
माथा है न खोपड़ी, वोट-फॉर...ऐसे चुनावी नारे, जिसे सुन कर आप मुस्कुरा देंगे
विधानसभा चुनाव हों या फिर लोकसभा चुनाव। स्थानीय स्तर के चुनाव भी हों। जब तक इन चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में नहीं आते हैं, तब तक चुनावी रंगत फीकी नजर आती है। राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशी तो गंभीरता से चुनाव लड़ते हैं, क्योंकि उनके सामने सत्ता में आने का लक्ष्य होता है। जबकि स्वतंत्र रूप से खड़े हुए अधिकांश प्रत्याशी चुनाव में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए चुनाव मैदान में डटे रहते हैं। खास बात यह होती है कि जब तक चुनावों में कोई नारा या चर्चित आमसभा नहीं होती, तब तक माहौल फीका ही रहता है। माहौल को जमाने में निर्दलीय प्रत्याशी अक्सर अपनी भूमिका निभाते हैं। उनके लिए स्थानीय स्तर पर ही नारे गढ़े जाते हैं और कई बार यह नारे शहर में ऐसा गूंजते हैं कि लोगों जुबां पर चढ़ जाते हैं। बीकानेर को वैसे भीी मस्तानों का शहर कहा जाता है। इसलिए यहां पर कई निर्दलीय प्रत्याशी मस्ती लेने के लिए भी खड़े हो जाते हैं। हालांकि, हकीकत यह भी है कि राजस्थान के पहले विधानसभा चुनाव में यहां से निर्दलीय प्रत्याशी ही चुना गया था।
जब नारों से बन जाता था चुनावी माहौल
विधानसभा चुनावों में जब बीकानेर शहरी क्षेत्र से नंदलाल व्यास नंदू महाराज निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में थे, तो उनका चुनाव चिन्ह झोपड़ी था। उन्होंने काफी गंभीरता से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उनके समर्थकों ने एक नारा गढ़ा...माथा है न खोपड़ी, वोट-फॉर झोपड़ी। इसी तरह बबला जोशी भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे थे। उनके लिए लोकप्रिय हो चुका नारा था...बम-गोला चालसी, बबलो बाजी मारसी, बबलो बाजी मारसी, खुला-जु्आ चालसी। हालांकि, इस प्रकार के नारों ने तब पुलिस को हैरान-परेशान जरूर कर दिया था। इसके अलावा जेठमल मारु के निर्दलीय लड़ने के दौरान का नारा... जै जेठूजी हारसी, खुला भाट्टा चालसी भी लोगों के जुबान पर चढ़ा था। कवि भीम पांडिया ने खुद के लिए ही निर्दलीय प्रत्याशी रहते नारा गढ़ा था... भीम रौ तुनतुनियो बाजे।
Published on:
30 Oct 2023 02:13 am
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