30 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

प्राचीन विद्या है जैन विद्या: मुनि ज्ञानेन्द्र

इस कार्यशाला में 25 बोल के 14 से 25 बोलों के बारे में प्रतिदिन विस्तार पूर्वक बताया जाएगा

2 min read
Google source verification
Jain Vidya: Muni Gyanendra

प्राचीन विद्या है जैन विद्या: मुनि ज्ञानेन्द्र

कोयम्बत्तूर. मुनि ज्ञानेन्द्र कुमार के सान्निध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद एवं समण संस्कृति संकाय के संयुक्त तत्वाधान में तेरापंथ युवक परिषद कोय बटूर द्वारा जैन विद्या कार्यशाला का 15 दिवसीय सत्र प्रारम्भ हुआ। आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा रचित पुस्तक जीव-अजीव पर आधारित इस कार्यशाला में 25 बोल के 14 से 25 बोलों के बारे में प्रतिदिन विस्तार पूर्वक बताया जाएगा। मुनि ने कहा कि जैन विद्या विश्व की प्रथम व प्राचीन विद्या बताई गई है। क्योंकि इतिहास के आदि पुरुष के रूप में भगवान ऋषभ के श्रीमुख से सर्वप्रथम तत्व का प्रार भ हुआ था। इस जैन विद्या में प्रारंभिक ज्ञान का सरल व व्यवस्थित रूप दिया गया है जो नौसीखियों के लिए जरूरी माना है। जिसने जीव को जाना और अजीव क्या है, उसको जाना, उसने सब को जान लिया। भगवान ने भी कहा कि पहले ज्ञान होगा तभी दया, करुणा और अहिंसा का पालन होगा। हमारी नींव मजबूत होनी चाहिए। हम केवल नाम के श्रावक न बनें। अपितु ज्ञानवान श्रावक बनें। आज के युग में विज्ञान के संसाधनों के अति उपयोग से सुज्ञान की परंपरा छिन्न- भिन्न हो चुकी है। युवकों को सही राह पर लाने के लिए यह जैन विद्या कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है।

गर्भावस्था में ही बच्चों को संस्कार दें: वीरेन्द्र मुनि
कोय बत्तूर. आरएस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन में वीरेन्द्रमुनि ने सुखविपाक सूत्र में अदीन शत्रु राजा का वर्णन करते हुए कहा कि राज्य की व्यवस्था मंत्री के हाथों में होती है। मंत्री बुद्धिमान व कार्य करने में कुशल होता है तो राज्य की जनता में अमन-चैन होता है। कोई भी समस्या सामने आती है तो उसका उचित समाधान मंत्री करता है। गर्भावस्था के धर्म का वर्णन करते हुएमुनि ने कहा कि गर्भ का अच्छी तरह से पालन करना चाहिए। शास्त्र स्वाध्याय, धर्म, नियम, दया, दान, सेवा, भक्ति करना चाहिए जिससे गर्भस्थ शिक्षु पर अच्छा प्रभाव पड़ता है महाभारत का उदाहरण देते हए बताया कि अर्जुन सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु ने गर्भ में रहते हुए चक्रव्यूह युद्घ का वर्णन सुनकर ज्ञान प्राप्त किया इसलिये हर माता-पिता को चाहिए अपने संतान को अच्छे संस्कार दिलाने के लिए वे संयमित जीवन अपनाएं। इस अवसर पर राजस्थान के उदयपुर में भगवतीमुनि, निर्मल के देवलोक गमन पर उनको श्रध्दांजलि दी गई।