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IBC Amendment 2025: सरकार दिवालियापन कानून में बड़े बदलाव की कर रही तैयारी, क्या मालिक के रिलेटिव सस्ते में खरीद पाएंगे कंपनी?

IBC Amendment 2025: इंडस्ट्री की तरफ से डिमांड की जा रही है कि प्रमोटर्स के ब्लड रिलेशन में आने वाले लोगों को भी दिवालिया कार्यवाही में भाग लेने की इजाजत दी जाए।

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IBC Amendment 2025

सरकार दिवालियापन कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। (PC: Freepik)

IBC Amendment 2025: इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) में संसद के आने वाले शीतकालीन सत्र में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते है। मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि सरकार दिवालियापन कानून में बड़े बदलाव करने की तैयारी कर रही है। साल 2016 में लागू होने के बाद से IBC में छह बड़े संशोधन हो चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस बार 2025 का IBC संशोधन विधेयक सबसे बड़े बदलाव ला सकता है। उद्योग जगत के हितधारकों ने कई तरह की मांगें सरकार के सामने रखी हैं।

मौजूदा नियम हैं बहुत सख्त

अभी के नियमों में रिलेटेड पार्टी, जैसे कि कंपनी के मालिक या उनके करीबी रिश्तेदार और खून के रिश्तों जैसे भाई-बहन या परिवार के सदस्यों से जुड़े नियमों को बदला जा सकता है। इंडस्ट्री के लोगों का कहना है कि मौजूदा नियम बहुत सख्त हैं, इनकी वजह से 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' यानी कारोबार करने में मुश्किल आती है, जिसकी वजह से आखिरी चरण पूरा ही नहीं हो पाता।

यह नियम बदलने की हो रही मांग

यह ऐसे समय में आया है जब उद्योग जगत कुछ ऐसे प्रावधानों में संशोधन की मांग कर रहा है, जो IBC प्रक्रिया को धीमा कर रहे हैं। जैसे कि सेक्शन 29A के अनुसार, दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही कंपनी के प्रमोटर और उनके ब्लड रिलेशन में आने वाले लोग दिवालिया कार्यवाही में भाग नहीं ले सकते, भले ही उनके प्रमोटर के साथ कोई कारोबारी रिश्ते न हों। ऐसे लोगों को प्रक्रिया में भाग लेने से पहले ही अयोग्य घोषित कर दिया गया है। ऐसे में कई बार डील फाइनल होते-होते अटक जाती है। इसलिए इस नियम को थोड़ा संशोधित करने की मांग की गई है, ताकि योग्य लोग कंपनी को बचाने आएं तो ये रुकावटें कम हों। इंडस्टी के स्टेकहोल्डर्स का कहना है कि इस सेक्शन को बदला जाना चाहिए, ताकि रिश्तेदारों को समाधान प्रक्रिया में भाग लेने का रास्ता खुल सके।

ICAI ने सौंपे सुझाव

दूसरी तरफ, भारतीय चार्टर्ड अकाउंटेंट्स संस्थान (ICAI) ने गुरुवार को IBC में प्रस्तावित बदलावों की समीक्षा कर रहे संसदीय पैनल के सामने अपने सुझाव रखे हैं। जिनका मकसद दिवाला समाधान ढांचे को मजबूत और सुव्यवस्थित बनाना है। BJP सांसद बैजयंत पांडा की अध्यक्षता वाली संसद की सेलेक्ट कमिटी दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक, 2025 की जांच कर रही है, जिसे 12 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था।

समझिए IBC का सेक्शन 29A क्या है

सेक्शन 29A यह तय करता है कि दिवालिया हो चुकी कंपनी के लिए बोली लगाने या उसका अधिग्रहण करने की इजाजत किसे नहीं दी जा सकती है। यानी कंपनी की रिजोल्यूशन प्रक्रिया में कौन-कौन लोग हैं, जो भाग नहीं ले सकते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि कंपनी की वित्तीय समस्याओं के लिए जिम्मेदार पुराने मालिकों को दिवालियापन के जरिए कम मूल्य पर कंपनी वापस पाने से रोका जा सके।

इनमें उन लोगों की लिस्ट दी गई है, जो कि दिवालियापन समाधान या अधिग्रहण में भाग नहीं ले सकते:

  • दिवालियापन की स्थिति में कंपनी के प्रवर्तक/मालिक, अगर वो डिफॉल्ट के लिए जिम्मेदार थे।
  • वो लोग जिन्हें विलफुल डिफॉल्टर घोषित किया गया, वो इस प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सकते।
  • सिक्योरिटीज मार्केट से बैन किए गए लोगों को भी प्रक्रिया में भाग लेने की इजाजत नहीं है।
  • कुछ संबंधित पक्ष, जिनमें प्रमोटर्स के करीबी परिवार के सदस्य और ब्लड रिलेटिव शामिल हैं।

सेक्शन 29A को क्यों लाया गया था?

सेक्शन 29A पहले IBC में शामिल नहीं था, इसलिए कॉर्पोरेट इनसॉल्वेंसी रिजोल्यूशन प्रोसेस में कोई भी व्यक्ति या निकाय, कॉर्पोरेट देनदार की बोली प्रक्रिया में हिस्सा ले सकता था। चाहे वो उस कंपनी का असली प्रवर्तक हो, डायरेक्टर हो या फिर डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से जुड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति हो। यानी वो लोग जो कंपनी को डुबाने के जिम्मेदार थे, वो बैंकों का कर्ज पीकर एक बार फिर अपनी ही कंपनी को सस्ते में खरीदने के लिए आगे आ सकते थे और कंपनी का कंट्रोल फिर से पा सकते थे।

इसके बाद, कानून में एक संशोधन के जरिए सेक्शन 29A को 23 नवंबर, 2017 से रेट्रोस्पेक्टिव प्रभाव यानी पुरानी तारीख से शामिल किया गया। ये सेक्शन उन लोगों को अयोग्य घोषित करने के लिए शुरू किया गया था, जो कॉर्पोरेट डेटर को डुबाने के जिम्मेदार थे और कंपनी को चलाने के योग्य नहीं थे।

एक्सपर्ट्स का नजरिया

IBC में इन संशोधनों को लेकर एक्सपर्ट्स की अलग अलग राय है। कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस तरह की भागीदारी की इजाजत देने से पहले अधिकारियों को धन के स्रोत की पुष्टि करनी चाहिए। अगर सब कुछ सही पाया जाता है, तो रिश्तेदारों को इस प्रक्रिया में भाग लेने की इजाजत दी जानी चाहिए। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि व्यवसायों के भीतर विवाद कई दिवालियापन मामलों के पीछे एक प्रमुख कारण है।

ऐसी स्थितियों में, ब्लड रिलेशंस को रिलेटेड पार्टी मान लेने से कंपनी को फिर से खड़ा करने की संभावना कम हो जाती है। एक ब्लड रिलेटिव लेनदार हो सकता है या अलग से बिजनेस में शामिल हो सकता है, इसलिए केवल पारिवारिक संबंध के आधार पर IBC कार्यवाही में भागीदारी से इनकार करना उचित नहीं ठहराया जा सकता। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि किसी व्यक्ति को संबंधित पक्ष तभी माना जाना चाहिए जब उसके बीच व्यावसायिक संबंध हों, न कि केवल पारिवारिक संबंध।