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No-Cost EMI चुनकर न हों खुश, यहां ‘ब्याज फ्री’ जैसा कुछ नहीं होता, पीछे से ऐसे कट रही आपकी जेब

No Cost EMI Hidden Charges: बैंक या फाइनेंस कंपनियां फ्री में लोन नहीं देती हैं। वे कर्ज पर ब्याज वसूलती हैं। यह ब्याज मैन्यूफैक्चरर, रिटेलर या ग्राहक तीनों में से किसी को तो देना ही होता है।

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No Cost EMI Hidden Charges

नो कॉस्ट ईएमआई नहीं होती ब्याज फ्री (PC: Gemini)

सरकार ने काफी उत्पादों पर जीएसटी रेट घटा दिए हैं, जो 22 सितंबर से लागू हो जाएंगे। ऐसे में दुकानदार और ई-कॉमर्स कंपनियां आने वाले फेस्टिव सीजन में जबरदस्त डिमांड आने की उम्मीद कर रही हैं। दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियों की ग्रेट इंडियन फेस्टिवल और बिग बिलियन डेज सेल जल्द ही आ रही हैं। इन सेल्स में अच्छा-खासा डिस्काउंट ऑफर किया जाता है। इसके अलावा ग्राहकों का आकर्षण नो कॉस्ट ईएमआई ऑप्शन के लिए भी रहता है।

नो-कॉस्ट ईएमआई क्या है?

नो-कॉस्ट ईएमआई एक ऐसी पेमेंट फैसिलिटी है, जहां आपको सामान का एकमुश्त पैसा नहीं चुकाना होता। इसमें खरीदार प्रोडक्ट की कीमत को हर महीने किस्तों में चुकाते हैं। इससे ग्राहक पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ता है। विक्रेता नो-कॉस्ट ईएमआई को 'ब्याज फ्री' ऑप्शन के रूप में दिखाते हैं। यानी भले ही आप किस्तों में पेमेंट करेंगे, लेकिन इसके एवज में आपको कोई अतिरिक्त पैसा नहीं देना होगा।

उदाहरण के लिए अगर किसी मोबाइल की कीमत 36,000 रुपये है, तो आप एक साथ पूरे पैसे देने की बजाय 12 महीने तक 3000 रुपये महीने पेमेंट कर सकते हैं। ऐसे मे आपको कोई अतिरिक्त पैसा नहीं देना होगा। बड़े घरेलू उपकरण, मोबाइल फोन्स और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन खरीदने के लिए इस ऑप्शन का काफी अधिक उपयोग हो रहा है।

क्या No-cost EMI सच में 'कॉस्ट फ्री' है?

सबसे पहले तो यह जान लें कि जहां बिजनेस हो रहा हो, वहां कुछ भी फ्री में नहीं मिलता है। फ्री ईएमआई जैसा कुछ नहीं होता है। हमेशा कोई न कोई जरूर कॉस्ट भर रहा होता है। या तो यह मैन्यूफैक्चरर हो सकता है या रिटेलर हो सकता है या फिर ग्राहक। आइए जानते हैं कैसे?

बहुत बार ब्याज ग्राहक से सीधे नहीं वसूला जाता है। यह प्रोसेसिंग फीस के रूप में होता है या फिर यह मूल कीमत में ही एडजस्ट हुआ रहता है। कई बार कंपनियां खुद इस लागत को झेलती है। मान लीजिए आप फेस्टिव सेल में 60,000 रुपये का कोई स्मार्टफोन खरीद रहे हैं। अब सेलर आपको ऑफर देगा कि आप एकमुश्त पैसा देने की बजाए 6,667 रुपये की 9 मंथली ईएमआई बनवा लीजिए। अब ईएमआई में भी कुल कीमत 60000 रुपये पड़ी, यानी कोई एक्स्ट्रा पैसे नहीं लग रहे। ग्राहकों को यह एक बहुत अच्छी डील लग सकती है।

