scriptDanny Denzongpa को सालगिरह का तोहफा, 14 साल से अटकी पड़ी फिल्म ‘फ्रोजन’ आई उजाले में | Danny Denzongpa Birthday gift as Frozen movie in Bandra film festival | Patrika News

Danny Denzongpa को सालगिरह का तोहफा, 14 साल से अटकी पड़ी फिल्म ‘फ्रोजन’ आई उजाले में

locationमुंबईPublished: Feb 25, 2021 05:31:17 pm

बांद्रा फिल्म समारोह की ओपनिंग फिल्म बनी ‘फ्रोजन’
‘बाइस्कोपवाला’ का सलीके से नहीं हो पाया था प्रदर्शन
‘अजनबी’ को सिनेमाघर नसीब नहीं हुए, बन गई धारावाहिक

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-दिनेश ठाकुर

डैनी डेंग्जोंग्पा ( Danny Denzongpa ) की फिल्मी पारी 50 साल से जारी है। अदाकारी में उनके कारनामों के बारे में सभी जानते हैं। यह कम ही जानते होंगे कि जनाब गाने का भी जबरदस्त शौक रखते हैं। उन्होंने कुछ फिल्मी गाने गाए। सत्तर के दशक में उनके नाम से एक गजल एलबम आया। इसमें उन्होंने अश्क जालंधरी की गजल गायी थी, ‘वक्त के कारवां से आगे हूं/ बेरहम आसमां से आगे हूं/ हूं कहां आज ये खुदा जाने/ कल जहां था, वहां से आगे हूं।’ कोई शक नहीं, अदाकारी के मैदान में डैनी काफी आगे निकल आए हैं। वह 25 फरवरी को 73 साल के हो गए। इस बार उनकी सालगिरह खास रही। इसी दिन बांद्रा फिल्म समारोह शुरू हुआ है। इसमें ओपनिंग फिल्म के तौर पर डैनी की ‘फ्रोजन’ ( Frozen Movie ) दिखाई गई। शायद नाम का असर था कि यह फिल्म 14 साल से बर्फ में जमी हुई थी। कई विलायती फिल्म समारोह में शिरकत करने और नेशनल अवॉर्ड जीतने के बावजूद सिनेमाघर नसीब नहीं होने से इसे 14 साल का वनवास काटना पड़ा। डिजिटल बांद्रा फिल्म समारोह इसी तरह की फिल्मों को उजाले में लाने की पहल है।

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‘काबुलीवाला’ पर आधारित ‘बाइस्कोपवाला’
सिक्किम के छोटे-से गांव के जिस मकान में शेरिंग फिंत्सो डेंग्जोंग्पा (इन्हें ‘डैनी’ नाम जया बच्चन ने दिया) का जन्म हुआ, उसकी खिड़की दुनिया के तीसरे सबसे ऊंचे पहाड़ कंचनजंगा की तरफ खुलती थी। यानी डैनी ने बचपन से ही बुलंदी से आंख मिलाना शुरू कर दिया था। उनके साथ यह बड़ी विडम्बना रही कि लीक से हटकर बनी जिन फिल्मों में उन्होंने अदाकारी के नए रंग दिखाने की कोशिश की, वे आम दर्शकों तक नहीं पहुंचीं। ‘फ्रोजन’ की तरह ‘बाइस्कोपवाला’ ऐसी एक और फिल्म है। रवींद्र नाथ टैगोर की कथा ‘काबुलीवाला’ पर आधारित इस फिल्म में डैनी अफगानिस्तान से भारत आए पठान के किरदार में हैं। बलराज साहनी की क्लालिक ‘काबुलीवाला’ से यह फिल्म थोड़ी हटकर है। मूल कथा में पठान सूखे मेवों का कारोबारी है। डैनी की फिल्म में उसे बच्चों को बाइस्कोप दिखाने वाला बना दिया गया। मिनी नाम की बच्ची से उसके रूहानी रिश्तों के पसमंजर में कुछ नई घटनाएं जोड़ी गईं। ‘बाइस्कोपवाला’ 2017 के टोक्यो फिल्म समारोह में दिखाई गई थी। भारत में यह कुछ शहरों के सिनेमाघरों में उतरने के बाद भुला दी गई।

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गब्बर का किरदार हाथ से फिसला
अगर ‘बाइस्कोपवाला’ और ‘फ्रोजन’ समय पर आम दर्शकों के बीच पहुंचतीं, तो डैनी दो और मुख्तलिफ किरदार के लिए पहचाने जाते। जैसे वह ‘धुंध’ में तश्तरी फेंकने वाले सनकी और गुस्सैल पति या कांचा चीना (अग्निपथ), बख्तावर (हम) या खुदाबख्श (खुदा गवाह) के किरदार के लिए पहचाने जाते हैं। सत्तर के दशक में जब डैनी फिल्मों में खलनायकी को नए आयाम दे रहे थे, रमेश सिप्पी उन्हें ‘शोले’ में गब्बर सिंह का किरदार सौंपना चाहते थे। उन दिनों वह अफगानिस्तान में फिरोज खान की ‘धर्मात्मा’ की शूटिंग में व्यस्त थे। उनके इनकार के बाद ‘शोले’ में अमजद खान की एंट्री हुई। एक और अभिनेता का उदय हुआ। खलनायकी का एक और इतिहास रचा गया।

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‘साइनो’ चली, ‘बंधु’ पिट गई
बतौर निर्देशक ‘फिर वही रात’ (राजेश खन्ना, किम) बनाने के बाद डैनी ने निर्देशक मोहिन्दर बत्रा से ‘अजनबी’ नाम की फिल्म बनवाई। कश्मीर के आतंकवाद की थीम वाली इस फिल्म की कथा-पटकथा डैनी ने लिखी थी। वह फौजी अफसर के किरदार में थे, जबकि बाकी कलाकारों में परीक्षित साहनी, अमिता नांगिया, महेंद्र संधु, टीनू आनंद, गोगा कपूर आदि शामिल थे। लम्बे इंतजार के बाद भी जब इसके लिए सिनेमाघरों के रास्ते नहीं खुले, तो इसे 1996 में दूरदर्शन पर धारावाहिक के रूप में दिखाया गया। डैनी की नेपाली फिल्म ‘साइनो’ (1988) नेपाल में कामयाब रही। इसे हिन्दी में ‘बंधु’ (1992) नाम से बनाया गया। इसमें अर्चना पूरण सिंह उनकी नायिका थीं। यह फिल्म एक हफ्ते भी नहीं चली। भूगोल के हिसाब से लोगों की पसंद भी बदल जाती है।

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