टाइल्स की फैक्ट्री मैं काम करते थे –
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक मुनाफ जब संघर्ष कर रहे थे तब वे एक टाइल की फैक्ट्री में काम करते थे। वह वे टाइल्स को डब्बों में पैक करते थे जिसके लिए उन्हें आठ घंटे के मात्र 35 रूपए मिलते थे। मुनाफ ने बताया “उनकी ज़िन्दगी में दुख ही दुख था लेकिन उससे झेलने की उनकी आदत हो चुकी थी। ये पैसा परिवार के लिए काफी नहीं था लेकिन हम क्या कर सकते थे। घर में कमाने वाले सिर्फ पिता थे और हम लोग स्कूल जाते थे। आज मेरे पास जो भी है वो क्रिकेट की वजह से है। इस से पहले न मेरा कोई दोस्त था न ही कोई फ्रेंड सर्कल। अगर क्रिकेट छोड़ के गया तो नया सर्कल बनान पड़ेगा जो संभव नहीं है।” मुनाफ ने बताया कि “क्रिकेट में जब वे नए आए थे तब उन्हें कोई नहीं समझता था। क्योंकि उनका पालन पोषण गांव के एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। न भाषा थी न ही कोई बैकग्राउंड। मैं छोटे से गांव से आया था अब बड़े लोगों के बीच था। जब इन लोगो ने मुझे समझना शुरू किया तब में सब को पसंद आने लगा।”
जब सपोर्ट स्टाफ को गोली मरना चाहते थे –
मुनाफ ने बताया एक बार आईपीएल के दौरान जब वे राजस्थान रॉयल्स कि तरफ से खेलते थे। डेक्कन चार्जेर्स से मैच हारने के बाद मुनाफ नाराज़ थे। टीम के कुछ खिलाड़ियों के शिकार पर जाने का मन बनाया। एंड्र्यू साइमंड्स, रॉब क्वीनी, युसूफ पठान और मैं शिकार के लिए जंगल कि ओर निकले। तभी क्वीनी ने पुछा “शिकार पे तू क्या करेगा। मैंने बोला पूरे सपोर्ट स्टाफ को सामने खड़ा करो गोली मारनी है।” बता दें मुनाफ ने घरेलू क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन के बल पर टीम इंडिया में एंट्री की थी। उन्हें भारतीय क्रिकेट की अगली बड़ी चीज कहा जाता था। मुनाफ ने महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर को अपनी गेंदबाजी से काफी प्रभावित किया था। मुनाफ पटेल ने भारत ए की तरफ से प्रथम श्रेणी डेब्यू न्यूजीलैंड के खिलाफ राजकोट में 2003 में किया था। इसके बाद 2006 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ डरबन में उन्हें टेस्ट पदार्पण का मौका मिला। मुनाफ पटेल का करियर चोटों से प्रभावित रहा, जिसकी वजह से वह 13 टेस्ट और 70 वन-डे ही खेल सके। उन्होंने अपना आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच 2011 में खेला था।
सभी का समय ख़त्म हो गया है –
इंडियन एक्सप्रेस ने मुनाफ पटेल के हवाले से कहा, ‘मुझे कोई मलाल नहीं है क्योंकि जिन क्रिकेटरों के साथ मैंने खेला, वो सभी संन्यास ले चुके हैं। सिर्फ धोनी खेल रहा है, बाकी सब डन हो चुके हैं। इसलिए कोई गम नहीं है। सभी का समय खत्म हो चुका है। गम होता जब सारे खेल रहे होते और मैं रिटायर कर रहा होता। संन्यास का कोई विशेष कारण नहीं है। उम्र हो चुकी है, फिटनेस पहली जैसी नहीं। युवा अपने मौकों का इंतजार कर रहे हैं और ऐसे में मेरा खेलना अच्छा नहीं रहेगा। प्रमुख बात यह है कि कोई प्रोत्साहन नहीं बचा है। मैं 2011 विश्व कप विजेता टीम का सदस्य हूं और इससे बड़ी उपलब्धि कुछ और नहीं हो सकती।’