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जुनून की इंतहा, 80 की उम्र में भी नही छूटा खेल का शैाक…बड़े कोच लेते है इनकी सलाह-

आज के दौर में जब बच्चे मोबाइल, वीडियो गेम, टीवी में लगे रहते है, नई पीढ़ी चार कदम चलने पर ही हाफ जाती है वहीं एक ऐसा शख्स भी है…

बूंदीDec 30, 2017 / 08:46 am

Suraksha Rajora

No year age of hobbies junun ki intha

football ke sath jayramdas

बूंदी. आज के दौर में जब बच्चे मोबाइल, वीडियो गेम, टीवी में लगे रहते है, नई पीढ़ी चार कदम चलने पर ही हाफ जाती है वहीं एक ऐसा शख्स भी है 80साल की उम्र में जिसके सिर पर खेल का जुनून सवार है। सुबह बाद में होती है लेकिन यह जनाब खेल के मैदान में पहले दिखते है। आलम यह है कि बड़े बड़े कोच भी इनसे सलाह लेते है। हम बात कर रहें है प्रायगपुरा से आए रिटायर्ड जयरामदास की।
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शिक्षा विभाग से सहायक कर्मचारी के पद पर 17 साल पहले रिटायर्ड हुए जयरामदास दो दिन से खास चर्चा में है। बूंदी के हायर सेंकड्री विद्यालय खेल मैदान में दमखम दिखा रहें सरकारी कर्मचारी मैदान से पहले इनसे टिप्स लेते है। इनकी धाक मैदान में ही नही सब के दिलों में देखी जा सकती है।
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जयपुर मंडल टीम को हौसला अफजाई के बीच उनकी ट्रेनिंग से लेकर देखरेख तक का जिम्मा बखुबी निभाते है। खेल को लेकर इनका जोश जुनून इस कदर है कि रिश्तेदार या परिवार में कोई काम भी हो तो उसे छोड़ पहले खेल को प्राथमिकता देते है। 45वी राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी खेलकूद प्रतियोगिता को लेकर ये पिछले एक महिने से अपने मंडल के कर्मचारियों को प्रशिक्षित कर रहें है। जीत को लेकर उत्साहित यह टीम खेल मैदान में पूरा दमखम दिखा रही है।

अपने दौर के ये चैम्पियन-


यूं तो जयरामदास सभी खेलों में माहिर है लेकिन उनका पंसदीदा खेल बॉलीबॉल है। अब तक कई मेडल जीत चुके जयरामदास 80 साल के इस पड़ाव में भी युवाओं को मैदान में पछाड़ देते है। जब पत्रिका टीम खेल प्रतियोगिता कवरेज के लिए पहुंची तो न सिर्फ सरकारी कर्मचारी बल्कि शिक्षा अधिकारी भी इनको ही तलाश रहे थे। बाबा के नाम से मशहुर जयरामदास से अधिकारी खेल व्यवस्था से लेकर सभी इंतजामों को लेकर राय शुमारी करते है।
पत्रिका से बातचित में उन्होनें बताया कि रिटायर्ड से पहले जब भी प्रतियोगिता में शामिल होते है उनकी टीम हमेशा विजेता ही रहती थी।


खर्च की परवाह भी नही-


खेल का जुनून ऐसा कि जयरामदास खुद के खर्च पर ही राज्यभर में होने वाली खेल प्रतियोगिता में शामिल होते है। चाहे केसी भी परिस्थिति हो उनका एक ही लक्ष्य होता है, अपनी टीम को प्रेरित करना। इनके जोश और उत्साह को देखते हुए इन्हें हर बार सम्मान भी मिलता है। कप्तान संजय नायक बताते है कि जब तक बाबा खेल मैदान में उनके साथ नही आते टीम का उत्साह नही बढ़ता। खास बात यह है कि वे अपने खुद के खर्चे से प्रतियोगिता में शामिल होते है और नि:स्वार्थ भावना से सभी टीम को टै्रनिंग देते है।

इनकी सेहत का राज
इनकी दिनचर्या सुबह साढ़े चार बजे से ही शुरू हो जाती है। सेहत को लेकर ये जनाब इतने अवेयर है कि खेल मैदान में इनको देखकर हर कोई अचंभित हो जाता है। वे बताते है कि उनकी रूटीन जिंदगी में योगा शामिल रहता है। सुबह पानी पीते है फिर योगा और खेल मैदान में अपने हमदराज साथियों और युवा खिलाडिय़ों को प्रशिक्षित करते है। इनकी सेहत का राज भी यही है अपने साथियों को विजेता के रूप में देख इनका चार गूना खंून बढ़ जाता है।
Read More: रोज पांच किलो दूध और हेल्दी भोजन इनकी रोजर्मरा में शुमार है। युवाओं को नशीले पदार्थी से दूर रहने की नसीहत देने और खेल को जीवन में उपयोगी बताने वाले जयरामदास खेल जगत में एक मिसाल बने है।

जिला शिक्षा अधिकारी तेजकवर व् ओम प्रकाश गोस्वामी अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी ने बताया की जयरामदास बाबा रिटार्यड होने के बाद भी प्रतियोगिता में अपनी भागीदारी निभाते है सभी व्यवस्थाओं से लेकर टीम को ट्रेनिंग देते है। शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी इन्ही से सलाह लेते है।

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