5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

सूदखोरों से कर्ज: ‘चार एकड़ जमीन बेच चुका और बिकने वाली है, मन करता है बेटों को गोली मार दूं’

ब्याज न भरने पर साहूकार गांव में घुस किसानों की इज्जत उतारते हैं

3 min read
Google source verification

दमोह

image

Muneshwar Kumar

Sep 10, 2019

01_3.png

@ संवेद जैन की रिपोर्ट
दमोह/ साहूकारों के कर्ज ने इस परिवार से सबकुछ छिन लिया है। ब्याज भरते-भरते पूरा परिवार उजड़ गया है। किसानों द्वारा साहूकारों से लिए गए कर्ज को भी सरकार ने पिछले दिनों माफ करने का ऐलान किया है। लेकिन सरकार की इस योजना की जानकारी ही किसानों को नहीं है। #KarjKaMarj सीरीज में हम आपको दमोह के एक ऐसे किसान परिवार की कहानी बताएंगे जिसके बेटों ने साहूकारों से कर्ज लिए। उसे चुकाते-चुकाते किसान के कई एकड़ जमीन बिक गई, लेकिन कर्ज खत्म नहीं हुआ।

पत्रिका की टीम इस किसान के मर्ज को जानने के लिए दमोह के खजरी गांव पहुंची। गांव स्थित घर के बाहर बैठ किसान प्यारे सिंह लोधी बीड़ी बनाने का काम कर रहे थे। अपनी मेहनत से प्यारे सिंह लोधी ने खेती की जमीन को 16 एकड़ तक ले गए। अब 3 बेटों से उम्मीद थी कि इसे और आगे ले जाएंगे, लेकिन वक्त को शायद यह मंजूर नहीं है। दो बेटे गांव के बुरे युवाओं की संगत में आकर गलत आदतों में फंस गए।

बेटों ने साहूकारों से लिए कर्ज
किसान प्यारे सिंह लोधी के दो बेटों की आदतें इतनी बिगड़ गईं कि घर की पूंजी बर्बाद करने के बाद अब वह खेत और घर भी गिरवी रखकर कर्ज लेने लगे। साहूकार भी बेखौफ होकर 10 प्रतिशत प्रतिमाह ब्याज दर पर इन्हें कर्ज उपलब्ध कराते रहे। जब कर्ज और ब्याज के रुपए लेने साहूकार पहुंचे तो पिता को आगे कर दिया गया। इस तरह से पिछले 4 साल से पिता और पूरे परिवार का जीवन नरक बन चुका है।

30 हजार रुपये हर महीने देता हूं ब्याज
मौजूदा स्थिति में कर्ज की रकम पर 30 हजार रुपए प्रतिमाह ब्याज देना पड़ रहा है, जबकि हैसियत 10 रुपए तक की नहीं बची है। घर में दूध डेयरी और बीड़ी काम करके दिन का गुजारा चलाया जा रहा है। 16 एकड़ में से 4 एकड़ खेती कर्ज के चक्कर में बिक चुकी है। 4 एकड़ और बिकने वाली है। अभी खेती से ही साल भर का खर्चा चलता है, उसी में से ब्याज लग जाता है।

साहूकारों का फैला है जाल
प्यारेसिंह लोधी के अनुसार उनकी पहली गलती थी कि उन्होंने बेटों का कर्ज चुकाया। उसके बाद से आज तक भुगत रहा हूं। साहूकार, उनके चेले और कुछ गांव के लोग उनके इशारों पर जाल फैलाए हुए है। आसानी ने अब भी बेटों को कर्ज मिल जाता है। नहीं देने पर घर पर कलह होता है। बेटे मरने की धमकी देते है। मन तो होता है कि खुद मर जाऊं या इन्हें गोली मार दूं। लेकिन साहस नहीं दिखा पाता। सरकारी योजनाओं की कोई जानकारी नहीं है न ही वह कभी घर के मामलों को लेकर कभी पुलिस व प्रशासन के पास भी नहीं गए। अब भी उन्हें कर्ज और ब्याज से मुक्ति की उम्मीद है।