यह होली गुर्जर समाज के पीलवाड़ा व दडग़स गोत्र के युवाओं के बीच खेली जाती है। शुक्रवार को इशारा मिलते ही दोनों गोत्र के युवा सेना की तरह एक दूसरे से भिड़ गए और चमड़े की बनी डोलची से एक दूसरे की नंगी पीठ पानी की बैछार की है। इससे कईयों की पीठ लहू लुहान हो गई। फिर पंच पटेलों की समझाइश के बाद दोनों पक्षों ने खेल को समाप्त किया।
इसके बाद देवर भाभी की होली भी खेली गई। झांकियां सजाकर ढोला मारू की सवारी निकाली गई। इस दिन लोगों ने घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए।
गौरतलब है कि 6 00 साल पहले आपस में दो समुदायों के झगड़े के दौरान बल्लू सिंह शहीद हो गए थे। उनके सिर धड़ से अलग कर दिया गया था इसके बावजूद भी वो विपक्षी सेना से लड़ते रहे और जब तक उन्होंने दूसरी सेना का खात्मा नहीं कर दिया तब तक वो लड़ते रहे । उनकी याद में हर वर्ष डोलची होली का आयोजन किया जाता है।
एक बार नहीं खेली गईथी होली तो…
ऐसा बताया जाता है कि एक बार गांव में किसी कारणवश यह है होली नहीं खेली गई थी । जिसके कारण गांव के लोगों पर प्राकृतिक आपदा आई थी। जिसके बचाव के लिए गांव वाले शहीद बल्लू सिंह के स्थान पर जाकर एकत्रित हुए और हर वर्ष होली खेलने की कसम खाई तब जाकर गांव से आपदा दूर हुई।