार हैं।

कई विधायकों के पोते राजनीति के कॅरियर को अपनाने की जुगत में लगे हैं। ऐसा नहीं है कि बीकानेर राजनीति के परिवारवाद में नया हो। यहां वर्षों से राजनीति बाप से बेटे या पोतों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है। यहां तक की बेटे की बहू के राजनीति में आने के किस्से भी चर्चा में रहे हैं। राजनीति में जब से युवा पीढ़ी को मौका दिए जाने की बातों ने तूल पकडऩा शुरू किया तब से यहां दादा की राजनीति पर पोतों की नजर पड़ी हुई है। पिछले कुछ वर्षों से बजुर्ग विधायकों के साथ उनके पोतों ने न केवल राजनीति की गुणा-भाग सीखने का काम किया बल्कि उनकी विरासत को संभालने के मौके भी तलाशे।

दादा की पाठशाला में सक्रिय पोते: बीकानेर पश्चिम विधानसभा के विधायक डॉ. गोपाल जोशी के पौत्र विजय मोहन जोशी लम्बे समय से सक्रिय है। लूणकरनसर के विधायक मानिक चंद सुराणा के पोते सिद्धार्थ सुराणा भी पिछले पांच साल से अपने दादा के साथ सभाओं में दिख रहे हैं। बीकानेर के उस्मान आरिफ जो यूपी में राज्यपाल रहे, के पौत्र जिया उर रहमान भी लम्बे समय से दादा के पदचिह्नों पर चलकर राजनीति के समीकरण समझ रहे हैं।

उनकी सक्रियता को देखते हुए पार्टी ने रहमान को यूथ कांग्रेस, जिला कांग्रेस कमेटी में महासचिव, प्रदेश कांग्रेस कमेटी में सचिव, चूरू सह प्रभारी, हिमाचल विधानसभा में चुनाव प्रभारी सहित विभिन्न जिम्मेदारियां सौंपी। श्रीडूंगरगढ़ विधायक किशनाराम नाई के पौत्र नितिन नाई भी राजनीति की भागदौड़ में लगे हैं।

इसी प्रकार श्रीकोलायत में 35 साल तक विधायक रहे बीजेपी के कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी के पौत्र अंशुमान सिंह भाटी भी अपने दादा की राजनीति को संभालने की तैयारी में हैं। बीकानेर के ही मक्खन जोशी के पौत्र अविनाश जोशी भी विधायकी की दौड़ में शामिल हो गए हैं। जोशी ने वर्तमान में आईटी सेल की जिम्मेदारी संभाल रखी है।

..तो दावा रहेगा बरकरार

असल में कांग्रेस और बीजेपी की राजनीति में ऐसे कई अवसर आए जब पार्टियों ने बुजुर्ग नेताओं को राजनीति से किनारे कर दिया। उम्र के चलते ही लूणकरनसर के विधायक मानिक चंद सुराणा को बीजेपी पार्टी ने टिकट नहीं दी थी। यह अलग बात है कि सुराणा ने निर्दलीय का चुनाव लड़कर अपनी विधायकी कोबरकरार रखा। ऐसा माना जाता है कि पार्टी अगर ढलती उम्र के कारण टिकट देने से इनकार करती है तो दादा अपने पोते के माध्यम से टिकट की दावेदारी करवा सकते हैं।

बेटे, सास बहू भी सक्रिय

ऐसा नहीं है कि दादा की विरासत को उनके पौत्र ही संभालते हैं। बीकानेर में पिता से पुत्र और सास से बहू तक राजनीति में सक्रियता के उदाहरण हैं। पूर्व विधायक देवी सिंह भाटी के पुत्र महेन्द्र सिंह भाटी सांसद रहे। हालांकि बाद में उनकी सड़क हादसे में मृत्यु हो गई। प्रधान रहे जेठाराम डूडी के पुत्र रामेश्वर डूडी राजनीति में उतरे।

वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष हैं। श्रीकोलायत में प्रधान रहे रघुनाथ सिंह भाटी के पुत्र भंवर सिंह भाटी भी श्रीकोलायत के विधायक हैं। श्रीगंगानगर के सांसद रहे पन्नालाल बारूपाल की पुत्री जमना बारूपाल सांसद बनी। जमना बारूपाल की पुत्रवधु सुषमा बारूपाल को भी विधायक की टिकट मिली लेकिन वे जीत नहीं पाई। केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के पुत्र रवि शंकर भी टिकट की दावेदारी जता रहे हैं।