
करुणानिधि की याद में ठहर गया कोवई
कोयम्बत्तूर. द्रविण राजनीति के पुरोधा एम करुणानिधि की याद में कोवई सूना रहा। सड़कों पर वाहन नदारद रहे। फलों, सब्जियों की दुकानों से लेकर होटल, चाय की दुकानों तक ताले नहीं खुले। जैसे शहर की सड़कें, गलियां, बाजार और लोग भी उन्हें श्रध्दांजलि दे रहे हों। कहीं लोगों ने उनकी तस्वीर के साथ जुलूस निकाला तो कहीं उनके चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित करनेवालों का तांता लगा रहा। कलैंजर की याद में सारा शहर गमगीन नजर आया। शहर के दो इलाकों में पार्टी के छह कार्यकर्ताओं ने सिर मुंडाकर दिवंगत नेता को श्रध्दांजलि दी। नंजुंडापुरम में आयोजित श्रध्दांजलि समारोह के पहले एमकेएम के सचिव चित्तारसू, नागराजन व चंद्रन ने अपने सिर मुंडाकर करुणानिधि के प्रति अपने लगाव का इजहार किया। बाद में कार्यकर्ताओं ने उनके चित्र पर फूल चढ़ाए। इसी तरह गौंडमपाल्यम बस डिपो के निकट दो बस चालकों व एक परिचालक ने सिर मुंडवाकर श्रध्दांजलि दी। इसी तरह उदयमपाल्यम में एक मौन जुलूस निकाला गया जिसमें सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता, सामाजिक संगठनों के सदस्य व तमिल कार्यकर्ताओं ने कलैंजर को श्रध्दासुमन अर्पित किए। ऊटी में मेन बाजार एसोसिएशन के पदाधिकारियों व डीएमके कार्यकर्ताओं ने करुणानिधि को श्रध्दांजलि दी। इस मौके पर एसोसिएशन के अध्यक्ष गेनमल बोथरा, सचिव अशोक, तेरापंथ संघ के अध्यक्ष महावीर लुणावत, पूनम कोठारी, डीएमके पार्टी के स्थानीय अध्यक्ष कवी सचिव व अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।
कोवई से शुरू हुआ सफलता का सफर
करुणानिधि और कोयम्बत्तूर का रिश्ता बेहद आत्मीय रहा। दरअसल, यही वह शहर है जहां से उन्होंने सफलता की सीढिय़ां चढऩी शुरू कीं। सिंगानुलूर के पास सेन्ट्रल स्टूडियो में पटकथा लेखक के रूप में कार्य शुरू किया था। उम्र थी महज १९ साल। कलैंजर अपनी पहली पत्नी के साथ सिंगानुलूर में एक किराए के मकान में ठहरे थे। किराया था दस रुपए प्रतिमाह। इसका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा नेंनजक्कूर नीथी में भी किया है। इस छोटे से मकान में उन्होंने पटकथा लेखक के रुप में करियर शुरु किया था। यहां से वह पैदल जाया करते थे। यहीं पर करुणानिधि ने पहली बार सफलता का स्वाद चखा था जब उनकी लिखी पटकथा वाली फिल्म राजकुमारी सुपरहिट हुई थी। फिल्म के नायक एमजी रामचंद्रन थे। यहीं पर वे एमजी रामचंद्रन के करीब आए। करुणानिधि सिंगानुलूर में जिस मकान में रहे थे वहां पर डीएमके पार्टी की इच्छा पुस्तकालय बनाने की थी लेकिन घर के मालिक अन्नासामी के परिजनों ने इसकी अनुमति नहीं दी थी। बाद में यहां से सेलम गएऔर माडर्न थिएटर में काम करना शुरू किया था। बताया जाता है कि इसके बाद ईरोड़ में तन्दै पेरियार रामास्वामी की पत्रिका में उपस पादक के रूप में काम किया था। वहां पर अन्नादुरै से परिचय हुआ। अन्नादुरै से उनका परिचय उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुआ। बाद में चेन्नई आने के बाद फिल्मों की पटकथा छोड़कर राजनीति की पटकथा लिखने लगे।

Published on:
09 Aug 2018 01:58 pm
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