
Meena Kapoor की बरसी पर विशेष : कुछ और जमाना कहता है, कुछ और है जिद मेरे दिल की...
-दिनेश ठाकुर
तीन साल पहले 23 नवम्बर को जब मीना कपूर ( Meena Kapoor ) ने कोलकाता में आखिरी सांस ली थी, दुनिया के लिए वे भूली हुई दास्तान हो चुकी थीं। एक जमाना था, जब हिन्दी फिल्म संगीत में उनका नाम सितारे की तरह झिलमिलाता था और गानों में उनकी आवाज मिसरी-सी घोलती थी। अपनी करीबी दोस्त गीता दत्त ( Geeta Dutt ) की तरह मीना कपूर की आवाज में भी जो खराश थी, वह खास तरह के गानों को और खास बना देती थी। मोतीलाल और नादिरा की 'छोटी-छोटी बातें' का 'कुछ और जमाना कहता है, कुछ और है जिद मेरे दिल की' सुनिए, तो साफ महसूस होगा कि धीमी धुन वाले इस गाने में मीना कपूर ने कितनी सादगी से नायिका की भावनाओं को सुरीली अभिव्यक्ति दी है। इस सादगी में वह गहराई भी है, जो किसी के दिल की बात को दूसरों के दिलों तक पहुंचाती है। गायन में इसी सादगी और गहराई के दम पर लता मंगेशकर ( Lata Mangeshkar ) , गीता दत्त, शमशाद बेगम ( Shamshad Begum ) , आशा भौसले ( Asha Bhosle ) जैसी गायिकाओं के दौर में मीना कपूर ने अलग पहचान बनाई। चालीस से साठ के दशक तक उनकी आवाज दुनिया को मोहती रही।
'आई गोरी राधिका बृज में बल खाती'
राज कपूर के शुरुआती दौर की 'गोपीनाथ' में संगीतकार नीनू मजूमदार के साथ मीना कपूर का भजन 'आई गोरी राधिका बृज में बल खाती' काफी लोकप्रिय हुआ था। भारतीय समरसता (हार्मनी) पर आधारित इस रचना में मीना कपूर की आवाज मधुर रेखाकृति और चमक के साथ उभरी। राज कपूर को इस भजन की धुन इतनी पसंद थी कि कई साल बाद 'सत्यम् शिवम् सुंदरम्' में इसी धुन पर उन्होंने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से 'यशोमती मैया से बोले नंदलाला' (लता मंगेशकर) तैयार करवाया।
कई भावपूर्ण गीत गाए
मीना कपूर का गायन आवाज के माधुर्य के साथ पिच बदलने की क्षमता, साफ शब्दोच्चारण और कार्य की विविधता से लैस था। खासकर 'रसिया रे मन बसिया रे' (परदेसी), याद रखना चांद-तारों इस सुहानी रात को (अनोखा प्यार), मोरी अटरिया पे कागा बोले (आंखें), तोड़ गए अरमान भरा दिल (खेल) और 'बर्बाद मोहब्बत की छोटी-सी कहानी है' (फूल और कांटे) सरीखे भावपूर्ण गीतों को उन्होंने बुलंदी अता की। संगीतकार सी. रामचंद्र के साथ उनके 'आना मेरी जान संडे के संडे' (शहनाई) ने काफी धूम मचाई थी। मीना कपूर ने ज्यादातर गाने संगीतकार अनिल विस्वास (जिनसे बाद में उन्होंने शादी की) के लिए गाए। एस.डी. बर्मन, सी. रामचंद्र, मदन मोहन, रोशन, खय्याम आदि ने भी उनकी आवाज में कई सुरीले गाने रचे।
'रसिया रे मन बसिया रे'
साठ के दशक के दौरान अनिल विस्वास ने फिल्मों से संन्यास लेकर दिल्ली में बसने का फैसला किया, तो मीना कपूर भी फिल्म संगीत से दूर हो गईं। बाद में पति-पत्नी दूरदर्शन के कुछ कार्यक्रमों से जुड़े। बेले नृत्यों के लिए अनिल विस्वास की रचनाओं में भी मीना कपूर की आवाज सुनाई दी। मुम्बई में 1982 में पाश्र्व संगीत के स्वर्ण जयंती समारोह में लता मंगेशकर, सुरैया, शमशाद बेगम और राजकुमारी के साथ मीना कपूर भी शामिल हुईं। तब वह 52 साल की हो चुकी थीं। समारोह में उन्होंने अपना लोकप्रिय 'रसिया रे मन बसिया रे' सुनाकर सभी को भाव-विभोर कर दिया। उनके गायन में वही ताजगी थी, जो उस दौर में थी, जब उन्होंने पहली बार यह गाना गाया था।
Published on:
23 Nov 2020 03:43 pm
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