
हाईकोर्ट (photo-patrika)
CG High Court: 100 रुपए रिश्वत मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आरोपी को 39 साल बाद बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि शिकायतकर्ता पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि आरोपी ने रिश्वत मांगी या स्वीकार की। मौखिक, दस्तावेजी और परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी आरोप सिद्ध नहीं कर सके।
मध्यप्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (एमपीएसआरटीसी) रायपुर के बिल सहायक रामेश्वर प्रसाद अवधिया पर बिल पास कराने के लिए 100 रुपए रिश्वत मांगने का आरोप था। यह आरोप निगम के ही एक कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा ने लगाया था। आरोप के अनुसार वर्ष 1981 से 1985 तक का बकाया बिल (एरियर) पास करने रामेश्वर प्रसाद ने उससे 100 रुपए रिश्वत मांगी। इसकी शिकायत कर्मचारी ने लोकायुक्त को दर्ज कराई।
सजा के खिलाफ कर्मचारी की अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि आरोपी ने रिश्वत मांगी या रिश्वत स्वीकार की यह साबित नहीं हुआ। मौखिक, दस्तावेजी और परिस्थितिजन्य साक्ष्य आरोप को सिद्ध नहीं कर सके। कोर्ट ने कहा कि 1947 और 1988 के भ्रष्टाचार निवारण कानूनों में अंतर है। नए अधिनियम के अनुरूप साक्ष्य न होने पर दोषसिद्धि कायम नहीं रह सकती। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए अवधिया को बरी कर दिया।
लोकायुक्त की टीम ने ट्रैप के लिए शिकायतकर्ता को 50-50 रुपए के रासायनिक लगे नोट देकर भेजा। फिर अवधिया को रंगे हाथों पकड़कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया। वर्ष 2004 में ट्रायल कोर्ट ने अवधिया को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 व 13(1)(डी) सहपठित 13(2) के तहत एक साल जेल की सजा सुनाई। साथ ही 1000 रुपए जुर्माना भी लगाया। अवधिया ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
Published on:
20 Sept 2025 11:52 am
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