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फिल्मों के लिए गुमनाम हो गईं Rakhee Gulzar, पनवेल के फार्महाउस में काट रही हैं जिंदगी

दिग्गज अभिनेत्री राखी ( Rakhee Gulzar ) गुमनामी में काट रहीं जिंदगी कई साल से पनवेल में फार्महाउस में बिता रहीं दिन फार्महाउस में उगाती हैं सब्जियां, पढ़ती हैं समुद्रों के बारे में किताबें

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फिल्मों के लिए गुमनाम हो गईं Rakhee Gulzar, पनवेल के फार्महाउस में काट रही हैं जिंदगी

फिल्मों के लिए गुमनाम हो गईं Rakhee Gulzar, पनवेल के फार्महाउस में काट रही हैं जिंदगी

-दिनेश ठाकुर
हॉलीवुड में ईवा मैरी सेंट, कैरोल कुक, जॉन कॉपलैंड और ग्लोरिया हेनरी जैसी अभिनेत्रियां 90 साल से ज्यादा की उम्र में भी सक्रिय हैं, लेकिन हिन्दी सिनेमा 73 साल की राखी को भुला चुका है। अपनी फिल्म 'शर्मीली' के गीत 'खिलते हैं गुल यहां, खिलके बिखरने को' की तरह हिन्दी सिनेमा के लिए राखी ( Rakhee Gulzar ) खिलके बिखर चुकी हैं। ऐश्वर्या राय बच्चन ( Aishwarya Rai Bachchan ) की 'दिल का रिश्ता' (2003) के बाद वे किसी हिन्दी फिल्म में नजर नहीं आईं। पिछले साल उनकी बांग्ला फिल्म 'निर्वाण' जरूर आई थी, लेकिन यह हिन्दी पट्टी के दर्शकों तक नहीं पहुंची।

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उम्र-तजुर्बा बढ़ा, कद्र घट गई
उम्र और तजुर्बा बढऩे के साथ किसी अभिनेत्री की कद्र बढऩे की परम्परा हमारी फिल्मी दुनिया में विकसित नहीं हुई। वर्ना क्या वजह है कि राखी जैसी समर्थ अभिनेत्री को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। उन राखी को, जिन्होंने 'दाग', 'कभी-कभी', 'तपस्या', 'दूसरा आदमी', 'जुर्माना', 'शक्ति', 'परमा', 'राम लखन' और 'करण अर्जुन' समेत जाने कितनी फिल्मों में अदाकारी के कैसे-कैसे रंग बिखेरे। राखी अब इतनी बदल चुकी हैं कि उन्हें देखकर यह हकीकत भी सपने की तरह लगती है कि कभी इसी हस्ती के लिए 'पल-पल दिल के पास तुम रहती हो' (ब्लैक मेल), 'सुर्ख जोड़े की ये जगमगाहट' (कभी-कभी), 'झिलमिल सितारों का आंगन होगा (जीवन मृत्यु). 'तेरे बिना भी क्या जीना' (मुकद्दर के सिकंदर) और 'आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन' (शर्मीली) जैसे गीत रचे गए थे।

सब्जियां उगाना, किताबें पढऩा
राखी कई साल से मुम्बई से कुछ दूर पनवेल में अपने फार्महाउस में दिन बिता रही हैं। वहां वे सब्जियां उगाती हैं और समुद्रों के बारे में किताबें पढ़ती हैं। अपने भीतर के समुद्र की बेचैन लहरों को शांत करने का शायद यही बेहतर जरिया है। उनके करीबी बताते हैं कि वे मूडी हो गई हैं और अपनी ही दुनिया में रहती हैं। बांग्ला फिल्मकार गौतम हलदर अपनी फिल्म 'मुक्ति' में उन्हें एक किरदार सौपना चाहते थे। बड़ी मुश्किल से राखी उनसे पटकथा सुनने को तैयार हुई थीं।

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हम रह गए, हमारा जमाना गुजर गया..
कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में राखी ने कहा था- 'जब मुझे पसंद की भूमिकाएं मिलना बंद हो गया, तो मैं खुद फिल्मों से दूर हो गई।' तेज रफ्तार वाले दौर में उनके बारे में सोचने और उनके लिए भूमिकाएं लिखने की फुर्सत किसके पास है? राखी जैसी संवेदनशील अदाकारा का दर्द यह है जमाना वैसा नहीं रहा, जैसा 30-40 साल पहले था। यह वही दर्द है, जिसके बारे में मोहसिन नकवी ने कहा था- 'मोहसिन हमारे साथ बड़ा हादसा हुआ/ हम रह गए, हमारा जमाना गुजर गया।'