अलविदा कहे कई साल हो चुके हैं दरअसल हम किसी और कि नहीं बल्कि 32 राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता सत्यजीत रे (Satyajit Ray) की बात कर रहे हैं। सत्यजीत रे को इस दुनिया को अलविदा कहे कई साल हो चुके हैं, लेकिन उनके द्वारा किए गए काम आज भी फिल्म मेकर्स के लिए मिसाल हैं। सत्यजीत रे ने अपने करियर में कई हिट फिल्में दी और सिनेमा को आगे पहुंचाया।
आइडिया निश्चय में बदल गया जब सत्यजीत रे तीन साल के थे तभी उनके पिता की मौत हो गई थी। जिसके कारण उनका बचपन काफी गरीबी से गुजरा था। सारी जिम्मेदारी मां के कंधों पर थी। इसलिए सत्यजीत रे ने ग्राफिक्स डिजाइनर की नौकरी करना शुरू किया, लेकिन फ्रांसीसी निर्देशक जां रेनोआ से उनकी मुलाकात ने सब पलटकर रख दिया और यहीं से पहली बार उनके दिमाग में फिल्म बनाने का आइडिया आया। साल 1950 में वह ऑफिस के काम से लंदन गए और यहां उन्होंने कई फिल्में देखीं, लेकिन फिल्म ‘बाइसिकल थीव्स’ देखकर उनका आइडिया निश्चय में बदल गया।
सरकार की मदद से फिल्म पूरी हुई भारत लौटने के बाद 1952 में उन्होंने नौसिखिया टीम के साथ पहली फिल्म पाथेर पंचोली की शूटिंग शुरू कर दी। हालांकि कोई फाइनेंसर न होने की वजह से फिल्म की शूटिंग बीच में ही रुक गई। इसके बाद उनकी मदद के लिए बंगाल सरकार आगे आई। सरकार की मदद से ये फिल्म पूरी हुई और सिनेमाघरों में रिलीज की गई। फिल्म तो सुपरहिट साबित हुई साथ में फिल्म को कई अवॉर्ड मिले। इसके बाद उन्होंने चारूलता, महापुरुष, कंचनजंघा जैसी कई हिट फिल्में बनाई।
पदाधिकारियों की टीम कोलकाता आई भारत सरकार की तरफ से सत्यजीत रे को 32 राष्ट्रीय पुरस्कार दिए गए। 1985 में उन्हें दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. 1992 में उन्हें भारत रत्न और ऑस्कर ‘ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट’ भी दिया गया, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से ऑस्कर लेने नहीं जा सके बल्कि उन्हें ऑस्कर देने खुद पदाधिकारियों की टीम कोलकाता आई थी। इसके करीब एक महीने बाद 23 अप्रैल 1992 को सत्यजीत रे का निधन हो गया था।