
चूरू विधायक हरलाल सहारण। फोटो: सोशल
जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें चूरू विधायक हरलाल सहारण के खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमे को वापस लेने की अनुमति मांगी गई थी। न्यायाधीश इंद्रजीत सिंह व न्यायाधीश भुवन गोयल की खंडपीठ ने कहा कि मुकदमा वापस लेने की अनुमति केवल न्याय और सार्वजनिक हित में दी जा सकती है, यांत्रिक रूप से नहीं दी जा सकती।
मामला 2019 में चिमना राम की ओर से चूरू कोतवाली में दर्ज करवाई गई एफआईआर से जुड़ा है, जिसमें आरोप था कि हरलाल सहारण ने जनवरी 2015 में जिला परिषद चूरू के वार्ड 16 से सदस्य पद के लिए फर्जी 10वीं कक्षा की मार्कशीट जमा की थी। पुलिस ने धारा 420, 467, 468, 471, 193 और 120-बी आइपीसी के तहत चार्जशीट दाखिल की। मामला अधीनस्थ अदालत में लंबित है।
राज्य सरकार ने 26 नवंबर, 2024 को गठित समिति की सिफारिश पर धारा 528 और 360 के तहत हाईकोर्ट से मामला वापस लेने की अनुमति मांगी। महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद ने दलील दी कि सबूत कमजोर हैं। 2015 का चुनाव 2020 में समाप्त हो चुका है और 10वीं पास की योग्यता हट गई है, इसलिए मुकदमा निरर्थक है।
सुप्रीम कोर्ट के नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव मामले का हवाला दिया गया। शिकायतकर्ता के वकीलों ने यह कहते हुए कि विरोध किया कि हरलाल सिंह ने पहले प्राथमिकी रद्द करने की याचिका वापस ली थी और संज्ञान आदेश के खिलाफ रिवीजन 11 सितंबर, 2023 को खारिज हो चुकी है। समिति ने वापसी का कारण नहीं बताया।
कोर्ट ने सीआरपीसी धारा 321 का उल्लेख करते हुए कहा कि लोक अभियोजक को स्वतंत्र राय और अदालत की सहमति जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के के. अजीत और शैलेंद्र कुमार मामलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने पाया कि सरकार ने लोक अभियोजक की संतुष्टि साबित नहीं की। फर्जी दस्तावेज से चुनाव जीतने और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के गंभीर आरोपों में विधायक का पद राहत का आधार नहीं हो सकता। याचिका को मेरिट के अभाव में खारिज कर दिया गया।
Updated on:
27 Aug 2025 07:15 am
Published on:
27 Aug 2025 07:14 am
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