फ्री में कर्ज नहीं देता कोई भी बैंक

एक्सपर्ट्स के अनुसार, बैंक और फाइनेंस कंपनियां फ्री में कर्ज नहीं देते हैं। ऊपर बताए गए उदाहरण में अगर बैंक अपना नॉर्मल 12% सालाना ब्याज लें, तो मंथली ईएमआई 7,004 रुपये की बनेगी। यानी आपको कुल 63,040 रुपये देने होंगे, पूरे 3040 रुपये ज्यादा। सच तो यह है कि बैंकों और फाइनेंस कंपनियों का रिटेलर्स के साथ एग्रीमेंट होता है। ग्राहक के बिहाफ पर रिटेलर इस ब्याज का भुगतान करते हैं। रिटेलर यह ब्याज इसलिए भरते हैं, क्योंकि सामान की मूल कीमत में इसका मार्जिन पहले से जुड़ा होता है।

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अधिकतर कंज्यूमर ड्यूरेबल्स 18 से 25 फीसदी मार्जिन पर ऑपरेट होते हैं। इससे ब्रांड्स के पास ब्याज लागत वहन करने की गुंजाइश होती हैं और वे अच्छा प्रॉफिट भी कमाते हैं। यानी कोई फोन 60000 रुपये में मिल रहा है, तो ब्रांड्स आमतौर पर इसमें 10% मार्जिन लेते हैं, जो 6,000 रुपये बनाता है। अब इसमें से 3,000 रुपये ब्याज चुकाने के बाद भी उनके पास 3000 रुपये प्रॉफिट बच गया।

ऐसे कटती है ग्राहक की जेब

हर बार ऐसा नहीं होता कि नो कॉस्ट ईएमआई से ग्राहक का फायदा ही हो। कई बार नो-कॉस्ट ईएमआई से खरीदारी करने पर आपको डिस्काउंट का फायदा नहीं मिलता है। अगर आप पूरा पेमेंट एकमुश्त करते हो, तब ही रिटेलर आपको कीमत पर डिस्काउंट ऑफर करता है। मान लीजिए कोई मोबाइल 75,000 रुपये का आ रहा है। अब अगर आप किसी रिटेलर से एकमुश्त पैसा देकर यह फोन खरीदें तो हो सकता है कि आपको सीधे 10,000 रुपये का डिस्काउंट मिल जाए। दूसरी तरफ नो कॉस्ट ईएमआई में आपकी किस्तें 75,000 रुपये पर ही बनेंगी। ऐसे में आपको नो-कॉस्ट ईएमआई चुनने पर सीधे-सीधे 10 हजार रुपये का नुकसान हो जाएगा। इसलिए नो कॉस्ट ईएमआई का ऑप्शन चुनने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

विवरणनो कॉस्ट ईएमआईएकमुश्त भुगतान
मोबाइल का बेस प्राइस₹60,000₹60,000
जीएसटी (12%)₹7,200₹7,200
एक्चुअल कीमत₹67,200₹67,200
प्रोसेसिंग फीस₹1,000₹0
प्रोसेसिंग फीस पर जीएसटी (12%)₹120₹0
डिस्काउंट₹0₹6,000
कुल कीमत₹68,320₹61,200
नो कॉस्ट ईएमआई में अतिरिक्त खर्च₹7,120₹0
नो कॉस्ट ईएमआई Vs एकमुश्त पेमेंट

कितना पड़ जाता है फर्क

उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी मोबाइल फोन की बेस प्राइस 60,000 रुपये है। इस फोन पर 12% जीएसटी लगेगा, जिससे एक्चुअल कीमत आएगी 67,200 रुपये। अब आप यह फोन नो कॉस्ट ईएमआई से लेते हैं, तो बैंक आपसे प्रोसेसिंग फीस ले सकते हैं। इस प्रोसेसिंग फीस पर भी आपको 12% जीएसटी देना होगा। मान लीजिए 1000 रुपये प्रोसेसिंग फीस है, तो 120 रुपये जीएसटी देना होगा। ऐसे में नो कॉस्ट ईएमआई पर आपको यह फोन कुल 68,320 रुपये का पड़ेगा।

अगर आप इस फोन को एकमुश्त पैसा देकर खरीदते हैं, तो आपको डिस्काउंट ऑफर मिल सकता है। 6000 रुपये का भी डिस्काउंट मिला तो फोन की फाइनल कॉस्ट 61,200 रुपये होगी। यानी ईएमआई से लेने पर आपको 7,120 रुपये ज्यादा देने पड़ जाएंगे।