
बुलंदशहर. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के शिकारपुर तहसील क्षेत्र के अहमदगढ़ में किसानों ने पारंपरिक खेती को छोड़ दिया और वो आज कामयाबी की नई इबारत लिख रहे है। किसानों की सोच में हुए बदलाव के कारण जहां अन्य किसानों की किस्मत भी बदली, अहमदगढ़ की पहचान सिघाड़ा उत्पादक गांव के रूप में होने लगी है। यहां किसानों ने बड़े स्तर पर सिघाड़े की खेती को अपने खेतों में जगह देकर अपनी अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया है।
अहमदगढ़ निवासी प्रगतिशील किसान किशन कश्यप और विनोद कुमार ने एक दशक पहले सिघाड़े की खेती की शुरुआत की थी। उपजाऊ जमीन पर सिघाड़े की खेती शुरू करने पर अन्य किसानों ने तब उपहास उड़ाया। लेकिन समय बदला और अब अहमदगढ़ क्षेत्र में तमाम किसान सिघाड़े की खेती कर रहे हैं। सिघाड़ा उत्पादक किसान बताते हैं कि पहले के मुकाबले अब परंपरागत खेती करना काफी मुश्किल भरा हो गया है। आलू, धान, मक्का, गेहूं, गन्ने की खेती अब किसानों के लिए अधिक लाभकारी नहीं रही। लगातार महंगी होती खेती के कारण ही किसानों का परंपरागत खेती से मोहभंग हो रहा है।
सिघाड़ा उत्पादक किसानों के अनुसार एक बीघा जमीन में सिघाड़े की फसल तैयार करने में तीन हजार रुपए की लागत आती है। फसल तैयार होने पर पंद्रह से बीस हजार की आमदनी आसानी से हो जाती है। सीजन में सिघाड़ा तीस से पैंतीस रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है। फसल को आवारा पशुओं द्वारा भी कोई नुकसान नहीं होता है।
किसान पप्पू का कहना है कि सिघाड़े की खेती के लिए नहर के आसपास की भूमि उपयोगी है । लखावटी ब्रांच की मध्य गंग नहर अहमदगढ़, मामऊ, ढकनगला, पापड़ी, दारापुर, सालबानपुर, सैदगढ़ी, मोरजपुर, मुरादपुर, बुधपुर आदि गांव के मध्य होकर गुजर रही है। नहर में पानी आते ही किसान अपने-अपने खेतों की डौल ऊंची कर उसमें करीब 4-5 फुट तक पानी भर देते हैं। इसके बाद खेतों में सिघाड़ा की बेल डाल दी जाती है।
किसान बाबूलाल बताते हैं कि पहले चार बीघा भूमि पर सिघाड़ा उगाकर देखा। पहले ही प्रयास में फायदा होने पर 20-20 बीघा तक भूमि को सिघाड़ा के लिए तालाब बना दिया। मात्र तीन माह में ही सिघाड़े की फसल तैयार हो जाती है। सबसे बड़ा लाभ है कि नगदी फसल होने के कारण मौके पर ही मिल जाती है और फसल को आवारा पशुओं द्वारा भी कोई नुकसान नहीं होता है।
Published on:
16 Oct 2021 05:08 pm
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