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Sawan 2021 जरा दैत्य को मारने के बाद यहां ध्यानमग्न हुए थे भोलेनाथ

जटाओं की तरह बहती जलधारा के कारण हुआ नामकरण

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Jatashankar Dham Bijawar Jatashankar Dham Chhatarpur

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बिजावर—छतरपुर. दैत्य के संहार के बाद भगवान शिव यहां ध्यान में लीन हुए थे। जटाओं से बहती जलधारा के कारण इसका नाम जटाशंकर पडा। छतरपुर जिले के बिजावर क्षेत्र का जटाशंकर धाम बुंदेलखंड में शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। जटाओं की तरह बहनेवाली जलधाराएं ऐसी प्रतीत होती हैं मानो शिव की जटाओं से गंगा बह रही हो। अमरनाथ की तरह इस स्थल की खोज भी एक चरवाहे ने की थी।

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विंध्य पर्वत श्रंखला में बसा जटाशंकर धाम का प्राकृतिक सौंदर्य भी अनूठा है। यह स्थान चारों तरफ से पर्वतों से घिरा है. जटाशंकर धाम भगवान शंकर के स्वयंभू प्राकृतिक उद्भव के रूप में प्रकट होने से पहचान में आया। शिवलिंग के पास दो प्राकृतिक कुंड हैं जिनमें एक में गर्म पानी और दूसरे में ठंडा पानी रहता है।

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मान्यता है कि देवासुर संग्राम में जरा दैत्य के संहार के बाद शिवजी यहां ध्यानमग्न हो गए थे। मन के संताप को मिटाने के लिए भोलेनाथ यहां विराजे जिससे यह स्थल तीर्थ बन गया। यह भी माना जाता है कि पार्वतीजी ने शिव को पाने के लिए विंध्य की इन्हीं कंदराओं में तप किया था। तब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर प्रकट होकर पार्वतीजी को आशीर्वाद दिया था।

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जटाशंकर ट्रस्ट के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल बताते हैं कि इस धाम की खोज एक चरवाहे ने की थी। बकरियों की तलाश में वह जब यहां आया तो उसने कुंड का पानी पिया और स्नान किया. इससे उसका कुष्ठ रोग समाप्त हो गया. इस चमत्कार के बाद चरवाहे ने यहां स्थिति शिवजी की पिंडी का जलाभिषेक किया। वह नियमित रूप से यहां आने लगा जिससे शिवधाम के रूप में इसकी ख्याति फैल गई।


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