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रियातकालिन इस कुंए पर कहीं बंद न हो जाए परिंदो की गुटरगूँ .. पल रहें हजारों कबूतर

छौटे-छोटे घरोंदो से निकलकर ये शांति के दूत फडफड़़ाते, दाने चुगते और परिण्डो में भरे पानी में अठखेलियां करते बरबस ही लोगो का ध्यान खींच लेते है।

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बूंदी. लोगो के बीच यहां कबूतरों की गुटरगूँ ... भी सुनाई देती है। छौटे-छोटे घरोंदो से निकलकर ये शांति के दूत फडफड़़ाते, दाने चुगते और परिण्डो में भरे पानी में अठख्ेालियां करते बरबस ही लोगो का ध्यान अपनी ओर खींच लेते है। इन मूक परिंदो को यहां लोगो का संरक्षण मिल रहा है। लेकिन इन दिनों इनके संरक्षण पर खतरा मंडरा रहा है।

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कुंए के आस पास नगर परिषद ने लोहे की जालियां लगा दी। सुरक्षा के लिहाज से यह जाली तो सही है लेकिन जाली के बीच अगर गेट होता तो इन मूक परिंदो के लिए पानी की व्यवस्था सरल हो जाती है। कबूतरों की सेवा करने वाले 18 वर्षीय राजू की पीड़ा है कि उन्हें नियमित पानी नही मिल पा रहा। पानी के लिए जाली को पार करना पड़ता है जिससे कपड़े लोहे की जाली से उलझ कर फट जाते है, कई बार राजू इस चोटिल भी हो चुका। परिषद से गुहार लगाने के बाद भी लोहे की जाली पर गेट नही निकल पाया। ऐसे में लोगो की मांग है कि जल्द ही यहां गेट निकाला जाए।

रियासकालिन बाबा के नाम से प्रसिद्ध थी कुंए वाली गली-

शहर के कुंएवाली गली के नाम से पहचाने जाने वाली यह जगह कभी बाबा जी का मौहल्ला नाम से प्रसिद्ध थी। करीब 100साल से भी अधिक प्राचीन यह कुंआ बाबा जी की निजी सम्पत्ति हुआ करती थी जो दरबार के समय सैनिक के रूप में सेवा देते थे। लेकिन करीब 15 सालों से इसे कुंए वाली गली के नाम से जाना जाने लगा।

तो कौन करेगा इनका सरंक्षण-

रियासकालिन यह कुंआ अब पूरी तरह सुख चुका है। कभी यह लोगो के लिए पानी का अच्छा स्त्रोत हुआ करता था। इतिहास के पन्नों में सिमटे इस कुंए की कई रौचक कहानियां शुमार है। इस कुंए में पानी लबालब भरा हुआ रहता था। इन्द्रा मार्केट जो अब खाई के उपर बन चुका है इससे यह कुंआ ही नही इस क्षेत्र के दो कि.मी तक फैले क्षेत्र के पानी के स्त्रोत जुड़े हुए थे जिसमें रानी जी की बावड़ी भी शामिल थी

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यही से पानी की कनेक्टिविटी हुआ करती थी लेकिन खाई भरने के बाद आपस में कनेक्शन टूट गया और समय के साथ इस परिधि में आने वाले कुंए बावड़ी समय के साथ अपना अस्तित्व खो चुकी। 15 साल से कर रहें कबूतर की सेवा- चाय बेचने के साथ यहां राजू पिछले 15 सालों से कबूतरों की सेवा करने में लगा है।

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कबूतरों के लिए नियमित दाने पानी की व्यवस्था व साफ-सफाई का जिम्मा निभाते है। कुंए के आस पास की परिक्रमा में कबूतरों की अठेखिलयां बरबस लोगो को आकर्षित करती है। कुंए के आस पास करीब 1500 कबूतर डेरा जमाए रहते है। लेकिन अब नियमित दाने पानी की व्यवस्था नही हो पा रही है।

परिषद जल्द करे व्यवस्था-

प्रतिदिन सुबह के समय कबूतरों से यह कुंआ गुलजार रहता है। इनको चुग्गा देने का विशेष फल माना गया है ऐसे में नियमित यह सेवा जारी है। मनुष्य ही इनका संरक्षण नही करेगा तो ओर कोन करेगा परिषद ने कुंए को लोहे की जालियों से कवर कर लिया लेकिन इसमें गेट लग जाए तो नियमित यहां साफ- सफाई के साथ पानी की व्यवस्था भी हो सकेगी।
अभिमन्यु भाटिया बुजूर्ग बाहरली निवासी