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Bilaspur High Court: गवाही से पलटने पर भी नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी की सजा बरकरार, जानें किस मामले में HC ने की ये टिप्पणी

Bilaspur High Court: बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक मामले में निर्णय दिया कि किसी गवाह के अपनी गवाही से पलटने पर उसकी पूरी गवाही को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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हाईकोर्ट (Photo Patrika)

हाईकोर्ट (Photo Patrika)

Bilaspur High Court: बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक मामले में निर्णय दिया कि किसी गवाह के अपनी गवाही से पलटने पर उसकी पूरी गवाही को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस आधार पर एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के मामले में आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उसकी अपील खारिज कर दी।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा के कोर्ट ने सुनवाई के बाद दिए आदेश में कहा कि अगर मामले की पुष्टि चिकित्सा और वैज्ञानिक साक्ष्य से होती है, और गवाही के कुछ हिस्से विश्वसनीय लगते हैं तो कोर्ट प्रतिकूल (होस्टाइल) गवाह के साक्ष्य पर भी भरोसा कर सकता है। ऐसी गवाही को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता।

यह प्रकरण वर्ष 2018 में जिला बालोद के ग्राम तालगांव का है, जहां आरोपी रमेश कुमार पर एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म कर उसे गर्भवती करने का आरोप था। विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो), बालोद ने आरोपी को पॉक्सो अधिनियम की धारा 3/4 के अंतर्गत दोषी ठहराया और सात वर्ष के कठोर कारावास तथा 5000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई।

डीएनए रिपोर्ट से अपराध सिद्ध

हाईकोर्ट ने पाया कि मामले में डीएनए रिपोर्ट यह स्पष्ट रूप से सिद्ध करती है कि मृत शिशु के जैविक माता-पिता पीड़िता और आरोपी ही हैं। यह वैज्ञानिक साक्ष्य घटना से आरोपी के सीधे संबंध को प्रमाणित करता है। साक्ष्यों का अवलोकन कर कोर्ट ने कहा कि भले ही मुख्य गवाहों ने अदालत में अभियोजन का साथ नहीं दिया, अभियोजन ने चिकित्सकीय और वैज्ञानिक साक्ष्य के माध्यम से अपराध को संदेह से परे सिद्ध कर दिया है।

पीड़िता और पिता की गवाही पर उठे थे सवाल

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि पीड़िता और उसके पिता ने अदालत में अभियोजन का समर्थन नहीं किया, इसलिए दोषसिद्धि अवैध है। यह भी कहा गया कि पीड़िता की आयु का कोई ठोस प्रमाण नहीं है और स्वतंत्र गवाहों से आरोपों की पुष्टि नहीं होती। राज्य शासन की ओर से तर्क प्रस्तुत किए गए कि अभियोजन ने वैज्ञानिक और चिकित्सकीय साक्ष्य के माध्यम से आरोप प्रमाणित किए हैं।

उन्होंने विशेष रूप से डीएनए रिपोर्ट पर बल दिया। कोर्ट ने स्कूल रजिस्टर में दर्ज जन्मतिथि के आधार पर यह स्पष्ट किया कि घटना के समय पीड़िता नाबालिग थी। पीड़िता और उसके पिता दोनों ने न्यायालय में अभियोजन का साथ नहीं दिया। परंतु अदालत ने स्पष्ट किया कि सिर्फ इस आधार पर कि कोई गवाह विरोधी घोषित कर दिया गया है, उसकी पूरी गवाही को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।


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