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Budget 2022-23 preview: महामारी से आगे बढ़ने की चुनौती के बीच संरक्षण और विकास के बीच संतुलन की संभावना

Published: Jan 31, 2022 04:26:22 pm

Submitted by:

Mahima Pandey

अपने चौथे बजट में, निर्मला सीतारमण के संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करेंगी। बजट से पहले उसे 5 बिंदुओं में समझते हैं।
 

Budget 2022: 5 preview Points of Economic Survey 2022

Budget 2022: 5 preview Points of Economic Survey 2022

बजट सत्र की शुरुआत हो चुकी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में आर्थिक सर्वे प्रस्तुत कर दिया है। इस सर्वे में इसमें वित्त वर्ष 2022 के लिए वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने की उम्मीद जताई गई है। आर्थिक सर्वे के अनुसार, आर्थिक सर्वेक्षण ने मार्च 2023 को समाप्त होने वाले अगले वित्तीय वर्ष के लिए 8-8.5% की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है। कल 1 फरवरी को वित्त मंत्री बजट 2022-23 पेश करेंगी। वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी ग्रोथ के 9.2 फीसदी, कृषि सेक्टर की ग्रोथ के 3.9 फीसदी , इंडस्ट्रियल ग्रोथ के 11.8 फीसदी रहने का अनुमान है। निर्यात में मजबूत ग्रोथ और फिस्कल स्पेस की उपलब्धता से कैपिटल खर्च को बढ़ाया जाएगा। इस सर्वे में सर्वे में छोटी होल्डिंग फार्म टेक्नोलॉजीज के जरिए छोटे, सीमावर्ती किसानों का सुधार करने की भी मांग की गई है। अपने चौथे बजट में, निर्मला सीतारमण के संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करेंगी। बजट से पहले उसे 5 बिंदुओं में समझते हैं।


व्यय ( Spending Boost)

पिछला बजट महामारी के कारण राजस्व की भारी कमी के दौरान पेश किया गया था। 2021-22 के लिए, केंद्र सरकार ने 30,42,230 करोड़ रुपए के व्यय का प्रस्ताव रखा था, जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमान से 12.7% अधिक था।

2022-23 में, केंद्र की वित्तीय स्थिति बेहतर है और अर्थव्यवस्था में भी सुधार हो रहा है। इसका अर्थ है कि टैक्स से अधिक राजस्व मिलेगा जिससे खर्च में भी बढ़ोतरी होगी।

इस बार खर्च का मुख्य बिन्दु ‘पूंजीगत व्यय’ होगा, या नई संपत्तियां जिनका खर्च, नौकरी और आय के मामले में प्रभाव अधिक है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी की सुकन्या बोस और एन.आर. भानुमूर्ति के 2014 में ‘Fiscal Multipliers for India’ नामक एक अध्ययन के अनुसार, सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय का प्रत्येक रुपया सकल घरेलू उत्पाद में ₹ 2.50 जोड़ता है।

2021-22 में कुल व्यय में 2% की वृद्धि हुई थी, पूंजीगत व्यय में 26% की वृद्धि हुई। 2022-23 के बजट में भी दोनों ही स्तर पर व्यय को औरबढ़ाया जा सकता है।


टैक्स में उछाल

ग्रोथ पर सरकार का खर्च अभी भी 10-15% तक सीमित रहेगा। बाकी 85-90% ग्रोथ व्यक्तिगत उपभोग, उद्यमों द्वारा निवेश और विदेशी व्यापार से आता है। यदि ये सभी अच्छा कर रहे हैं, तो टैक्स कलेक्शन को बढ़ा दिया जाएगा और ये सरकार को मिलने वाले राजस्व का 80 फीसदी है।

नवंबर 2021 तक, चालू वित्त वर्ष में आठ महीने बीत जाने के साथ, कुल टैक्स कलेक्शन बजट अनुमान (बीई) से अधिक था। छह प्रमुख कर शीर्षों में से चार बजट अनुमान (बीई) के 66% से अधिक थे।

आर्थिक सर्वे में मार्च 2023 को समाप्त होने वाले अगले वित्तीय वर्ष के लिए 8-8.5% की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है। अब सरकार इन टैक्स दरों को कैसे बढ़ाती है इसका खुलासा बजट में होगा।


राज्यों को हस्तांतरण

कोरोना महमारी के कारण खर्च में काफी उछाल देखा गया। इस कारण कारण तीन विशिष्ट कार्यक्रमों की व्यय राशि में वृद्धि हुई है। ये नैशनल फूड सिक्युरिटी ऐक्ट के तहत लगभग 814 मिलियन मौजूदा लाभार्थियों को अतिरिक्त खाद्यान्न के प्रावधान, ग्रामीण क्षेत्रों में संकटपूर्ण रोजगार और 120 मिलियन छोटे और सीमांत किसानों को प्रति वर्ष ₹ 6,000 की आय हस्तांतरण के लिए किए गए आवंटन हैं।

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तीन विशिष्ट कार्यक्रमों की व्यय राशि में हुई वृद्धि 2019-20 से 2.6 गुना अधिक थी। महामारी के कारण अतिरिक्त खाद्यान्न के प्रावधान को धीरे-धीरे वापस लिया जा सकता है। वर्तमान में प्रति व्यक्ति 5 किलो खाद्यान्न और 1 किलो दाल की यह अतिरिक्त मासिक प्रतिबद्धता मार्च 2022 तक है।

केंद्र इस बजट में कितना आवंटन करता है, यह 2022-23 के लिए उसकी मंशा को व्यक्त करेगा।


विनिवेश के लक्ष्य (Disinvestment Markup)

इन्टेन्ट और डिलीवरी के टर्म्स में देखें तो 2020-21 विनिवेश के मामले में निराशाजनक रहा। 2021-22 में सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी की बिक्री का अनुमान ₹1,75,000 करोड़ था, परंतु अब तक केवल ₹12,030 करोड़ ही प्राप्त हुए हैं।

वर्तमान सरकार का उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण करना है और इसकी अपनी व्यावसायिक उपस्थिति रणनीतिक आयात के कुछ मुट्ठी भर क्षेत्रों तक ही सीमित है।

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2016 से, केंद्र ने 35 सरकारी उद्यमों, और उनके कुछ हिस्से के विनिवेश के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। इनमें से आठ की हिस्सेदारी बेची जा चुकी है और 20 अन्य प्रक्रियाधीन हैं।

कुछ बिक्री तो 2021-22 से लंबित है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार केवल वही पूरा करने का लक्ष्य रखेगी जो लंबित है, या अधिक महत्वाकांक्षी होगी और 2022-23 में अधिक बिक्री पर जोर देगी।



घाटा (Deficit Management)

सरकार कितना भी राजस्व जुटा ले परंतु खर्च के मामले वो कम ही रहेगा। ऐसे में सरकार जितना उधार लेने की योजना बनाती है वो उसके खर्च की सीमा को भी निर्धारित करता है।

राजस्व और व्यय के बीच के अंतर को फिस्कल डेफिसिट कहते हैं।

सरकार ने फरवरी 2020-2021 के लिए राजकोषीय घाटा 7.96 लाख करोड़ या GDP 3.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। परंतु, महामारी के कारण राजकोषीय घाटा बढ़कर 9.5% हो गया जो अब तक का सबसे अधिक है।

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