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कौन थीं पाकिस्तान की नूरजहां? जिनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग हुए थे शामिल, लता मंगेशकर भी थीं फैन

Noor Jehan Birthday: पाकिस्तान की वह सिंगर, जिनकी स्वर कोकिला लता मंगेशकर भी दीवानी थीं…

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मुंबई

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Saurabh Mall

Sep 20, 2025

Noor Jehan

पाकिस्तानी सिंगर नूरजहां की फोटो (सोर्स: एक्स और iMDB)

Noor Jehan Birthday Special Story: भारत की 'स्वर कोकिला' लता मंगेशकर की मधुर आवाज ने करोड़ों दिलों को छुआ, लेकिन क्या आप जानते हैं कि लता जी खुद जिस गायिका की दीवानी थीं, वह थीं पाकिस्तान की मशहूर सिंगर नूरजहां। अपनी जादुई आवाज से नूरजहां ने करीब 10,000 गाने गाए और अपने दौर में सुरों की दुनिया पर राज किया।

1946 की बॉलीवुड फिल्म अनमोल घड़ी का गाना 'आवाज दे कहां है' आज भी नूरजहां की सुरीली आवाज का जादू बिखेरता है। उनकी गायिकी, बेमिसाल खूबसूरती और अनोखा अंदाज उन्हें अपने समय की सबसे बड़ी हस्ती बनाता था। लोग उन्हें 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' यानी सुरों की रानी कहकर बुलाते थे।

21 सितंबर 1926 को पंजाब के कसूर (अब पाकिस्तान) में जन्मी नूरजहां का असली नाम अल्लाह राखी वसई था। बचपन से ही संगीत के प्रति उनका रुझान देखते ही बनता था। छोटी उम्र में शास्त्रीय संगीत सीखा और मंच पर गायन शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी आवाज ने ऐसी लोकप्रियता हासिल की कि वह हर दिल की धड़कन बन गईं। नूरजहां सिर्फ एक गायिका नहीं, बल्कि एक ऐसी शख्सियत थीं, जिन्होंने अपनी कला से इतिहास रच दिया।

भारत में शुरू किया करियर

नूरजहां ने अपना करियर भारत में शुरू किया था और फिल्मों में अभिनय के साथ-साथ अपनी गायकी का जादू भी बिखेरा। उनकी आवाज में मिठास और गहराई इतनी थी कि सुनने वाले दीवाने हो जाते थे।

अनमोल घड़ी (1946), जुगनू (1947) और मिर्जा साहिबान (1947) में उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों की जुबान पर हैं। बंटवारे से पहले वह भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी सितारों में से एक थीं, लेकिन 1947 में देश के विभाजन के बाद उन्हें अपना बसेरा पाकिस्तान में बनाना पड़ा। वहां जाकर भी उन्होंने अपनी गायकी से इतिहास रचा और पाकिस्तान की पहली महिला फिल्म निर्देशक भी बनीं।

नूरजहां की पहचान सिर्फ गायिका या अभिनेत्री के रूप में ही नहीं, बल्कि एक बेहद बोल्ड और आत्मनिर्भर महिला के रूप में भी रही। उन्होंने दो-दो शादियां कीं और अपने बच्चों के साथ जिम्मेदारियों को निभाया। उनका निजी जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा, लेकिन पेशेवर जीवन में उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी खूबसूरती और आत्मविश्वास ने उन्हें हर किसी की नजर में खास बना दिया।

भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर और नूरजहां की दोस्ती संगीत जगत की सबसे यादगार कहानियों में गिनी जाती है। लता जब फिल्मों में नया-नया गाना शुरू कर रही थीं, तब नूरजहां उनके लिए प्रेरणा थीं। नूरजहां न केवल लता की गायकी की तारीफ करती थीं, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी करती थीं। दिलचस्प बात यह है कि नूरजहां लता मंगेशकर को प्यार से लत्तो कहकर बुलाती थीं। दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि बंटवारे के बाद जब नूरजहां पाकिस्तान चली गईं, तब भी यह रिश्ता बरकरार रहा।

1951 में मशहूर कंपोजर सी. रामचंद्र, लता और नूरजहां से एक डुएट गीत रिकॉर्ड करवाना चाहते थे। इसके लिए वे लता मंगेशकर को लेकर अटारी बॉर्डर तक पहुंचे, लेकिन वीजा और पासपोर्ट की समस्या के कारण उन्हें आगे नहीं जाने दिया गया।

इस दौरान नूरजहां भी बॉर्डर पर पहुंच गईं और वहां दोनों की मुलाकात हुई। सी. रामचंद्र ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जैसे ही लता और नूरजहां एक-दूसरे से मिलीं, वे फूट-फूटकर रोने लगीं। यह दृश्य बेहद भावुक कर देने वाला था। दोनों गायिकाएं समझ चुकी थीं कि सरहदें भले ही देशों को बांट सकती हैं, लेकिन दिलों और दोस्ती को नहीं।

नूरजहां की दोस्ती सिर्फ लता मंगेशकर तक सीमित नहीं थी। वह धर्मेंद्र जैसे कलाकारों की भी अच्छी मित्र थीं और फिल्म इंडस्ट्री के कई लोगों के साथ उनके खास रिश्ते रहे। उनके बारे में कई किस्से आज भी चर्चा का हिस्सा हैं।

लंबे करियर के दौरान नूरजहां ने उर्दू, पंजाबी, सिंधी सहित कई भाषाओं में गाने गाए। उनकी गायकी की ताकत यह थी कि चाहे सुर ऊंचे हों या नीचे, वे सहजता से गा लेती थीं। यही वजह थी कि उन्हें सुनने वाले आज भी उनकी आवाज में जादू महसूस करते हैं। पाकिस्तान में उन्हें प्राइड ऑफ परफॉरमेंस, तमगा-ए-इम्तियाज जैसे कई सम्मान मिले।

अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल

कराची में 23 दिसंबर 2000 को नूरजहां ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए और उन्हें राजकीय सम्मान के साथ दफनाया गया। उनकी आवाज, उनकी फिल्में और उनके किस्से लोगों की यादों में आज भी जिंदा हैं।